Jammu : लंपी से पशुपालकों की उड़ी नींद, सीमांत क्षेत्र में 800 पशु बीमार

पशुपालन विभाग ने अपनी वेटनरी टीमों को भी ग्रामीण क्षेत्रों का दौरा करने में लगा दिया है ताकि मवेशियों में फैल रही इस बीमारी से निपटा जा सके। आरएसपुरा खौड़ ज्योड़िया क्षेत्र में इस बीमारी से कई पशु बीमार हैं।

By Edited By: Publish:Tue, 09 Aug 2022 06:47 AM (IST) Updated:Tue, 09 Aug 2022 06:48 AM (IST)
Jammu : लंपी से पशुपालकों की उड़ी नींद, सीमांत क्षेत्र में 800 पशु बीमार
खासकर गायों में यह बीमारी तेजी से बढ़ रही है।

जागरण संवाददाता, जम्मू : जम्मू के आसपास के क्षेत्रों में कई मवेशी खतरनाक बीमारी लंपी स्किन डिसीज (एलएसडी) की चपेट में आ गए हैं। सीमांत क्षेत्र आरएसपुरा के गांवों में करीब 800 पशु इस बीमारी की चपेट में हैं। इससे पशु पालकों के होश उड़ गए हैं। वैसे देश में पहली बार इस बीमारी का पता अगस्त 2019 में लगा था। दूसरे राज्यों से होते हुए अब यह जम्मू कश्मीर में भी पशुओं को अपनी चपेट में ले रही है। इससे कई मवेशियों की जान भी जा चुकी है।

खासकर गायों में यह बीमारी तेजी से बढ़ रही है। इन दिनों हालात यह है कि गांव-गांव तक यह बीमारी पहुंच रही है, जिससे पशु पालक चिंतित हैं। इस बीमारी को लेकर सरकार भी हरकत में आई है। पशुपालन विभाग जम्मू के अधिकारी व कृषि विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ सतर्क हो गए हैं और ग्रामीण क्षेत्रों का दौरा कर स्थिति पर नजर रखे हुए हैं।

पशुपालन विभाग ने अपनी वेटनरी टीमों को भी ग्रामीण क्षेत्रों का दौरा करने में लगा दिया है, ताकि मवेशियों में फैल रही इस बीमारी से निपटा जा सके। आरएसपुरा, खौड़, ज्योड़िया क्षेत्र में इस बीमारी से कई पशु बीमार हैं।

लंपी बीमारी के यह हैं लक्षण : दरअसल लंपी वायरस है जो कि मक्की कीट के जरिए एक मवेशी से दूसरे में पहुंच जाता है। शरीर में घुसने के बाद वायरस तेजी से फैलता है। मवेशी के शरीर में फोड़े बन जाते हैं। तेज बुखार हो जाता है। मवेशी चारा खाना छोड़ देता है। दुधारू जानवर दूध देना बंद कर देता है। आंख व नाक से पानी आता है। आम तौर पर इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है। बस कुछ एंटीबायोटिक दवाइयां दी जाती हैं और वायरस 10 से 15 दिन में अपने आप प्रभावहीन हो है। कई बार मामला बिगड़ जाता है और मवेशी को इस बीमारी से निमोनिया हो जाता है। जानवर की मौत भी हो सकती है। डा. नीलेश शर्मा, वरिष्ठ पशु चिकित्सक, शेर-ए-कश्मीर यूनिवर्सिटी आफ एग्रीकल्चर साइंसेज एंड टेक्नोलाजी का कहना है कि इन दिनों मवेशी पालकों को पूरी तरह से सतर्क होने की जरूरत है। अगर मवेशी के शरीर में फफोले बन रहे है, तो तुरंत पशु चिकित्सक से संपर्क किया जाना चाहिए, ताकि जरूरी दवाएं दी जा सके। सबसे पहले रोगी मवेशी को दूसरे मवेशियों से अलग कर दिया जाना चाहिए। यहां तक कि उसका चारा भी अलग किया जाना चाहिए। जब तक पशु चिकित्सक नहीं पहुंचता, बीमार मवेशी के शरीर पर बने फोड़े पर फिटकरी का छिड़काव करें या डिटाल में पानी डाले बिना फोड़ों पर दिन में तीन-चार बार छिड़काव करें।

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