India-China Border Issue: चीन से बदला लेने को खौल रहा तिब्बती शेरों का खून, ड्रैगन से अपनी सरजमीं वापस चाहते हैं स्पेशल फ्रंटियर फोर्स के जांबाज

तिब्बत पर चीन के कब्जे के बाद लेह के चोगलमसर और हानले में वर्ष 1969 में 1545 तिब्बती शरणाॢथयों ने शरण ली थी। अब इनकी जनसंख्या सात हजार के करीब है।

By Rahul SharmaEdited By: Publish:Fri, 04 Sep 2020 11:24 AM (IST) Updated:Fri, 04 Sep 2020 02:29 PM (IST)
India-China Border Issue: चीन से बदला लेने को खौल रहा तिब्बती शेरों का खून, ड्रैगन से अपनी सरजमीं वापस चाहते हैं स्पेशल फ्रंटियर फोर्स के जांबाज
India-China Border Issue: चीन से बदला लेने को खौल रहा तिब्बती शेरों का खून, ड्रैगन से अपनी सरजमीं वापस चाहते हैं स्पेशल फ्रंटियर फोर्स के जांबाज

जम्मू, विवेक सिंह : पूर्वी लद्दाख की बफीर्ली चोटियों के पार चीन के कब्जे वाली अपनी सरजमीं को वापस लेने के लिए तिब्बती शेरों का खून खौल रहा है। तिब्बत से पलायन कर लद्दाख में बसे सैकड़ों तिब्बती परिवारों की तीसरी पीढ़ी इस समय चीन से अपना घर वापस लेने के लिए सेना के साथ स्पेशल फ्रंटियर फोर्स के पैरा कमांडो के रूप में ड्रैगन के खिलाफ मैदान में है। स्पेशल फ्रंटियर फोर्स सीधे गृह मंत्रालय के अधीन है।

लेह में पले-बढ़े सेना की स्पेशल फ्रंटियर फोर्स के शहीद डिप्टी लीडर 51 वर्षीय नईमा तेनजिन वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर शहादत देने वाले पहले तिब्बती सैनिक बन गए हैं। नईमा तेनजिन गत दिनों भारतीय सेना के लिए रणनीतिक रूप से बेहद अहम ब्लैक टॉप चोटी पर एक ऑपरेशन के दौरान शहीद हो गए थे। उनके साथ 24 वर्षीय तिब्बती सैनिक तेनजिन लोधेन भी घायल हो गए थे। लेह में तिब्बतियों की बस्ती सोनलिंग में तरंगे और तिब्बत के ध्वज में लिपटे नईमा तेनजिन ने तिब्बती युवाओं को चीन से बदला लेने के लिए हथियार थामने के जज्बे को और मजबूत कर दिया है।

बेहद घातक माने जाते हैं स्पेशल फोर्स व विकास रेजीमेंट के जवान : लद्दाख में भारतीय सेना के साथ तिब्बती सैनिकों के बढ़ते कदमों से चीन की चिंताएं भी बढ़ी हैं। तिब्बती सैनिकों की स्पेशल फोर्स, विकास रेजीमेंट के जवान बेहद घातक माने जाते हैं। वे सेना की पैरा कमांडोज के साथ तैयार हुए हैं। सिर्फ कहने को ही वे भारतीय सेना से अलग हैं। लद्दाख के माहौल में पले-बढ़े तिब्बती सैनिक, लद्दाख के सैनिकों की तरह ही उच्च पर्वतीय इलाकों में वारफेयर के माहिर हैं। ऐसे में गुरुवार को लद्दाख पहुंचे थलसेना अध्यक्ष जनरल एमएम नरवाने ने तिब्बती सैनिकों का हौसला बढ़ाया। तिब्बती कमांडोज ने पूर्वी लद्दाख में ब्लैक टॉप इलाके मेें कब्जा कर चीन को रणनीतिक रूप से गहरा आघात पहुंचाया है।

लेह के 11 गांवों में बसे हैं करीब सात हजार तिब्बती : तिब्बत पर चीन के कब्जे के बाद लेह के चोगलमसर और हानले में वर्ष 1969 में 1545 तिब्बती शरणाॢथयों ने शरण ली थी। अब इनकी जनसंख्या सात हजार के करीब है। आज वे लेह के 11 गांवों में बसे हैं। लद्दाख में भारतीय सेना के मजबूत होने के साथ लेह में बसे तिब्बती परिवारों की यह उम्मीद भी मजबूत होती जा रही है कि अत्याचार करने वाले चीन को अब सजा मिलेगी।

चीन के अत्याचारों के भूल नहीं पाया है तिब्बती समाज : लेह में बसे तिब्बती युवा पी सेरिंग का कहना है कि पूरा तिब्बती समाज उन अत्याचारों को भूल नहीं पाया है, जो चीन ने किए थे। सेरिंग के दादा 51 साल पहले लेह में बसे थे। सेरिंग के साथ लेह में बसे सभी तिब्बती लद्दाख के पार अपने घर लौटने की ख्वाहिश रखते हैं। अलबत्ता, उन्हेंं बुरा लगता है जब यह कहा जाता है कि लद्दाख, चीन के साथ सीमा साझा करता है। लद्दाख के साथ उस तिब्बत की सीमाएं जुड़ती हैं, जिस पर चीन ने कब्जा कर तिब्बतियों को भारत समेत विश्व के कई देशों में शरण लेने को मजबूर कर दिया था। 

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