विश्व नृत्य दिवस विशेष: संस्कृति और सभ्यता को अभिव्यक्त करती है नृत्यशैली

त्रेतायुग में देवताओं के आग्रह पर पहली बार ब्रह्माजी ने भी नृत्यकला का प्रदर्शन किया था। उन्होंने मानव जाति को नृत्य वेद की सौगात भी दी।

By Rahul SharmaEdited By: Publish:Wed, 29 Apr 2020 02:15 PM (IST) Updated:Wed, 29 Apr 2020 02:15 PM (IST)
विश्व नृत्य दिवस विशेष: संस्कृति और सभ्यता को अभिव्यक्त करती है नृत्यशैली
विश्व नृत्य दिवस विशेष: संस्कृति और सभ्यता को अभिव्यक्त करती है नृत्यशैली

जम्मू, अशोक शर्मा: पहली बार ऐसा हुआ कि अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस का जोश और उमंग लॉकडाउन के चलते घरों की चारदीवारी में सिमट कर रह गया। हालांकि डांस करने वालों को किसी दिन विशेष की जरूरत नहीं रहती। उन्हें जब भी मौका मिलता है, उनके पांव थिरक उठते हैं। फिर भी कुछ वर्षों से विश्व नृत्य दिवस की जरूरत महसूस की गई। अब यह दिन विश्व भर में मनाया जाता है, लेकिन नृत्य कला की उत्पत्ति भारत में हुई मानी जाती है। मान्यता है कि भारत में नृत्य कला 2000 वर्ष पुरानी है।

त्रेतायुग में देवताओं के आग्रह पर पहली बार ब्रह्माजी ने भी नृत्यकला का प्रदर्शन किया था। उन्होंने मानव जाति को नृत्य वेद की सौगात भी दी। भारत के हर क्षेत्र में अपने-अपने के विशिष्ठ नृत्य होते हैं, जिले लोकनृत्य भी कहते हैं। हर नृत्य की अपनी शैली और होती है। सबका अपना लालित्य होता है। नृत्य सभ्यता और को जाहिर करने का उत्तम जरिया भी है। विशेष अवसरों पर नृत्य की अलग-अलग शैली प्रसिद्ध है। खासकर फसल की कटाई पर देश भर में हर क्षेत्र के किसानों की मस्ती की अभिव्यक्ति लोकनृत्यों के माध्यम से होती है। जम्मू में अपने देवी देवताओं को खुश करने के लिए भी नृत्य होते हैं। कुड लोक नृत्य हो जा गगैल, जागरणा, फूमनियां, गीतडू, डोगरा भंगड़ा आदि सभी तरह के नृत्य ऐसे हैं, जो किसी को भी थिरकने को विवश कर देते हैं।

डांस को शिक्षा का हिस्सा बनाने की जरूरत है : दत्ता

इंस्टीट्यूट ऑफ म्यूजिक एंड फाइन आट्र्स में डांस विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. प्रिया दत्ता ने कहा कि नृत्य एक व्यायाम है। कई विषयों का संगम है। लोगों में नृत्य के प्रति जागरूकता की कमी है। मैं तो कहूंगी की नृत्य को शिक्षा प्रणाली का हिस्सा बनाया जाना चाहिए। जम्मू में लोग डांस करते तो हैं, लेकिन डांस सीखने में यकीन नहीं करते। 70 के दशक में मणिराम गंगानी के समय जम्मू में डांस का एक माहौल बना था, लेकिन फिर से चीजें बदल गई। पारंपरिक शास्त्रीय कला लोगों को अपने जीवन को शांत एवं खुशहाल बनाने और व्यक्तित्व विकास में मदद कर सकता है क्योंकि यह मन, शरीर और आत्मा की भाषा से संबंधित है।

पारंपरिक नृत्य हमारी पहचान : आकाश डोगरा

युवा कोरियोग्राफर आकाश डोगरा ने कहा कि युवा नृत्य साधक नए-नए विचारों के साथ सामने आ रहे हैं। उनकी क्षमता को देखते हुए लगता है कि नृत्य में प्रयोग होते रहने को बुरा नहीं मानना चाहिए। यह भारतीय पारंपरिक नृत्य के लिए उदयकाल है। इस लॉकडाउन में भी हमें चाहिए नृत्य की मजबूती को समङों और इसका अभ्यास करते हुए अपने आप को फिट रखें।

लोगों को बांधे रखने का पूरा सामर्थ्य है जम्मू के लोकनृत्य में

जम्मू के कोरियोग्राफर राकेश कुमार कोना ने कहा कि दुनिया के सभी नृत्य साधक एक हैं। उनकी आत्मा नृत्य में ही है। हां, मैं इतना कहता हूं कि नृत्य एक साधना है। जो लोग शार्टकट से शिखर पर पहुंचने की चाहत से डांस कर रहे हैं, उनके लिए इस क्षेत्र में कोई भविष्य नहीं है। मैंने लंदन, सउथ सेंट्रल एशिया के कई देशों में जम्मू-कश्मीर के लोकनृत्य की प्रस्तुति दी है। रिस्पांस ऐसा था जैसे सभी को पूरा समझ आ रहा हो। इसमें लोगों को बांधे रखने का पूरा सामर्थ्य है।

chat bot
आपका साथी