World Theatre Day 2021: डोगरी रंगमंच को लोक नाट्य शैली से जोड़ने की है आवश्यकता
World Theatre Day बलवंत ठाकुर द्वारा निर्देशित नाटक बावा जित्तो में कारक गीतडू हरन जैसी लोक शैलियां प्रयोग में लायी गयी और वहीं अभिषेक भारती के अकसर निर्देशित किये हुए सभी डोगरी नाटक हरन शैली पर आधारित हैं ।
जम्मू: आज विश्व रंगमंच दिवस है ।रंगमंच एक ऐसी विधा जिसके माध्यम से समाज में होने वाले हर सकारात्मक व नकारात्मक बदलाव की अक्कासी बड़े ही सूक्ष्म अंदाज में की जाती है ।रंगकर्मी अपने अभिनय से समाज की कुरीतियों को दर्शकों के सम्मुख प्रस्तुत कर सामाजिक ताने-बाने पर कटाक्ष करते हुए समाज की संरचना को सुंदर आकार देने का जो प्रयास करता है ।वही रंगमंच की एक विशेष उपलब्धि मानी जाती है । रंगमंच एकमात्र ऐसा साधन है ।जिसने सभी शैक्षणिक संस्थानों में अपनी पैठ बना ली है ।
विकसित दुनिया ने भी रंगमंच की अहमियत को माना है जिसके चलते रंगमंच ने वहां पर एक विशेष स्थिति हासिल कर ली है ।उन देशों में रंगमंच एक सामुदायिक भागीदारी और बौद्धिक विकास की सबसे अधिक मांग वाली गतिविधि के रूप में माना जाता है ।विश्व रंगमंच दिवस की शुरुआत 1961 में अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संस्थान ;आईटीआई, यूनेस्को, पेरिस द्वारा की गई थी ।यह 27 मार्च को थिएटर समुदाय की दुनिया में हर वर्ष मनाया जाता है । इस अवसर को चिह्नित करने के लिए विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय थिएटर कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं ।
वक्त के साथ डोगरी रंगमंच की अहमियत कम होने लगी: समूचे भारत की तरह जम्मू में भी रंगमंच प्रमुख भूमिका में रहा है। तकरीबन तीस वर्ष पहले जम्मू में थियेटर उस मुकाम पर नहीं था जो आज हासिल है। उन दिनों थियेटर को अजब सी भावना के साथ देखा जाता था। लेकिन डोगरी थियेटर की शुरूआत तो बहुत पहले ही हो चुकी थी। डोगरा राजाओं ने इस विधा को प्रोत्साहित किया था।राज्य के बाहर से आकर टोलियां अपनी नाटक मंचन करने की विद्या से लोगों का मनोरंजन किया करती थी।रामलीला का भी मंचन होने लगा लेकिन वक्त के साथ डोगरी रंगमंच की अहमियत कम होने लगी। उसकी जगह अब हिंदी व अन्य भाषाओं ने ले ली थी लेकिन डोगरी रंगमंच को समर्पित कुछ नाटृय संस्थाएं कई प्रकार के अवरोधों के उपरांत भी डोगरी रंगमंच को प्रोत्साहित करने में लगी रही। उनमें नटरंग प्रमुख रहा है ।इस सब के बावजूद भी नटरंग ने डोगरी में अपने नाटकों का मंचन देश-विदेश में किया है।
सिर्फ रंगमंच दिवस मनाने से नहीं होगा रंगमंच का कल्याण: डोगरी रंगमंच को अभी कई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन सवाल यह है कि सिर्फ रंगमंच दिवस मनाने से ही रंगमंच का कल्याण हो जाएगा । विचारणीय है । क्या हम अपनी डोगरी कलाओं को संरक्षित कर रहे हैं ।केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद यह उम्मीद लगाई जा रही थी की पुरानी लोक कलाओं को और बल दिया जाएगा ।मगर ऐसा होता दिख नहीं रहा । डोगरी रंगमंच की बात करें तो बहुत कम ऐसे नाटक हैं जिन्हें लोक नाट्य शैली में प्रस्तुत किया गया है। बहुत सी संस्थाएं डोगरी रंगमंच पर काम कर रही है लेकिन लोक नाट्य शैली को बल देने के लिए किसी ने भी नहीं सोचा कहां जाता है कि कुछ पाने के लिए कुछ खोना पडता है। लेकिन कुछ पाने के लिए सब कुछ तो खोया नहीं जा सकता ।आज हम अगर बात करे उन कलाकारों की जिन्हें खुद ही नहीं पता कि वो कितना बड़ा काम कर रहें हैं ।सरकार को भी सोचना चाहिए की उनके लिए कोई नया प्रयोग किया जाए ताकि वो भी समृद्व हो सकें। अक्सर कहा जाता है संस्कृति सभी को एक साथ जोड़ती है और हम सब को चाहिए की हम अपनी पुरानी लोक शैलियों को बल दें ।
डोगरी में बहुत कम खेले गए हैं नाटक: डोगरी रंगमंच की बात की जाए तो यह कहना उचित होगा की बहुत सारे डोगरी भाषा में नाटक लिखे गए हैं और लिखे भी जा रहे हैं । लेकिन बहुत कम नाटक खेले गए हैं ।हाल ही में चल रहे नाट्य समारोह जो जम्मू कश्मीर कला संस्कृति और भाषा अकादमी के द्वारा करवाया जा रहा है उसमे पंद्रह नाटकों में से सिर्फ तीन ही नाटक डोगरी भाषा में खेले गए । इसमें हम किसी को दोष नहीं दे सकते क्यूंकि हम अब शेक्सपियर बनना चाहते हैं ।