ब्रिगेडियर सुचेत सिंह के रूप में जम्मू ने खोया एक मजबूत अभिभावक

इससे पूर्व में बिग्रेडियर सुचेत सिंह पूर्व सैनिक सेवा परिषद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी रहे थे। पूर्व सैनिकों के लिए भी उनका योगदान महत्वपूर्ण रहा। वर्ष 2008 में हुए श्री अमरनाथ भूमि आंदोलन में भी उन्होंने अपने प्रभाव का अमिट छाप छोड़ा।

By Rahul SharmaEdited By: Publish:Fri, 14 Jan 2022 04:41 PM (IST) Updated:Fri, 14 Jan 2022 04:41 PM (IST)
ब्रिगेडियर सुचेत सिंह के रूप में जम्मू ने खोया एक मजबूत अभिभावक
वर्ष 2008 में उन्हें जम्मू कश्मीर प्रांत के संघचालक की जिम्मेदारी दी गई।

जम्मू, लोकेश चंद्र मिश्र : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत संघचालक ब्रिगेडियर सुचेत सिंह के रूप में जम्मू ने एक मजबूत अभिभावक खो दिया। वह न केवल राष्ट्रीय विचारधारा के प्रखर संवाहक थे, बल्कि सच्चे मायने में समाज के सेवक थे। कई मोर्चों पर उन्होंने खुद को साबित किया। सेवानिवृत्ति के बाद कई संगठनों में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हुए समाज के हर वर्ग के लोगों के उत्थान के लिए उन्होंने काम किया। श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड की भूमि के लिए जम्मू में 64 दिन तक चले आंदोलन को अंजाम तक पहुंचाने में संघर्ष समिति और सरकार के बीच ब्रिगेडियर सुचेत सिंह ने सूत्रधार की भूमिका निभाई थी।

हृदय से सरल और विचारधारा से दृढ़ व्यक्तित्व वाले ब्रिगेडियर सिंह खुद को हमेशा मिट्टी से जुड़े कार्यकर्ता ही मानते थे। यह उनके नाम से भी स्पष्ट होता था। मूलत: सुचेतगढ़ के रहने वाले सुचेत सिंह 1997 में सेना से रिटायर होने के बाद से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में काफी सक्रिय हो गए थे। उन्होंने संघ में विभिन्न दायित्वों का कुशलतापूर्वक निर्वहन किया, जिसके चलते संघ मुख्यालय तक उन्होंने अपनी विशेष पहचान बनाई।

ब्रिगेडियर सुचेत सिंह 2006 में श्री गुरु जी जन्म शताब्दी समारोह समिति जम्मू कश्मीर के अध्यक्ष और संघ के विभाग संघचालक रहे। वर्ष 2008 में उन्हें जम्मू कश्मीर प्रांत के संघचालक की जिम्मेदारी दी गई। इससे पूर्व में बिग्रेडियर सुचेत सिंह पूर्व सैनिक सेवा परिषद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी रहे थे। पूर्व सैनिकों के लिए भी उनका योगदान महत्वपूर्ण रहा। वर्ष 2008 में हुए श्री अमरनाथ भूमि आंदोलन में भी उन्होंने अपने प्रभाव का अमिट छाप छोड़ा। 64 दिन तक चले आंदोलन के दौरान वह हर दिन गीता भवन स्थित श्री अमरनाथ संघर्ष समिति के कार्यालय में डट कर हर स्थिति पर नजर बनाए रहे। उनकी रणनीति आखिरकार रंग भी लाई।

जमीन आंदोलन मेें संघर्ष समिति और सरकार के बीच सूत्रधार थे ब्रिगेडियर : जमीन आंदोलन जम्मू के हक की लड़ाई बन गई थी। इस आंदोलन के दौरान तत्कालीन राज्यपाल एनएन वोहरा ने संघर्ष समिति से वार्ता के लिए बलोरिया कमेटी का गठन किया था। उस समय संघर्ष समिति की ओर से वार्ता के लिए एडवोकेट लीलाकरण की अध्यक्षता में गठित चार सदस्यीय कमेटी में बिग्रेडियर सुचेत सिंह भी प्रमुख सदस्य थे। श्री अमरनाथ यात्रा संघर्ष समिति और सरकार के बीच उस समय हुए समझौते में ब्रिगेडियर सुचेत सिंह ने महत्वपूर्ण कड़ी की तरह काम किया था। यूं कहें कि 64 दिन बाद आंदोलन सफलतापूर्वक संपन्न होने में वह सूत्रधार बनकर सामने आए थे।

कोरोना महामारी के दौरान हालात पर रखते थे नजर : कोरोना महामारी के दौरान जम्मू-कश्मीर के हालात पर वह पैनी नजर रखते थे। संघ के द्वारा किए जा रहे सेवा कार्यों पर भी नजर रखते थे। वर्ष 2020 में कोरोना की पहली लहर के दौरान ब्रिगेडियर सिंह संघ द्वारा जारी सेवा कार्यों के प्रति बेहद गंभीरता से काम किया। हालात समान्य होने पर उन्होंने पत्रकार वार्ता कर समाज में संघ के स्वयंसेवकों के योगदान के बारे में जानकारी दी। कश्मीरी हिंदू विस्थापितों, सीमावर्ती विस्थापितों और समाज के हर वर्ग की वह हमेशा चिंता करते थे।

पिछले साल संघ प्रमुख उनसे मिलने आवास पर गए थे : चौदह साल तक प्रांत संघचालक रहे ब्रिगेडियर सुचेत सिंह संघ प्रमुख डा. मोहन भागवत के दिल में भी विशेष जगह बनाई थी। पिछले साल जब भागवत जम्मू प्रवास पर आए थे तो वे ब्रिगेडियर सिंह का कुशल-क्षेम पूछने उनके निवास स्थान पर भी गए थे। दरअसल, ब्रिगेडियर एक साल से अस्वस्थ चल रहे थे। वह काफी समय तक अस्पताल में भर्ती रहे। आखिरकार उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई और वीरवार देर रात को उन्होंने अपने सैनिक कालोनी जम्मू स्थित आवास पर अंतिम सांस ली।

सेवानिवृत्ति के बाद ही जुड़े थे संघ से : सनातन धर्म सभा के अध्यक्ष पुरुषोत्तम दधिचि ने कहा कि वह किशोरवय से स्वयंसेवक नहीं थे, लेकिन सेवानिवृत्ति के बाद आरएसएस से जुड़ कर उन्होंने जो काम किया, वह अच्छे-अच्छे स्वयंसेवक नहीं कर पाते हैं। उनमें कुशल नेतृत्व क्षमता थी। किसी भी स्वयंसेवक के लिए वह मार्गदर्शक की तरह थे। उन्होंने कहा कि उनकी यादों और समाज में योगदान को इस जीवन में समेटना संभव नहीं है। वह हमेशा राष्ट्र के उत्थान में विश्वास करते थे। उनके जाने से समाज को बड़ी क्षति हुए। जम्मू ने एक अभिभावक खो दिया।

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