...हौसलों से नाप ली किलिमंजारों की उंचाई, अब एवरेस्ट पर है नजर

सोमैया एवरेस्टर बछेंद्री पाल को अपनी प्रेरणा मानती है। साेमैया कहती है कि वह जब छठी कक्षा में थी तो उसने स्कूल के साथ ट्रेकिंग में भाग लिया।

By Rahul SharmaEdited By: Publish:Mon, 27 Jan 2020 12:02 PM (IST) Updated:Mon, 27 Jan 2020 12:02 PM (IST)
...हौसलों से नाप ली किलिमंजारों की उंचाई, अब एवरेस्ट पर है नजर
...हौसलों से नाप ली किलिमंजारों की उंचाई, अब एवरेस्ट पर है नजर

जम्मू, सुरेंद्र सिंह। रियासी जिले की माहौर तहसील के छोटे से गांव शाजरू की सोमैया कौसर ने साबित कर दिखाया है कि अगर हौसलें बुलंद हो तो कामयाबी कदमों के नीचे होगी। सोमैया ने अफ्रीका की सबसे ऊंची चोटी माउंट किलिमंजारो पर 15 अगस्त, 2017 को तिरंगा फहरा कर स्वतंत्रता दिवस मनाया था और अब उसकी नजर दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा लहराने पर है। मुस्लिम परिवार में पैदा हुई सोमैया के लिए इस उपलब्धि को हासिल करना आसान नहीं था क्योंकि उसका गांव आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। वहां से लड़कियों का इस तरह से घर निकलना आसान नहीं हैं लेकिन अपने देश के तिरंगे को शान से लहराते देखना उसमें उत्साह भरता है। साेमैया इस समय कश्मीर यूनिवर्सिटी में पीजी कर रही है और उसका कहना कि एक समय उसके माता-पिता ने उसे अपने सपनों के पीछे दौड़ने के लिए मना भी किया था लेकिन अपने देश के लिए कुछ करने के जज्बे ने उसके कदम रुकने नहीं दिए। आज उसके माता-पिता भी उस पर गर्व करते हैं।

साइकिल पर भी नाप चुकी है काठमांडु तक की दूरी

सोमैया सिर्फ आकाश ही नहीं छूना चाहती बल्कि वह दिल्ली से नेपाल की राजधानी काठमांडू तक की दूरी को भी अपने साइकिल से नाप चुकी है। सोमैया ने साइकिल पर अपने दस दिनों के इस अभियान को पूरा कर इंडियन बुक आफ रिकार्ड और असिस्ट वर्ल्ड रिकार्ड में भी अपना नाम दर्ज करवा लिया। अपने इस अभियान में तिरंगे को लेकर निकली सोमैया के साथ चार लड़कियों ने यात्रा शुरू की थी लेकिन दो ही इस अभियान को पूरा कर सकीं। इस अभियान में सोमैया ने 1140 किलोमीटर की दूरी तय की। इस अभियान में भाग लेने वाली सोमैया जम्मू कश्मीर की पहली लड़की है और इस अभियान में नार्थ जोन का नेतृत्व कर रही थी। सोमैया का कहना है कि सपने सिर्फ देखने से पूरे नहीं होते बल्कि उनको पूरा करने के लिए मेहनत करनी पड़ती है।

बछेंंद्री पाल काे मानती है प्रेरणा

सोमैया एवरेस्टर बछेंद्री पाल को अपनी प्रेरणा मानती है। साेमैया कहती है कि वह जब छठी कक्षा में थी तो उसने स्कूल के साथ ट्रेकिंग में भाग लिया। उसे उस समय एवरेस्टर बछेंद्री पाल के बारे पता तो वह उनसे बहुत प्रेरित हुई। स्कूल की पढ़ाई के बाद महिला कालेज परेड, जम्मू में ग्रेजुएशन करने पहुंची। यहीं से उसने इंडियन माउंटेनरिंग फाउंडेशन के साथ संपर्क साधा और उसे नेशनल स्पोर्ट कलाइंबिंग चैंपियनशिप, बैंगलोर, नार्थ जोन स्पोर्ट कलाइंबिंग चैंपियनशिप दिल्ली, सल्फर केव ट्रेक देहरादून आदि में भाग लेने का मौका मिला। इन्हीं प्रतियोगिता में भाग लेने के बाद वह अफ्रीका के तंजानिया स्थित माउंट किलिमंजारो पर फतह हासिल कर सकी। यह अभियान काफी चुनौतीपूर्ण था। माइनस पंद्रह डिग्री तापमान में ऊंचाई पर सांस लेना मुश्किल हो रहा था लेकिन तिरंगे को पंद्रह अगस्त को वहां लहराने का लक्ष्य उसमें उत्साह भर रहा था।

सरकार से मदद मिले तो एवरेस्ट नाप लूंगी

सोमैया का कहना है कि एवरेस्ट पर चढ़ाई के लिए वह पूरी तरह से तैयार है लेकिन आर्थिक तंगी आड़े आ रही है। अगर सरकार मदद करे तो मैं एवरेस्ट पर भी तिरंगा फहराकर आ सकती हूं। सोमैया का कहना है कि एवरेस्ट अभियान में काफी खर्च आता है जिसको उठाना उसके लिए संभव नहीं है। वह प्रयास कर रही है लेकिन अभी उसे कहीं से मदद नहीं मिल रही है। जम्मू कश्मीर में खेल गतिविधियों पर वैसे भी कम खर्च किया जाता है। ऐसे में कई युवा आगे नहीं निकल पाते। अगर सरकार यहां के युवाओं को प्रोत्साहित करे तो वह अपना दमखम दिखा सकते हैं। सोमैया को उम्मीद है कि उसका एवरेस्ट पर चढ़ाई का सपना जरूर होगा क्योंकि वह हार मानने वालों में से नहीं है।

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