मनोकामना पूर्ण हेतू इस तरह करें गणपति उपासना

ऐसी मान्यता है कि इस तरह की विघ्नहर्ता सुखकर्ता भगवान श्री गणेेश कि मूर्ति की उपासना करने पर जल्द मनोकामना पूरी होती है।

By Preeti jhaEdited By: Publish:Tue, 11 Sep 2018 02:56 PM (IST) Updated:Thu, 13 Sep 2018 01:34 PM (IST)
मनोकामना पूर्ण हेतू इस तरह करें गणपति उपासना
मनोकामना पूर्ण हेतू इस तरह करें गणपति उपासना

जम्मू जागरण संवाददाता। विघ्नहर्ता सुखकर्ता भगवन श्री गणेेश का आज अमंगल को मंगल में बदलने का योग लेकर आ रहे हैं। सिद्धि विनायक व्रत भाद्रपद मास यानी शुक्ल पक्ष की चतुर्थी आज के दिन रखा जाएगा। गणेेश चतुर्थी पूरे देश में बड़ी ही धूमधाम से मनाई जाती है।

गणेेश चतुर्थी से शुरू होकर अनन्त चतुर्दशी (अनंत चौदस) तक मनाए जाने वाले इस पर्व की धूम 10 दिन तक रहेगी। मान्यता है कि इन दस दिनों के दौरान यदि श्रद्धा एवं विधि-विधान के साथ गणेेश जी की पूजा किया जाए तो जीवन के समस्त बाधाओं का अंत कर विघ्नहर्ता अपने भक्तों पर सौभाग्य, समृद्धि एवं सुखों की बारिश करते हैं। दस दिन तक चलने वाला यह त्योहार का एक ऐसा अद्भुत प्रमाण है जिसमें शिव-पार्वती नंदन श्री गणोश की प्रतिमा को घरों, मंदिरों अथवा पंडालों में साज-श्रृंगार के साथ चतुर्थी को स्थापित किया जाता है।

कई श्रद्धालु 3 दिन या 5 दिन के लिए गणेेश जी की स्थापना करते हैं। वे अपनी श्रद्धा और भक्ति के अनुसार इन दिनों का निर्धारण करते हैं, लेकिन 11 दिनों का यह पर्व उत्तम माना गया है। दस दिनों तक गणेेश प्रतिमा का नित्य विधिपूर्वक पूजन किया जाता है और ग्यारहवें दिन इस प्रतिमा का बड़े धूम-धाम से विसर्जन होगा।

अपने घर लाएं श्री गणेेश को

श्री गणेेश स्थापना के लिए सबसे पहला मुहूर्त 13 सितंबर वीरवार को सुबह 6 से 7.30 बजे तक है। इसके बाद 10.30 बजे दूसरा मुहूर्त शुरू होगा जो कि दोपहर 12 बजे तक रहेगा। इसके अलावा दोपहर 12 से 3 बजे तक का मुहूर्त भी श्रेष्ठ रहेगा। इसके बाद शाम 4.30 बजे से चौथा मुहूर्त प्रारंभ होगा जो 6 बजे तक लगातार रहेगा। शाम 6 से रात 9 बजे तक स्थापना का मुहूर्त रहेगा।

गणपति की स्थापना करते हुए इन बातों का रखें ध्यान

भगवान श्री गणेेश जी की मूर्ति को घर पर लाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि उनकी सूंड बाईं तरफ होनी चाहिए। ऐसी मान्यता है कि इस तरह की मूर्ति की उपासना करने पर जल्द मनोकामना पूरी होती है। भगवान श्री गणोश जी की मूर्ति का मुख दरवाजे की तरफ नहीं होना चाहिए। क्योंकि गणेेश जी के मुख की तरफ समृद्धि, सुख और सौभाग्य होता है। जबकि पीठ वाले हिस्से पर दुख और दरिद्रता का वास होता है।

श्री गणेेश जी को कभी भी उस दीवार पर स्थापित न करें जो टॉयलेट की दीवार से जुड़ी हुई हों। कुछ परिवार घरों में चांदी के भगवान गणेेश स्थापित करते हैं। अगर आपके भगवान गणेेश चांदी के हैं, तो इसे उत्तर पूर्व या दक्षिण पश्चिम दिशा में स्थापित करें। कभी भी सीढ़ियों के नीचे भगवान की मूर्ति को स्थापित न करें।

विधि-विधान के साथ करें श्री गणेेश जी का पूजन

  

सुबह जल्द उठकर स्नान करने के बाद सर्वप्रथम साफ चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर श्री गणेेश एवं माता गौरी जी की मूर्ति एवं जल से भरा हुआ कलश स्थापित करे। घी का दीपक, धूपबत्ती जलाएं, रोली, कुंकु, अक्षत, पुष्प दूर्वा से श्री गणोश, माता गौरी एवं कलश का पूजन करें। उसके बाद श्री गणोश जी का ध्यान और हाथ में अक्षत पुष्प लेकर मंत्र बोलते हुए गणेेश जी का आह्वान करें। श्री गणेेश एवं माता गौरी जी को जल, कच्चे दूध और पंचामृत से स्नान कराएं (मिटटी की मूर्ति हो तो सुपारी को स्नान कराये), श्री गणेेश जी को नवीन वस्त्र और आभूषण अर्पित करें। यह क्रम प्रतिदिन जारी रखने। मनोकामना शीघ्र पूर्ण होगी।

 इस दिन न देखें चंद्रमा

 कार्तिकेय के साथ प्रतियोगिता के दौरान माता पार्वती और पिता शिव के समक्ष भगवान गणेश ने वेद में लिखित यह वचन कहे, जो आज भी अति महत्वपूर्ण हैं-.

