कभी हरियाली की जन्नत था जम्मू शहर अब हर इलाका लगभग कंक्रीट जंगल में बदल रहा

फोर लेन हो रहे जम्मू-अखनूर मार्ग का काम शुरू करने के लिए करीब सात हजार पेड़ों की बलि दी गई। इस मार्ग के दोनों तरफ इक्यूलिप्टस पापुलर व कुछ अन्य प्रजातियों के पेड़ लगे थे।

By Rahul SharmaEdited By: Publish:Thu, 07 Nov 2019 11:17 AM (IST) Updated:Thu, 07 Nov 2019 11:17 AM (IST)
कभी हरियाली की जन्नत था जम्मू शहर अब हर इलाका लगभग कंक्रीट जंगल में बदल रहा
कभी हरियाली की जन्नत था जम्मू शहर अब हर इलाका लगभग कंक्रीट जंगल में बदल रहा

जम्मू, ललित कुमार। हाईकोर्ट को जानीपुर से बाहु रैका में शिफ्ट करने के लिए हजारों पेड़ों की बलि चढ़ाने की आशंका से हर कोई सकते में है। जम्मू में एक साथ कई पेड़ों की कटाई कोई नई बात नहीं है। करीब तीन दशक पहले जम्मू शहर हरियाली के लिहाज से जन्नत से कम नहीं था। शहर का उत्तर, पूर्व और पश्चिम क्षेत्र पूरी तरह से हराभरा था। दक्षिण इलाके में कुछ क्षेत्र जंगलों से ढके थे तो कुछ पत्थरीले इलाके थे। बढ़ती जरूरतें पूरी करने के लिए शहर का हर इलाका लगभग कंक्रीट जंगल में बदल रहा है। अब शहर के उत्तर व पूर्व इलाके में कुछ जंगल बचे हैं। विकास के नाम पर इनकी बलि चढ़ाई जा रही है। आज जम्मू जिले में कुल क्षेत्र के 28 फीसद की जंगल शेष रह गए है।

विकास के नाम पर कब तक कुर्बानी देंगे पेड़ 03-4 पहाड़ समतल कर दिए गए अस्पताल बनाने के लिए 3097 वर्ग किलोमीटर जम्मू का कुल क्षेत्र : 210 वर्ग किलोमीटर सामान्य घने जंगल : 672 वर्ग किलोमीटर खुला वन क्षेत्र : 882 वर्ग किलोमीटर कुल वन क्षेत्र: 28.48 फीसद जिले के कुल क्षेत्र में वन क्षेत्र :

(स्रोत : पर्यावरण सर्वेक्षण 2011)

पहाड़ तक समतल कर दिए गए : अगर विकास के नाम पर इसी तरह इनकी कुर्बानी जारी रही तो वो दिन दूर नहीं जब जम्मू एक कंक्रीट जंगल का रूप बन जाएगा। जम्मू के उत्तर में पंजतीर्थी से आगे लगभग पूरा क्षेत्र पेड़ों से ढका था। रामनगर के मोड़ कह ले, मांडा या फिर नगरोटा और उससे आगे जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग से जुड़े क्षेत्र। ये पूरा क्षेत्र पेड़ों से ढका था। मांडा व रामनगर के मोड़ों में अभी पेड़ बचे हैं। नगरोटा के आगे दो दशकों में विकास के नाम पर हजारों पेड़ों की कटाई हुई। पहले जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग को चौड़ा करने के लिए पेड़ों की बलि लगी। उसके बाद इंडियन इंस्टीट््यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की इमारत बनाने के लिए पेड़ों से ढके पहाड़ को समतल कर दिया गया।

कभी सिद्दड़ा में थे सबसे अधिक पेड़ :  जम्मू पूर्व की बात करें तो यहां पर तवी किनारे सिद्दड़ा क्षेत्र में सबसे अधिक पेड़ थे लेकिन यहां पर 13 कॉलोनियां बनी और असंख्य पेड़ों की बलि चढ़ी। कुंजवानी-नगरोटा हाईवे के दाई ओर जंगल थे, लेकिन अस्पताल बनाने के लिए पेड़ों से ढके तीन-चार पहाड़ समतल हो गए। उसके बाद सुंजवां जैसे क्षेत्र में भी रिहायशी व व्यवसायिक इमारतों के निर्माण के लिए पेड़ कट रहे हैं। दक्षिण की बात करें तो वन विभाग की जमीन काफी कम थी क्योंकि यह अधिकतर क्षेत्र समतल व खेती योग्य है। इन क्षेत्रों में बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए कृषि योग्य जमीन लगातार कंक्रीट में बदल रही है।

 

शहर के पश्चिम इलाके की बात करें तो एक समय था जब तालाब तिल्लो से आगे कोई आबादी नहीं होती थी। आगे का पूरा क्षेत्र हराभरा था लेकिन आज तालाब तिल्लो बोहड़ी से आगे पांच किलोमीटर तक कंक्रीट का जाल है। जिन इलाकों में खेतीबाड़ी होती थी, उन इलाकों में कॉलोनियां बन चुकी है। उदयवाला तक पूरा इलाका बस चुका है। जानीपुर से आगे का पूरा इलाका पेड़ों से ढका था जो आज पूरी तरह से रिहायशी व व्यवसायिक है।

