पीएसए के तहत बंदी अब देश की अन्य जेलों में भी रखे जाएंगे

राष्ट्रविरोधी और असामजिक गतिविधियों में संलिप्तता के आरोप में पीएसए के तहत बंदी बनाए जाने वाले को अब बाहर देश की अन्य जेलों में भी रखा जा सकता है।

By Preeti jhaEdited By: Publish:Wed, 01 Aug 2018 10:41 AM (IST) Updated:Wed, 01 Aug 2018 03:10 PM (IST)
पीएसए के तहत बंदी अब देश की अन्य जेलों में भी रखे जाएंगे
पीएसए के तहत बंदी अब देश की अन्य जेलों में भी रखे जाएंगे

श्रीनगर, राज्य ब्यूरो। राष्ट्रविरोधी और असामजिक गतिविधियों में संलिप्तता के आरोप में जन सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत बंदी बनाए जाने वाले स्थानीय नागरिकों को अब जम्मू कश्मीर के बाहर देश की अन्य जेलों में भी रखा जा सकता है।

राज्य प्रशासनिक परिषद (एसएसी) ने जम्मू कश्मीर जन सुरक्षा अधिनियम के प्रावधान 10 के उस हिस्से को हटा दिया है, जो इस बात को यकीनी बनाता था कि पीएसए के तहत बंदी बनाए गए जम्मू कश्मीर के किसी भी नागरिक को राज्य के बाहर कैद नहीं किया जा सकता।

राज्य गृह विभाग ने हालांकि इस तथ्य की पुष्टि नहीं की है और न राज्य सरकार की तरफ से इस संदर्भ में किसी सूचना को सार्वजनिक किया गया है, लेकिन सूत्रों ने बताया कि एसएसी की गत 11 जुलाई को राज्यपाल एनएन वोहरा की अध्यक्षता में हुई तीसरी बैठक में इस प्रावधान को हटाने का फैसला लिया गया था।

एसएसी के अनुमोदन के बाद 13 जुलाई को राजभवन ने भी इस प्रस्ताव का अनुमोदन कर दिया और यह प्रभावी हो गया। इस संदर्भ में मंगलवार सुबह जब राज्य के प्रधान गृह सचिव आरके गोयल से संपर्क किया गया तो उन्होंने व्यस्तता का हवाला देकर बात करने से इन्कार कर दिया। इसके बाद उन्हें एसएमएस भी प्रेषित किया गया, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।

जेलों में सुधार का हवाला :सूत्रों के अनुसार एसएसी ने 11 जुलाई को पीएसए के तहत जिस बिल को अनुमोदित किया है, उसका नाम जम्मू कश्मीर जन सुरक्षा अधिनियम संशोधन विधेयक 2018 है। इसमें कहा गया है कि जम्मू कश्मीर की जेलों में कैदियों, विचाराधीन कैदियों और अन्य बंदियों के रहने के लिए बेहतर सुविधाएं जुटाने के लिए बड़े पैमाने पर अवसंरचनात्मक सुधार के तहत यह प्रावधान जरूरी है।

इस संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय में जेलों में आवश्यक सुधार के संदर्भ में दायर एक जनहित याचिका का भी जिक्त्र किया गया है। इसमें कहा गया है कि सर्वोच्च न्यायालय ने कई बार जेलों में आवश्यक सुधार के लिए केंद्र व राज्य सरकार को लिखा है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्देशों के अनुरूप ही एसएसी जम्मू, श्रीनगर, अनंतनाग, कुपवाड़ा की जेलों में आवश्यक सुधार पर जोर देती है।इन जेलों में कैदियों की भीड़ घटाई जाए और आवश्यक सुविधाओं में सुधार लाया जाए।

अधिनियम में समय-समय पर हुआ संशोधन:

जम्मू कश्मीर जन सुरक्षा अधिनियम 1978 में लागू किया गया था। इसके तहत बंदी बनाए जाने वाले व्यक्ति को बिना मुकदमा चलाए दो साल या उससे भी ज्यादा समय तक कैद रखा जा सकता था, लेकिन बाद में इसमें समय समय पर संशोधन किए गए और इसके तहत बिना मुकदमे किसी भी आरोपित को अधिकतम एक साल तक बंदी बनाए रखने का प्रावधान किया गया।

वर्ष 2012 में नेकां और कांग्रेस की गठबंधन सरकार की अगुआई करते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इस कानून के कई सख्त प्रावधानों को हटाया था। वर्ष 2012 में राज्य विधानसभा में संबधित अधिनियम में संशोधन कर पीएसए के तहत बंदी बनाए जाने वाले लोगों की न्यूनतम आयु और इस कानून के दायरे को पूरी तरह परिभाषित किया गया था। इसके अलावा इसके तहत बंदी बनाए जाने वाली अवधि को तीन माह करने और राज्य व देश की सुरक्षा संबंधी मामलों में कैद को दो साल से छह माह करने का प्रावधान भी किया गया था।

एमनेस्टी इंटरनेशनल व अन्य मानवाधिकारवादी संगठनों के मुताबिक जम्मू कश्मीर में बीते तीस सालों में करीब 25 हजार लोगों को पीएसए के तहत बंद बनाया गया है।

पीएसए पर सियासत शुरू : पीएसए के तहत बंदी बनाए जाने वाले जम्मू कश्मीर के नागरिकों को बाहर की जेलों में भेजने पर पाबंदी के प्रावधान को हटाना अस्वीकार्य है। यह न सिर्फ बंदियों बल्कि उनके परिजनों के मानवाधिकार का भी हनन है।'-अली मोहम्मद सागर, नेशनल कांफ्रेंस के महासचिव

पीएसए एक काला कानून है। पहले ही इस कानून को हटाए जाने की मांग हो रही है, लेकिन इस कानून को समाप्त करने के बजाय इसके प्रावधान को और सख्त किए जा रहे हैं। राज्यपाल से आग्रह है कि वह इस फैसले की समीक्षा कर रद करें।'-यूसुफ तारीगामी, मा‌र्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी के नेता व विधायक

यह कश्मीर की आवाज दबाने की साजिश है, ताकि जो भी हिंदोस्तान के खिलाफ बोले, उसे पीएसए के तहत बंदी बनाकर देश की विभिन्न जेलों में भेज दिया जाए।'-सैयद अली शाह गिलानी, हुर्रियत के कट्टरपंथी गुट के चेयरमैन

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