नए कश्मीर में बदलाव की आंच से ध्वस्त हो रहा अलगाववाद का एजेंडा

बीते 20 सालों से पाकिस्तान में बैठे अब्दुल्ला गिलानी के पिता जमात ए इस्लामी जम्मू कश्मीर के वरिष्ठ नेताओं में एक हैं। वह सैयद अली शाह गिलानी के खास लोगों में एक है।

By Rahul SharmaEdited By: Publish:Wed, 01 Jul 2020 12:46 PM (IST) Updated:Wed, 01 Jul 2020 12:46 PM (IST)
नए कश्मीर में बदलाव की आंच से ध्वस्त हो रहा अलगाववाद का एजेंडा
नए कश्मीर में बदलाव की आंच से ध्वस्त हो रहा अलगाववाद का एजेंडा

राज्य ब्यूरो, श्रीनगर : हुर्रियत में विभाजन के बाद से कट्टरपंथी गुट की अगुआई कर रहे सैयद अली शाह गिलानी की विदाई अलगाववादी विचारधारा को झटके से कम नहीं है। निश्चित तौर पर यह एकाएक नहीं हुआ। जम्मू कश्मीर से 370 के खात्मे और राज्य के पुनर्गठन के बाद कश्मीर जिस तरह बदला है, उसकी अपेक्षा न पाकिस्तान ने की थी और न ही गिलानी जैसे अलगाववादियों ने। एक झटके में ही उनके तमाम एजेंडे बेमानी हो गए और कश्मीर के युवाओं के समक्ष एक नई उम्मीद का सूरज दिखने लगा।

नजरिए में यह बदलाव पाकिस्तान और उसके इशारे पर चलने वाले कठपुतली नेताओं को हजम नहीं हो रहा है। उनकी खीझ इस झगड़े को इतना बड़ा बना गई कि दोनों एक-दूसरे की साजिशों की पोल खोलने में जुट गए हैं। उस पर अब्दुल्ला गिलानी की गुलाम कश्मीर में नियुक्ति ने इन रिश्तों की कड़वाहट को सतह पर ला दिया।

गिलानी ने इस्तीफे के दौरान जिस तरह उसके खिलाफ आवाज उठाने वाले अलगाववादियों पर अनुशासनहीनता, पैसे की गड़बड़ी और पाकिस्तानी सरकार के इशारे पर नाचने का आरोप लगाया है, वह उसी खीझ का ही असर दिख रहा है। साथ ही उसने कश्मीर के युवाओं को नशे के जहर तक के आरोप लगाए हैं। इस झगड़े से एक बार फिर पाकिस्तान और उसका एजेंडा बेनकाब हो गया।

नया नहीं है यह झगड़ा: बीते साल जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम लागू होने के बाद कश्मीर की आवाम ने जिस तरह अलगाववादी एजेंडे से किनारा आरंभ किया, आइएसआइ और अन्य पाक परस्तों ने इसका ठीकरा हुर्रियत पर फोडऩा आरंभ कर दिया। पाकिस्तान में बैठे उनके आका लगातार आंदोलन चलाने के लिए दबाव बना रहे थे और खफा होकर हुर्रियत की फंडिंग में भी कटौती कर दी थी।

अब्दुल्ला गिलानी की नियुक्ति पर बढ़ा टकराव: अलबत्ता, गिलानी के खिलाफ हुर्रियत काफ्रेंस में उस समय विरोध ज्यादा मुखर हुआ जब उन्होंने कुछ समय पहले अब्दुल अहद गिलानी (सैयद अब्दुल्ला गिलानी) को गुलाम कश्मीर में हुर्रियत कान्फ्रेंस की तरफ से सभी फैसले लेने का अधिकार दिया। अब्दुल्ला बारामुला का रहने वाला है और काफी समय से पाकिस्तान में है। उसे गिलानी ने गुलाम कश्मीर स्थित हुर्रियत कांफ्रेस का संयोजक और महासचिव बनाया था। अब्दुल्ला से पूर्व मोहम्मद गुलाम साफी ही गुलाम कश्मीर में गिलानी गुट वाली हुर्रियत की कमान संभाले हुए थे। यहीं से टकराव तेज हो गया।

नईम गिलानी का दोस्त है अब्दुल्ला: बीते 20 सालों से पाकिस्तान में बैठे अब्दुल्ला गिलानी के पिता जमात ए इस्लामी जम्मू कश्मीर के वरिष्ठ नेताओं में एक हैं। वह सैयद अली शाह गिलानी के खास लोगों में एक है। गिलानी के बड़े पुत्र डा. नईम गिलानी और सैयद अब्दुल गिलानी की दोस्ती भी जगजाहिर है। अब्दुल्ला गिलानी को सभी अधिकार दिए जाने से गुलाम कश्मीर में बैठे हुर्रियत के कई नेता गिलानी से नाराज हो गए थे। इसके अलावा पाकिस्तान और उसकी खुफिया एजेंसी आइएसआइ ने भी बदले हालात में हुर्रियत को एकजुट करने व हुर्रियत में नए आक्रामक नेतृत्व को आगे करने में जुटी थी, जो पूरी तरह से उसके मुताबिक चले। करीब एक पखवाड़ा पूर्व आइएसआइ के इशारे पर गुलाम कश्मीर में हुर्रियत के नेताओं ने एक बैठक बुला, सैयद अब्दुल्ला गिलानी को बाहर का रास्ता दिखा गुलाम हसन खतीब को उनकी जगह बैठा दिया। हसन खतीब ने इसके बाद गिलानी को पत्र लिखकर उन्हें भी एक तरह से किनारा करने का संकेत किया।

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