दिव्यांगों को दिखी, उम्मीद की किरण; आरपीडीए लागू होने की दिशा में बढ़े कदम

जम्मू-कश्मीर में कोई भी विधेयक लागू नहीं था। जिस कारण दिव्यांगों की हालत पतली थी। जम्मू-कश्मीर में 2011 की जनगणना के अनुसार 3.5 लाख के करीब दिव्यांग थे जिनकी संख्या अब 10 लाख के करीब बताई जा रही है।

By Rahul SharmaEdited By: Publish:Thu, 03 Dec 2020 07:39 PM (IST) Updated:Thu, 03 Dec 2020 07:39 PM (IST)
दिव्यांगों को दिखी, उम्मीद की किरण; आरपीडीए लागू होने की दिशा में बढ़े कदम
जम्मू-कश्मीर में दिव्यांगों को कोई पूछता नहीं था।

जम्मू, जागरण संवाददाता : हौसले की पतवार लिए जिंदगी की किश्ती को आगे बढ़ा रहे जम्मू-कश्मीर के दिव्यांगों को भी अब उम्मीद जगी है कि उनकी भी सुनवाई होगी। उन्हें बाधारहित वातावरण मिलेगा। उन पर कोई ताने नहीं कस पाएगा। उनके लिए अलग अदालतें बनेंगी। वह अपना दुखड़ा सरकार को सुना पाएंगे। सामाजिक प्रताड़ना से भी निजात मिल पाएगी।

केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद सरकार ने दिव्यांगों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। सरकार ने पूरे देश में लागू दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार विधेयक 2016 (राइट्स ऑफ पर्सन विद डिसेबिलिटी बिल-2016) को जम्मू-कश्मीर में भी लागू करने की दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं। सरकार ने 27 दिसंबर 2020 को एक आदेश जारी कर विधेयक की धारा 66(1) के तहत जम्मू-कश्मीर एडवाइजरी बोर्ड बनाने को कहा। इस बोर्ड के बनने से जम्मू-कश्मीर के दिव्यांगों को उनके हक मिलना शुरू हो जाएंगे।

पिछले चार वर्षों से दिव्यांग इस विधेयक को जम्मू-कश्मीर में भी लागू करने की मांग कर रहे थे। इसी के अंतर्गत जिला स्तरीय कमेटियां भी बनेंगी। जिससे हर जिले के दिव्यांग को राहत मिलेगी। सरकार ने दिसंबर 2016 में देश में इस विधेयक को पारित किया था। इस विधेयक ने पीडब्ल्यूडी अधिनियम 1995 की जगह ली है जिसे 24 साल पहले लागू किया गया था। जम्मू-कश्मीर में कोई भी विधेयक लागू नहीं था। जिस कारण दिव्यांगों की हालत पतली थी। जम्मू-कश्मीर में 2011 की जनगणना के अनुसार 3.5 लाख के करीब दिव्यांग थे जिनकी संख्या अब 10 लाख के करीब बताई जा रही है।

इंसाफ की उम्मीद: एक लंबे इंतजार के बाद जम्मू-कश्मीर में आरपीडीए लागू होने की उम्मीद बंधी है। सरकार ने इस विधेयक के तहत एडवाइजरी बोर्ड बनाने का फैसला कर जम्मू-कश्मीर के करीब 10 लाख दिव्यांगों के दिल को छू लिया है। सभी दिव्यांग सरकार के आभारी हैं। उम्मीद है कि अब इस विधेयक के लागू होने के बाद दिव्यांगों के साथ प्रताड़ना के मामले तो कम होंगे ही, उन्हें इंसाफ भी मिलेगा। विधेयक के तहत दिव्यांगों के लिए अलग से विशेष अदालतें बनेंगी। बाधारहित वातावरण मिलेगा। अब कोई दिव्यांग का मजाक नहीं उड़ा पाएगा क्योंकि इसके तहत 10 हजार से पांच लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। - संध्या धर, प्रधान, दिव्यांग जिगर इंस्टीटयूट, गंग्याल, जम्मू

वर्षों के संघर्ष के बाद अब जम्मू-कश्मीर के दिव्यांगों को अधिकार मिलने जा रहे हैं। 1995 से लेकर अभी तक जम्मू-कश्मीर में दिव्यांगों के लिए कोई कानून नहीं था। इस कारण कोई सुनता नहीं था। न ही सरकारी योजनाओं का लाभ ही दिव्यांगों को मिल पाता था। अब ऐसा नहीं होगा। एडवाइजरी बोर्ड के बाद निचले स्तर पर कमेटियां बनेंगी। इनमें दिव्यांग प्रतिनिधि भी रहेंगे। इस तरह धीरे-धीरे दिव्यांगों के लिए कुछ न कुछ होता रहेगा और उन्हें इंसाफ मिल पाएगा। जम्मू-कश्मीर में दिव्यांगों को कोई पूछता नहीं था। -सुशील शर्मा, चेयरमैन, जम्मू-कश्मीर डिसेबल वेलफेयर एसोसिएशन

मंजिल उन्हीं को मिलती है जिनके सपनों में जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है। हमारे दिव्यांग इस आश्य को हमेशा सार्थक करते आए हैं। वर्षों से जम्मू-कश्मीर में दिव्यांगों के कानून को लागू करने का संघर्ष जारी था। अब जाकर सरकार ने इसे लागू करने की दिशा में प्रभावी कदम उठाना शुरू किए हैं। इससे जम्मू-कश्मीर के लाखों दिव्यांग लाभान्वित होंगे। उनकी जिंदगी आम लोगों की तरह हो पाएगी। सड़क हादसों, प्राकृतिक आपदाओं, सीमा पर फायरिंग जैसे कारणों से जम्मू-कश्मीर में पिछले दस वर्षों में बड़ी संख्या में दिव्यांग बढ़े हैं। सरकार सभी से इंसाफ करे। - जावेद अहमद टाक, प्रधान, ह्यूमनिटी वेलफेयर आर्गेनाइजेशन, अनंतनाग 

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