Jammu Kashmir : डिजाइन में खामी, आठ साल बाद गांधी नगर अस्पताल में रैंप बनाने की आर्इ याद

गांधी नगर में जच्चा-बच्चा अस्पताल की इमारतके निर्माण कार्य में घोर लापरवाही बरती गई। कछुआ चाल से चला निर्माण कार्य जब आठ साल बाद पूरा हुआ तो याद आई कि अस्पताल का रैंप ही नहीं बना।

By Rahul SharmaEdited By: Publish:Mon, 30 Dec 2019 11:26 AM (IST) Updated:Mon, 30 Dec 2019 11:26 AM (IST)
Jammu Kashmir : डिजाइन में खामी, आठ साल बाद गांधी नगर अस्पताल में रैंप बनाने की आर्इ याद
Jammu Kashmir : डिजाइन में खामी, आठ साल बाद गांधी नगर अस्पताल में रैंप बनाने की आर्इ याद

जम्मू, रोहित जंडियाल । गांधी नगर में जच्चा-बच्चा अस्पताल की इमारतके निर्माण कार्य में घोर लापरवाही बरती गई। कछुआ चाल से चला निर्माण कार्य जब आठ साल बाद पूरा हुआ तो याद आई कि अस्पताल का रैंप ही नहीं बना। यानी पूरे अस्पताल की इमारत का डिजाइन ही गलत था। इस लापरवाही ने प्रोजेक्ट को कुछ सालों के लिए लटका दिया है। जबकि निर्माण कार्य की निर्धारित अवधि तीन से चार साल के बीच थी। अब यह कब पूरा होगा इसका जवाब अधिकारियों के पास भी नहीं है।

गांधीनगर अस्पताल के ओपीडी कांप्लेक्स के सामने बन रहा 200 बिस्तरों की क्षमता वाला जच्चा बच्चा अस्पताल साल 2011-12 में तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री गुलाम नबी आजाद के समय मंजूर हुआ था। प्रोजेक्ट पर 50 करोड़ खर्च होने थे। इसे पूरा करने की अवधि तीन से चार साल के बीच निर्धारित की थी। प्रोजेक्ट सुस्त रफ्तार से शुरू हुआ। आरोप लगे कि इसमें फंड जारी करने में देरी हुई। बाद में फंड आना शुरू हुआ तो इसके डिजाइन को लेकर कई कमियां निकाली जाने लगीं। साल 2018 के अंत में इमारत का काम पूरा हो गया। जब इसका निरीक्षण हुआ तो सामने आया कि मरीजों के लिए रैंप नहीं बनाई गई है। सबसे ऊपर वाली मंजिल में मरीजों के लिए एयर कंडीशन की सुविधा भी नहीं थी। कमी सामने आने पर निर्माण एजेंसी और विभाग हरकत में आया। आनन-फानन रैंप बनाने का काम शुरू किया। यह काम लगभग पूरा होने पर है। छोटी सी गलती के कारण प्रोजेक्ट में दो साल की और देरी हो गई। अस्पताल की इमारत में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की व्यवस्था नहीं थी। अस्पताल का निर्माण जो कि साल 2015 तक पूरा हो जाना चाहिए था, वह 2019 के अंत तक भी पूरा नहीं हो पाया।

टीम ने निकाली थी कमियां

मई में जीएमसी की प्रिंसिपल डॉ. सुनंदा रैना ने विभिन्न विभागों के एचओडी के साथ निर्माणाधीन इमारत का निरीक्षण किया था। इसमें कई बदलाव करने के सुझाव दिए। अस्पताल में गायनाकालोजी, पेडियाट्रिक्स, रेडियालोजी, माइक्रोबायोलॉजी, पैथोलॉजी और बायोकैमिस्ट्री विभाग भी होंगे। सभी विभागों के एचओडी ने कहा कि इमारत का निर्माण करते समय उनका सुझाव नहीं लिया गया था। अगर लिया होता तो इसमें कई बदलाव किए जाते। अस्पतालों में डाक्टरों के बैठने के लिए कमरे तक नहीं बनाए गए थे। आइसीयू और निको वार्ड के लिए भी सही व्यवस्था नहीं थी।

अतरिक्त स्टाफ भी नहीं

अस्पताल को चलाने के लिए अतिरिक्त डॉक्टर, पैरामेडिकल स्टाफ और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों के पद भी सृजित होने थे। सभी विभागों ने जरूरत के लिहाज से प्रस्ताव बनाकर दे दिया था। 237 पद सृजित होने हें लेकिन यह फाइल भी अभी वित्त विभाग के पास ही पड़ी हुई है। इस पर भी कोई फैसला नहीं हुआ है। अभी अस्पताल के लिए जरूरी उपकरण भी नहीं आए हैं।

एसएमजीएस ही सहारा

इस समय जम्मू संभाग के मरीजों के लिए एकमात्र जच्चा-बच्चा अस्पताल श्री महाराजा गुलाब सिंह अस्पताल ही है। इस अस्पताल में औसतन हर दिन 70 से 80 प्रसव होते हैं। कई बार मरीजों का अधिक रश होने के कारण एक-एक बिस्तर पर दो महिलाओं को भर्ती किया जाता है। अभी इस अस्पताल में भी अतिरिक्त वार्ड बनाने का काम शुरू हुआ है, लेकिन इसमें भी तीन से चार साल लग जाएंगे। अस्पताल में जम्मू शहर के अलावा पूरे 10 जिलों से गर्भवती महिलाओं को यहां पर रेफर किया जाता है।

पार्किंग के लिए उचित व्यवस्था नहीं अस्पताल में डॉक्टरों व स्टाफ की गाडिय़ों की पार्किंग के लिए जो अंडर ग्राउंड व्यवस्था की गई है, वह भी कम है। इसी अस्पताल की इमारत के सामने पहले से ही ओपीडी ब्लाक है। जब दोनों इमारतों में मरीज आना शुरू हो जाएंगे तो यहां पर पार्किंग की भी बड़ी समस्या हो सकती है।

जल्द शुरू होगा अस्पताल

अस्पताल का निर्माण कार्य लगभग पूरा हो चुका है। जो भी कमियां हैं, उन्हें पूरा किया जा रहा है। उम्मीद है कि अस्पताल को जल्दी ही मरीजों के लिए खोल दिया जाएगा।

- अटल ढुल्लू, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव 200 बिस्तरों का बन रहा है अस्पताल  2011-12 में तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद के समय शुरू हुआ थाअस्पताल में आठ साल बाद याद आई रैंप बनाने की गांधी नगर अस्पताल में जच्चा-बच्चा अस्पताल के निर्माण कार्य में लापरवाही की हद आठ साल से जारी है निर्माण कार्य, अभी भी जल्द पूरा होने की उम्मीद नहीं प्रोजेक्ट 50 करोड़ खर्च होने थे प्रोजेक्ट पर 04 साल अवधि रखी गई थी प्रोजेक्ट के पूरा होने पर

chat bot
आपका साथी