Muharram In Kashmir : मोहर्रम के जुलूस को देखते हुए श्रीनगर के कई इलाकों में प्रशासन ने लगाई पाबंदियां

अबी गुज्जर से निकलने वाले मुहर्रम के जुलूस पर 1989 से प्रतिबंध है। जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेशा बनने के बाद घाटी में बेहतर होते हालात को देखते हुए सरकार 30 साल बाद घाटी में शिया समुदाय को मात्मी जुलूस निकालने की अनुमति दे सकती है।

By Rahul SharmaEdited By: Publish:Tue, 17 Aug 2021 10:32 AM (IST) Updated:Tue, 17 Aug 2021 10:33 AM (IST)
Muharram In Kashmir : मोहर्रम के जुलूस को देखते हुए श्रीनगर के कई इलाकों में प्रशासन ने लगाई पाबंदियां
हजरत इमाम हुसैन ने इस्लाम की रक्षा के लिए अपने परिवार और दोस्तों के साथ सर्वोच्च कुर्बानी दी थी।

श्रीनगर, जेएनएन। पैगम्बर हज़रत मोहम्‍मद के नाती हज़रत इमाम हुसैन समेत कर्बला के 72 शहीदों की शहादत को याद करते हुए आज श्रीनगर में मोहर्रम का जुलूस निकाले जाने की सूचना है। श्रीनगर के अबी गुज्जर इलाके से निकाले जाने वाले मात्मी जुलूस को विफल बनाने के लिए प्रशासन ने घाटी में सुरक्षा व्यवस्था को कड़ा कर दिया है। लाल चौक सहित अन्य मुख्य बाजारों में सुरक्षाबलों की तैनाती बढ़ा दी गई है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार शिया समुदाय के लोग हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हुए आज अबी गुज्जर इलाके से मात्मी जुलूस का आगाज करेंगे। प्रशासन द्वारा इजाजत न दिए जाने के बाद भी जुलूस को निकाले जाने की बात सामने आई है। कोरोना दिशानिर्देशों व कानून एवं व्यवस्था को देखते हुए प्रशासन ने आज सुबह से ही मैसूमा, अबी गुज्जर, टीआरसी, डल गेट, बुधशााह पुल, गौकदल और करालखुद इलाकों में सुरक्षाबलों की तैनाती करते हुए जुलूस पर प्रतिबंध लागू कर दिया है।

आपको जानकारी हो कि अबी गुज्जर से निकलने वाले मुहर्रम के जुलूस पर 1989 से प्रतिबंध है। ऐसे कहा जा रहा था कि जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेशा बनने के बाद घाटी में बेहतर होते हालात को देखते हुए सरकार 30 साल बाद घाटी में शिया समुदाय को मात्मी जुलूस निकालने की अनुमति दे सकती है परंतु इससे पहले की प्रशासन इस संबंध में कोई फैसला लेता कुछ शिया नेताओं ने इस कदम पर सवाल उठाना शुरू कर दिया। जिसके बाद सरकार ने पीछे हटते हुए कहा कि संबंधित डीसी ही स्थिति की समीक्षा करने के बाद इस पर निर्णय लेंगे।

पैगम्बर हजरत मोहम्‍मद के नाती हजरत इमाम हुसैन ने इस्लाम की रक्षा के लिए अपने परिवार और दोस्तों के साथ सर्वोच्च कुर्बानी दी थी। उनकी शहादत मुहर्रम के 10वें दिन हुई थी। इस दिन को आशूरा कहा जाता है। उन शहीदों की याद में ही हर साल ताजिए बनाए जाते हैं और जुलूस निकाले जाते हैं। ये ताजिए उन शहीदों के प्रतीक होते हैं। मातम मनाने के बाद उन ताजिए को कर्बला में दफनाया जाता है।  

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