Ghulam Nabi Azad की सक्रियता ने प्रदेश कांग्रेस प्रदेश प्रधान गुलाम अहमद मीर की उड़ी है नींद

परिसीमन की प्रक्रिया चल रही है। यह प्रक्रिया अगले साल के शुरू में संपन्न होने की संभावना है। उसके बाद विधानसभा चुनाव होंगे। राजनीतिक पार्टियां चुनाव की तैयारियों के लिए कमर कस रही हैं। कांग्रेस की गुटबाजी के बीच विधानसभा चुनाव से पहले आजाद बहुत सक्रिय हो गए हैं।

By Lokesh Chandra MishraEdited By: Publish:Fri, 03 Dec 2021 05:45 PM (IST) Updated:Fri, 03 Dec 2021 05:45 PM (IST)
Ghulam Nabi Azad की सक्रियता ने प्रदेश कांग्रेस प्रदेश प्रधान गुलाम अहमद मीर की उड़ी है नींद
कांग्रेस प्रदेश प्रधान गुलाम अहमद मीर पर प्रदेश प्रधान का पद छोड़ने का लगातार दबाव बनता जा रहा है

जम्मू, राज्य ब्यूरो : जम्मू-कश्मीर में गुलाम नबी आजाद की सक्रियता ने कांग्रेस प्रदेश प्रधान गुलाम अहमद मीर की नींद उड़ा दी है। मीर पर प्रदेश प्रधान का पद छोड़ने का लगातार दबाव बनता जा रहा है। वह सात साल से प्रदेश प्रधान के पद पर विराजमान हैं। जम्मू कश्मीर में इस समय परिसीमन की प्रक्रिया चल रही है। यह प्रक्रिया अगले साल के शुरू में संपन्न होने की संभावना है। उसके बाद विधानसभा चुनाव होंगे। राजनीतिक पार्टियां चुनाव की तैयारियों के लिए कमर कस रही हैं। कांग्रेस की गुटबाजी के बीच विधानसभा चुनाव से पहले आजाद बहुत सक्रिय हो गए हैं। वह लगातार जम्मू व कश्मीर में जनसभाएं कर रहे हैं।

कश्मीर में जनसभाएं करने के बाद अब आजाद का रुख जम्मू संभाग के पुंछ व राजौरी जिलों में है। आजाद ने पुंछ व राजौरी में जम्मू कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल कर जल्द चुनाव करवाए जाने की मांग को दोहराते हुए कहा है कि अनुच्छेद 370 का मामला सर्वोच्च न्यायालय में है। वह इस पर अधिक कुछ नहीं कह सकते। आजाद का चार दिवसीय दौरा आज शुक्रवार को समाप्त हो गया है। आजाद के दौरे के साथ प्रदेश कांग्रेस कमेटी जम्मू कश्मीर का कोई लेना देना नहीं है।

पार्टी सूत्र बताते हैं कि दो महीने से बढ़ी आजाद की सक्रियता व जनसभाओं में कार्यकर्ताओं का उत्साह यह दिखाता है कि मीर को अपना पद खिसकता दिखाई दे रहा है, क्योंकि वह सात साल से पद पर हैं। मीर गुट के कई नेता भी यह मान रहे हैं कि अगला विधानसभा चुनाव आजाद की देखरेख में ही लड़ा जाना चाहिए। हालांकि पार्टी की जम्मू कश्मीर की प्रभारी रजनी पाटिल हैं, लेकिन वह कार्यकर्ताओं के बीच अधिक लोकप्रिय दिखाई नहीं देती।

पाटिल के मुकाबले में आजाद को फायदा यह है कि वह मूल रूप से जम्मू कश्मीर के रहने वाले हैं। जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। लोगों की समस्याओं को समझते हैं। इलाकों से भलीभांति परिचित हैं। मीर ने आजाद के समर्थन वाले नेताओं पर कोई कार्रवाई नहीं करते हुए यह कहा है कि पार्टी में अपनी बात रखने पर उन्हें बुरा नहीं लगा, अलबत्ता नेताओं को यह बात मीडिया के सामने नहीं रखनी चाहिए थी।

ज्ञात रहे कि केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर में कांग्रेस दो गुटों में बंटी है। एक गुट आजाद का और दूसरा मीर का है। दोनों गुट खुले तौर पर आमने-सामने है। कुछ दिन पहले आजाद के समर्थन वाले कुछ नेताओं ने अपने पदों से इस्तीफा दिया था। इस्तीफा देने वाले नेताओं में जीएम सरूरी, जुगल किशोर, विकार रसूल, डा. मनोहर लाल शर्मा, नरेश गुप्ता शामिल थे। इन नेताओं ने मीर के कामकाज के तरीके पर सवाल उठाया। यह भी कहा कि हम कांग्रेस के सच्चे सिपाही हैं। हमें नजरअंदाज किया जा रहा है।

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