पित्रोश्च पूजनं कृत्वा प्रर्कान्तिं च करोति य:। तस्य वै पृथ्विीजन्यफलं भवति निश्चितम॥ अर्थात जो माता-पिता की पूजा करके उनकी प्रदक्षिणा करता है, उसको पृथ्वी की परिक्रमा करने का फल मिलता है। देखा जाए तो भगवान गणेश ने माता-पिता को सर्वोच्च सम्मान देकर सभी को बता दिया कि जीवित देवी-देवता तो हमारे माता-पिता ही हैं।

उनकी पूजा असल में सभी देवी-देवताओं की पूजा है। 13 सितंबर को विनायक चतुर्थी है। इसी दिन मध्याह्न में अवतरण हुआ था सभी देवी-देवताओं में प्रथम पूज्य विनायक का। इसे कलंक चतुर्थी और शिवा चतुर्थी भी कहा जाता है। देखा जाए तो अधिकांश मनुष्य किसी भी प्रकार का विघ्न आने से भयभीत हो उठते हैं। गणेश जी की पूजा होने से विघ्न समाप्त हो जाता है। 12 सितंबर को अपराह्न में चतुर्थी तिथि लगेगी, जो 13 सितंबर को अपराह्न तक रहेगी। इसलिए गणेश भक्तों को 12 व 13 सितंबर को चतुर्थी तिथि तक चंद्रमा के दर्शन से बचना होगा। नहीं बचे तो झूठा कलंक लग जाएगा, उसी तरह जैसे श्रीकृष्ण पर लगा था स्यमंतक मणि चुराने का। पर चंद्र को देख ही लिया तो इसी कृष्ण-स्यमंतक कथा को पढ़ने या विद्वतजनों से सुनने पर भगवान गणेश क्षमा कर देते हैं। इसके साथ ही हर दूज का चांद देखना भी जरूरी है, कलंक से बचने के लिए।

तरह-तरह की मनोकामना पूरी करने के लिए विनायक कई उपाय बताते हैं। अगर आपको अपने दुश्मनों को रोकना है तो फिर गणेश भगवान के पीली कांति वाले स्वरूप का ध्यान करना होगा। किसी को अपने वश में करना है तो उनके अरुण कांतिमय स्वरूप का मन ही मन ध्यान करें। किसी के मन में अपने लिए प्रेम पैदा करना है तो लाल रंग वाले गणेश जी का ध्यान करें। बलवान आदि होने के लिए भी इसी रूप का ध्यान करें। जिनको धन पाने की इच्छा हो, उन्हें हरे रंग के गणेशपूजा करनी चाहिए और जिन्हें मोक्ष प्राप्त करना है, उन्हें सफेद रंग के गणपति की पूजा करनी चाहिए। लेकिन इन कार्यों में पूरी सफलता तभी मिलेगी, जब आप तीनों समय गणपति का ध्यान और जाप करेंगे। .

इस दिन मध्याह्न में गणपति पूजा में 21 मोदक अर्पण करके-

‘विघ्नानि नाशमायान्तु सर्वाणि सुरनायक। कार्यं मे सिद्धिमायातु पूजिते त्वयि धातरि', मंत्र से प्रार्थना करें। गणेश को अर्पित किया गया नैवेद्य सबसे पहले उनके सेवकों- गालव, गार्ग्य, मंगल और सुधाकर को देना चाहिए। चंद्रमा, देवाधिदेव गणेश और चतुर्थी माता को दिन में अर्घ्य अर्पित करें। संभव हो तो रात्रि में विनायक कथा सुनें या भजन करें। 

श्री गणेश पूजा विधि गणेश के दौरान शुद्ध आसन पर बैठने से पहले सभी पूजन सामग्री को एकत्रित कर लें। पुष्प, धूप, दीप, कपूर, रोली, मौली लाल, चंदन, मोदक आदि के साथ पूजा शुरू करें। भगवान गणेश को तुलसी पत्र नहीं चढ़ाना चाहिए। भगवान गणेश भगवान को लड्डू बहुत पसंद हैं। उन्हें देशी घी से बने लडुडुओं का प्रसाद अर्पित करें। श्री गणेश के दिव्य मंत्र ॐ श्री गं गणपतये नम: का 108 बार जाप करें। श्री गणेश के अलावा भगवन शिव व गौरी, नन्दी, कार्तिकेय सहित सम्पूर्ण शिव परिवार की पूजा करें। शास्त्रानुसार श्री गणेश की पार्थिव प्रतिमा बनाकर उसे प्राण प्रति‍ष्ठित कर पूजा-अर्चन के बाद विसर्जित करने कि परम्परा है। जिसे पूजा खत्म होने के बाद उत्साहपूर्वक विसर्जित करना चाहिए।

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