Corona Warriors: घर गए पर गाड़ी से उतरे बिना ही मां-बाप को दूर से प्रणाम कर लौट आए

एक अन्य डॉक्टर ने बताया कि कुछ दिन पहले शादी की सालगिरह थी। घर नहीं जा पाया। बुरा जरूर लगता है लेकिन प्राथमिकता ड्यूटी है।

By Rahul SharmaEdited By: Publish:Mon, 27 Apr 2020 09:40 AM (IST) Updated:Mon, 27 Apr 2020 02:40 PM (IST)
Corona Warriors: घर गए पर गाड़ी से उतरे बिना ही मां-बाप को दूर से प्रणाम कर लौट आए
Corona Warriors: घर गए पर गाड़ी से उतरे बिना ही मां-बाप को दूर से प्रणाम कर लौट आए

जम्मू, रोहित जंडियाल : ...वो किस्से और होंगे, जिन्हें सुनकर आती है नींद। कलेजा थाम लोगे जब सुनोगे दस्तां इनकी।। 

केस एक : फर्ज के लिए ऐसी लाखों खुशियां कुर्बान

जम्मू के बस स्टैंड में स्थित होटल का एक कमरा और जिंदगी का यादगार दिन। ऐसे में खामोशी, सन्नाटा और चीरता अकेलापन। बधाई देने वह भी नहीं आ पाए, जो साथ वाले कमरे में ठहरे थे। महिला चिकित्सक ने बताया कि आज मेरा जन्मदिन था। परिवार ने वीडियो काल कर बधाई दी और माता-पिता ने फोन पर ही आशीर्वाद। न मैं घर जा सकी और ना परिवार मिलने आया। इस दिन अपनों की कमी काफी खली, लेकिन फर्ज के आगे ऐसी लाखों खुशियां कुर्बान।

केस दो : घर गए पर गाड़ी से उतरे बिना ही लौट आए

श्री महाराजा गुलाब सिंह (एसएमजीएस) अस्पताल के पेडियाट्रिक्स विभाग में पोस्ट ग्रेजुएशन कर रहे डॉ. नवनीत शर्मा तालाब तिल्लो स्थित अपने घर गए, लेकिन अपनों की सुरक्षा के लिए गाड़ी से नीचे नहीं उतरे। माता-पिता और बच्चा सामने था। दिल किया कि जिगर के टुकड़े को गले लगा लूं और माता-पिता के पांच छूकर आशीर्वाद लूं, लेकिन चाहकर भी ऐसा नहीं कर पाया। आंखें नम थी और गला भारी। दूर से परिवार का हौसला बढ़ाकर होस्टल लौट आया।

केस तीन : परिवार से मिले एक महीना हो गया

जीएमसी में आर्थोपेडिक्स विभाग के डॉ. शुभम को परिजनों से मिले एक महीना हो गया। बोले, मन करता है तो फोन पर बात कर लेता हूं। होटल से जीएमसी और जीएमसी से होटल तक ही जिंदगी सिमट गई है। कल दोस्त का जन्मदिन था, लेकिन कुछ दूरी पर स्थित उसके कमरे में जाकर बधाई नहीं दे पाया। सोचा, अपनों के लिए यह कुर्बानी देनी ही होगी।

...यह दास्तां कोरोना वायरस के सामने सीना ताने पहली पंक्ति में खड़े उन योद्धाओं की है, जो संक्रमित मरीजों की देखभाल में दिनरात जुटे हैं। डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ देश सेवा और अपनों की सुरक्षा के लिए अपनों से दूरी बनाए हुए है। जम्मू के होटलों के अलावा मेडिकल कॉलेज के पीजी होस्टलों में ठहरे ऐसे एक-दो डॉक्टर या स्वास्थ्य कर्मी नहीं बल्कि इनकी संख्या सौ से भी अधिक है। इन सभी की सात दिन तक ड्यूटी होती है और उसके अगले दो सप्ताह तक इन्हें घर भेजने के बजाए होटलों में भेज दिया जाता है, ताकि वहीं पर क्वारंटाइन रहें। चौदह दिन बाद फिर से ड्यूटी के लिए तैयार हो पाते हैं।

जम्मू के एक होटल में रह रहे डॉ. शुभम ने दैनिक जागरण को बताया कि लॉकडाउन के बाद से ही वह होटल में आ गए थे। परिवार से दूर जिंदगी का यह सबसे कठिन दौर है। एक ओर मरीजों की जिंदगी और दूसरी ओर परिवार की चिंता। अभी कितने दिन और होटल में रुकना पड़ेगा, यह कहा नहीं जा सकता।

एक अन्य डॉक्टर ने बताया कि कुछ दिन पहले शादी की सालगिरह थी। घर नहीं जा पाया। बुरा जरूर लगता है, लेकिन प्राथमिकता ड्यूटी है। वहीं डॉक्टरों व अन्य स्वास्थ्य कर्मियों को होटलों में ठहराने का जिम्मेदारी संभालने वाले डॉ. अमरजीत सिंह भाटिया ने कहा कि यह कदम डॉक्टरों के परिजनों की सुरक्षा को देखते हुए उठाया गया है। परिजनों की कमी इस समय जरूर उन्हें सता रही होगी, लेकिन यह समय समाज के प्रति ली गई शपथ को निभाने का समय भी है।

डॉक्टरों को मलाल भी है : घरों से दूर रहे डॉक्टरों व अन्य स्वास्थ्य कर्मियों को यह मलाल भी है कि समाज में कुछ लोग उनके काम व दर्द को नहीं समझते। वे कोविड-19 के मरीजों की जांच में जुटे स्वास्थ्य कर्मियों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं कर रहे। उन्हें शक की नजर से देखते हैं। जो किराये के मकानों में रह रहे हैं, उनके लिए वहां रहना भी मुश्किल हो रहा है। कुछ दिन पहले एक होटल वाले ने तो डॉक्टरों को रखने से मना कर दिया था, बावजूद उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई।  

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