अब जम्मू कश्मीर में भीख मांगना अपराध नहीं, हाईकोर्ट ने 1960 के कानून को किया निरस्त

बेंच ने श्रीनगर जिला न्यायाधीश के 23 मई 2018 के उस आदेश को भी निरस्त कर दिया है जिसमें कोर्ट ने श्रीनगर में भीख मांगने पर प्रतिबंध लगाया था।

By Rahul SharmaEdited By: Publish:Sat, 26 Oct 2019 01:37 PM (IST) Updated:Sat, 26 Oct 2019 01:37 PM (IST)
अब जम्मू कश्मीर में भीख मांगना अपराध नहीं, हाईकोर्ट ने 1960 के कानून को किया निरस्त
अब जम्मू कश्मीर में भीख मांगना अपराध नहीं, हाईकोर्ट ने 1960 के कानून को किया निरस्त

जम्मू, जेएनएफ। जम्मू कश्मीर के दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित होने से कुछ दिन पहले राज्य हाईकोर्ट के डिवीजन बेंच ने एक महत्वपूर्ण फैसले में भीख निवारण कानून 1960 तथा इस कानून के तहत बनाए गए सभी नियमों को निरस्त कर दिया है। इस कानून के तहत जम्मू-कश्मीर में भीख मांगना एक अपराध व असंवैधानिक था और इसमें सजा का प्रावधान भी था। लिहाजा इस कानून के निरस्त होने से अब राज्य में भीख मांगना अपराध नहीं रहा। बेंच ने श्रीनगर जिला न्यायाधीश के 23 मई 2018 के उस आदेश को भी निरस्त कर दिया है, जिसमें कोर्ट ने श्रीनगर में भीख मांगने पर प्रतिबंध लगाया था।

हाई कोर्ट के डिवीजन बेंच में राज्य की चीफ जस्टिस गीता मित्तल व जस्टिस राजेश बिंदल ने पाया कि गरीबी मानवाधिकार का मुद्दा है और गरीबों को भी रोटी, कपड़े, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य, सम्मान के साथ जीवन यापन करने, सम्मानजनक वातावरण में काम करने तथा बोलने व अपनी बात कहने का अधिकार है। बेंच ने पाया कि इन्हीं बुनियादी सुविधाओं का अभाव गरीबों को जीवित रहने के लिए भीख मांगने पर मजबूर कर देता है। बेंच ने कहा कि ये लोग जीवित रहने के लिए संघर्ष करते हैं और भीख मांगने को अपराध करार देना इस वर्ग के खिलाफ ही नहीं, बल्कि उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन भी है।

बेंच ने कहा कि अगर सरकार गरीबों को उक्त बुनियादी सुविधाएं नहीं दे सकती, जिसमें वे सम्मानजनक जिंदगी बिता सकें तो इसमें गलती उनकी नहीं, बल्कि सरकार की विफलता है। बेंच ने कहा कि इस कानून के तहत भीख मांगने को एक अपराध करार दिया गया है जिसका मतलब गरीबी को अपराध करार देने के बराबर है। इस कानून के तहत ऐसे लोगों के सार्वजनिक स्थलों पर जाने का प्रतिबंध है, जोकि उनके कहीं भी आने-जाने के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन है।

बेंच ने कहा कि भीख मांगना अंजान लोगों से शांतिपूर्ण संपर्क करने का एक साधन है, जिसमें भिखारी आर्थिक सहयोग के लिए आग्रह करता है और यह संवाद अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का अहम हिस्सा है, जो हर व्यक्ति को भारतीय संविधान व राज्य संविधान में प्राप्त है। बेंच ने कहा कि कानून में अपराध की जो व्याख्या की गई है, वो ही गलत है और इससे कानून का उद्देश्य हासिल नहीं हो सकता। बेंच ने कहा कि यह कानून जरूरत से ज्यादा किसी के निजी जीवन में हस्तक्षेप अधिक है। लिहाजा इस कानून व इसके तहत बनाए गए सभी नियम निरस्त किए जाते हैं।

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