अनगिनित कॉलोनियां बन चुकीं : जानीपुर से आगे करीब तीन दशक पूर्व सबसे पहले जेडीए ने रूपनगर बसाया था। यह क्षेत्र पूरी तरह से जंगल था। आज यहां पूरा एक नगर बसा हुआ है। जानीपुर से आगे बनतालाब के आसपास कुछ गांव थे और अधिकतर क्षेत्र पेड़ों से ढके थे लेकिन अब यहां चिन्नोर, स्वर्ण विहार सहित अनगिनित कॉलोनियां बन चुकी है। आलम यह है कि पेड़ों व कृषि योग्य भूमि को कंक्रीट में बदलने का यह सिलसिला कोट भलवाल तक जा पहुंचा है।

हजार पेड़ निगल रहा जम्मू-अखनूर मार्ग फोर लेन हो रहे जम्मू-अखनूर मार्ग का काम शुरू करने के लिए करीब सात हजार पेड़ों की बलि दी गई। इस मार्ग के दोनों तरफ इक्यूलिप्टस, पापुलर व कुछ अन्य प्रजातियों के पेड़ लगे थे। मार्ग के विस्तारीकरण के चलते इन पेड़ों को काटना पड़ा जिस कारण शहर की आवोहवा पर इसका विपरित प्रभाव पड़ रहा है। जम्मू से अखनूर तक 30 किलोमीटर लंबे इस मार्ग को फोरलेन करने का काम जोरों पर हैं। मार्ग के फोरलेन होने के बाद यहां से गुजरने वाले लोगों को लाभ तो मिलेगा। पर्यावरण को नुकसान विस्तारीकरण से पहले ही पहुंच चुका है। जम्मू-अखनूर अपनी खूबसूरती के लिए जाना जाता था। इसकी खूबसूरती का कारण एक तरफ से बहने वाली रणबीर केनाल और इसके दोनों ओर लगे हरे भरे पेड़ थे। इस मार्ग पर लगे पेड़ जम्मू शहर के फेफड़ों की तरह थे जो पूरे शहर के प्रदूषण को झेल साफ हवा लोगों को देते थे। इस मार्ग के दोनों ओर बसे इलाकों में गर्मियों के दिनों तापमान शहर के अन्य इलाकों के मुकाबले कम रहता था। इसका श्रेय भी वहां पर लगे पेड़ों को ही जाता था।

दोगुने पेड़ लगाकर की जाएगी भरपाई : डिवकॉम

डिवीजनल कमिश्नर जम्मू संजीव वर्मा का कहना है कि जम्मू-अखनूर मार्ग पर काटे गए पेड़ों की भरपाई दोगुने पेड़ लगाकर की जाएगी। इसके लिए उन्होंने जम्मू नगर निगम के कमिश्नर, डायरेक्टर फ्लोरिकल्चर, डीएफओ सोशल फारेस्टरी, डीएफओ अर्बन जम्मू, मार्ग बना रहे नेशनल हाइवे एंड इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कारपोरेशन के जीएम और टाउन प्लानर जेडीए को प्रोजेक्ट तैयार करने को कहा है। फ्लोरीकल्चर विभाग से उन पौधों की सूची भी मांगी है जिनको सड़क किनारे लगाया जाएगा जबकि टाउन प्लानर प्रोजेक्ट तैयार करेगा। कुछ अन्य जगहों को भी चिन्हित किया जा रहा है जहां बड़े पेड़ लगाए जाएंगे जिससे वातावरण स्वच्छ बना रहे।

 

200 पेड़ों की बलि चढ़ाकर बना भौर कैंप सतवारी के निकट तवी से सटे भौर इलाके में भौर कैंप गार्डन में पार्क बनाने के नाम पर 200 से अधिक पुराने पेड़ों की बलि चढ़ा दी गई। पार्क को अंग्रेजी स्टाइल में बनाने के नाम पर अंधाधुंध तरीके से देसी पेड़ों की कटाई कटाई की गई। शहर के पश्चिमी-दक्षिणी क्षेत्र में आज जंगल कहीं नजर नही आते। भौर कैंप का यही ऐसा इलाका था जहां घना जंगल था। गार्डन के लिए चयनित 230 कनाल भूमि का टुकड़ा घने जंगल से ढ़का था जिसमें कीकर, शहतूत, शीशम,बैर के पेड़ आदि प्रमुख थे। कुछ पेड़ तो विशालकाए थे। परिंदों को अपनी ओर आकर्षित करते थे। विभाग ने इस पर कई तरह की सफाइयां भी दी लेकिन इस घने जंगल में नायाब परिंदों ने भी अपना बसेरा बनाया था और पेड़ कटने के बाद ये परिंदे भी गायब हो गए। -विकास हर शहर के लिए जरूरी है। बढ़ती जरूरतों को लेकर ढांचागत विकास करना ही पड़ता है। पर्यावरण को संकट में डालकर किया विकास किसी के लिए भी फायदेमंद नहीं होता। आज वैश्विक स्तर पर पर्यावरण असंतुलन को लेकर हर कोई सचेत हुआ है। भारत सरकार पेड़ बचाओ, पेड़ लगाओ का आह्वान कर रही है। हर साल वन महोत्सव मनाया जाता है जिसमें हर किसी को पेड़ लगाने के लिए कहा जाता है। हम जितने पौधे लगाते हैं, उसमें से आधे भी पेड़ नहीं बन पाते। इसलिए जरूरी है कि हर पेड़ को बचाया जाए। एक समय था जब जम्मू के चारो ओर पेड़ हुआ करते थे लेकिन आज नजर दौड़ाओं तो चारो ओर कंक्रीट के जंगल दिखाई देते है। यह भविष्य के लिए सबसे बड़ा खतरा है।  -एसके सूदन, प्रधान पर्यावरण सुरक्षा मंच जम्मू कश्मीर

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