Jammu : शिक्षा, युवा सेवा एवं खेल विभाग और खेल परिषद की खींचतान में पिस रहे खिलाड़ी

Sports Facilities In Jammu विभाग के पास इतना पैसा नहीं है कि प्रतियोगिताओं के आयोजन के लिए इतना भुगतान कर सके। जिसके चलते खेल प्रतियोगिताएं ऐसे-ऐसे मैदानों पर करवा दी जाती हैं यहां खिलाड़ी अपनी प्रतिभा का तरीके से प्रदर्शन नहीं कर पाते।

By Rahul SharmaEdited By: Publish:Thu, 21 Oct 2021 10:53 AM (IST) Updated:Thu, 21 Oct 2021 10:53 AM (IST)
Jammu : शिक्षा, युवा सेवा एवं खेल विभाग और खेल परिषद की खींचतान में पिस रहे खिलाड़ी
प्रतियोगिताओं के आयोजन में मापदंड़ों की धज्जियां उड़ाई जाएंगी तो खिलाड़ियों के भविष्य कैसे सुरक्षित हो सकते हैं।

जम्मू, अशोक शर्मा : शिक्षा और खेलकूद को एक दूसरे का पूरक माना जाता है। लेकिन जम्मू-कश्मीर में शिक्षा विभाग, युवा सेवा एवं खेल विभाग और जम्मू-कश्मीर खेल परिषद की आपसी खींचतान के बीच खिलाड़ियों के भविष्य से खिलवाड़ हो रही है। हालांकि तीनों का काम बच्चों का भविष्य संवारना है लेकिन तालमेल के अभाव के बीच खिलाड़ियों को परेशान किया जा रहा है।

हालत यह है कि खेलों की नर्सरी कहा जाने वाले युवा सेवा एवं खेल विभाग के पास आज तक शहर में अपना एक भी मैदान नहीं है। जबकि स्कूल खेलों की हर प्रतियोगिता का आयोजन युवा सेवा एवं खेल विभाग को करना होता है।इन प्रतियोगिताओं के आयोजन के लिए विभाग को मैदान लेने के लिए कभी शिक्षा विभाग का दरबाजा खटकाना पड़ता है तो कभी खेल परिषद की मिन्नतें करनी पड़ती हैं। खेल परिषद के पास हर खेल के आयोजन की सुविधा है लेकिन इसके लिए परिषद युवा सेवा एवं खेल विभाग से 30 हजार रुपए प्रति दिन के हिसाब से पैसे की मांग करती है।

विभाग के पास इतना पैसा नहीं है कि प्रतियोगिताओं के आयोजन के लिए इतना भुगतान कर सके। जिसके चलते खेल प्रतियोगिताएं ऐसे-ऐसे मैदानों पर करवा दी जाती हैं, यहां खिलाड़ी अपनी प्रतिभा का तरीके से प्रदर्शन नहीं कर पाते।उल्टा खिलाड़ियों के घायल होने का भी डर बना रहता है।खिलाड़ियों को मैदानों के लिए परेशान उस समय होना पड़ रहा है जबकि खेल परिषद और युवा सेवा एवं खेल विभाग का सचिव एक ही है।

बुधवार को अंतर जोनल फेंसिंग प्रतियोगिता का आयोजन गवर्नमेंंट हायर सेकेंडरी स्कूल गांधीनगर में किया गया। विभाग के पास दस के करीब खरीद हुई पिस्ट हैं लेकिन स्टोरकीपर के छुट्टी पर होने के कारण पिस्ट प्रतियोगिता के दौरान भी बाहर नहीं निकाली गई।हालांकि प्रतियोगिता के आयोजन की जानकारी काफी पहले से थी।जब प्रतियोगिताओं के आयोजन में मापदंड़ों की धज्जियां उड़ाई जाएंगी तो खिलाड़ियों के भविष्य कैसे सुरक्षित हो सकते हैं।

प्रतियोगिता के लिए खेल परिषद 60 हजार मांग रही थी खेल परिषद : जब आयोजकों से पूछा गया कि उन्होंने एमए स्टेडियम के फैंसिंग हाल में इस प्रतियोगिता का आयोजन क्यों नहीं करवाया तो उन्होंने बताया कि दो दिनों की प्रतियोगिता के लिए खेल परिषद 60 हजार रुपया मांग रही थी।इतना पैसा देना विभाग के लिए दे पाना संभव नहीं है।वहीं युवा सेवा एवं खेल विभाग में कार्यरत कुछ अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों ने कहा कि शिक्षा विभाग के पास कई मैदान हैं लेकिन वहां पर भी युवा सेवा एवं खेल विभाग को प्रतियोगिता का आयोजन करवाने के लिए कई तरह की औपचारिकताएं पूरी करनी पड़ती हैं। उनके लिए भुगतान भी करना पड़ता है। अगर शिक्षा विभाग और युवा सेवा एवं खेल विभाग के बीच तालमेल हो हर वर्ष स्कूलों के कई मैदानों का सुधार संभव है। जिसका खिलाड़ियों को खूब लाभ हो सकता है।पढ़ाई के दौरान भी बच्चे इन मैदानों का लाभ ले सकेंगे।

सुविधा मिले तो तैयार हो सकते हैं अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी: वरिष्ठ खिलाड़ी रवि शर्मा ने कहा कि युवा सेवा एवं खेल विभाग, शिक्षा विभाग, जम्मू-कश्मीर खेल परिषद के बीच अच्छा तालमेल हो और खेलों के उत्थान के लिए तरीके से काम हो तो जम्मू से राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी निकलना संभव है। जल्द एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर होने चाहिए कि तीनों विभाग मैदानों का प्रतियोगिताओं के आयोजन और शिविरों के लिए प्रयोग कर सकें।

प्राइवेट स्कूलों ने खेलों से पल्ला झाड़ा : कोरोना की आड़ में प्राइवेट स्कूलों ने खेलों से मुंह मोड लिया है। इन दिनों युवा सेवा एवं खेल विभाग की ओर से आयोजित खेल प्रतियोगिताओं में प्राइवेट स्कूलों की भागेदारी तो रही है लेकिन कोई भी स्कूल बच्चों को लेकर खेल मैदान तक नहीं आ रहा। हर प्रतियोगिता में बच्चे अपने स्तर पर ही सभी औपचारिकताएं पूरी कर रहे हैं और स्वयं ही मैदानों तक पहुंच रहे हैं। कोरोना से पहले सभी औपचारिकताएं स्कूल प्रबंधन करवाता था। प्रतियोगिता स्थल पर अपने बच्चों को लेकर भी स्कूल वाले ही जाते थे लेकिन अब स्कूल अपनी जिम्मेदारी भूल गए हैं। जबकि फीसें पहले की तरह ही ली जा रही हैं। एक अभिभावक विजय गुप्ता ने कहा कि पदक जीत जाने के बाद स्कूल वालों की दावेदारियां शुरू हो जाती हैं लेकिन जब बच्चों के लिए कोई जिम्मेदारी निभानी पड़ती है तो सभी मुंह मोड़ लेते हैं। ऐसे में खिलाड़ियों का भला कैसे संभव है।

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