Amla Festival 2020 : जम्मू-कश्मीर में सोमवार को मनाई जाएगी आंवला नवमी

संतान और पारिवारिक सुखों की प्राप्ति के लिए रखा जाने वाला पारंपरिक पर्व आवंला नवमी सोमवार को मनाया जाएगा। गोपाष्टमी से अगले दिन ही कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी को आमला नवमी के नाम से मनाया जाता है।

By VikasEdited By: Publish:Sun, 22 Nov 2020 10:21 AM (IST) Updated:Sun, 22 Nov 2020 10:21 AM (IST)
Amla Festival 2020 : जम्मू-कश्मीर में सोमवार को मनाई जाएगी आंवला नवमी
संतान और पारिवारिक सुखों की प्राप्ति के लिए रखा जाता है।

जम्मू, जागरण संवाददाता । संतान और पारिवारिक सुखों की प्राप्ति के लिए रखा जाने वाला पारंपरिक पर्व आवंला नवमी सोमवार को मनाया जाएगा। गोपाष्टमी से अगले दिन ही कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी को आमला नवमी के नाम से मनाया जाता है। जैसा की नाम से ही स्पष्ट है इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है। दीया व धूप जलाकर आंवले के वृक्ष की 108 बार परिक्रमा की जानी चाहिए। अपनी सामर्थ्यानुसार ब्राह्मण को दान दक्षिणा दी जाती है।इस दिन भोजन में आंवले का सेवन जरुर करना चाहिए।

पंडित विनोद शास्त्री ने बताया कि आंवला नवमी का महत्व इसी बात से समझा जा सकता है कि इसी दिन द्वापर युग का प्रारंभ हुआ था। जिसमें स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था। आंवला नवमी के दिन ही भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन-गोकुल की गलियां छोड़कर मथुरा प्रस्थान किया था। संतान और पारिवारिक सुखों की प्राप्ति के लिए रखा जाता है। व्रत इस दिन उन्होंने अपनी बाल लीलाओं का त्याग करके कर्तव्य के पथ पर पहला कदम रखा था। इसी दिन से वृंदावन की परिक्रमा भी प्रारंभ होती है।यह व्रत पति-पत्नी साथ में रखें तो उन्हें इसका दोगुना शुभ फल प्राप्त होता है। आंवला नवमी के दिन स्नान आदि करके किसी आंवला वृक्ष के समीप जाएं। उसके आसपास साफ-सफाई करके आंवला वृक्ष की जड़ में शुद्ध जल अर्पित करें। फिर उसकी जड़ में कच्चा दूध डालें।

पूजन सामग्रियों से वृक्ष की पूजा करें और उसके तने पर कच्चा सूत या मौली 8 परिक्रमा करते हुए लपेटें। कुछ जगह 108 परिक्रमा भी की जाती है। इसके बाद परिवार के सुख-समृद्धि की कामना करके वृक्ष के नीचे ही बैठकर परिवारए मित्रों सहित भोजन किया जाता है। आंवला को वेद-पुराणों में अत्यंत उपयोगी और पूजनीय कहा गया है। आंवला का संबंध कनकधारा स्तोत्र से भी है।

आंवला नवमी और शंकराचार्य की कथा

एक कथा के अनुसार एक बार जगद्गुरु आदि शंकराचार्य भिक्षा मांगने एक कुटिया के सामने रुके। वहां एक बूढ़ी औरत रहती थी। जो अत्यंत गरीबी और दयनीय स्थिति में थी। शंकराचार्य की आवाज सुनकर वह बूढ़ी औरत बाहर आई। उसके हाथ में एक सूखा आंवला था। वह बोली महात्मन मेरे पास इस सूखे आंवले के सिवाय कुछ नहीं है जो आपको भिक्षा में दे सकूं।

शंकराचार्य को उसकी स्थिति पर दया आ गई और उन्होंने उसी समय उसकी मदद करने का प्रण लिया। उन्होंने अपनी आंखें बंद की और मंत्र रूपी 22 श्लोक बोले। ये 22 श्लोक कनकधारा स्तोत्र के श्लोक थे।

मां लक्ष्मी ने दिव्य दर्शन दिए इससे प्रसन्न होकर मां लक्ष्मी ने उन्हें दिव्य दर्शन दिए और कहा कि शंकराचार्य, इस औरत ने अपने पूर्व जन्म में कोई भी वस्तु दान नहीं की। यह अत्यंत कंजूस थी और मजबूरीवश कभी किसी को कुछ देना ही पड़ जाए तो यह बुरे मन से दान करती थी। इसलिए इस जन्म में इसकी यह हालत हुई है। यह अपने कर्मों का फल भोग रही है। इसलिए मैं इसकी कोई सहायता नहीं कर सकती।

शंकराचार्य ने देवी लक्ष्मी की बात सुनकर कहा, हे महालक्ष्मी इसने पूर्व जन्म में अवश्य दान-धर्म नहीं किया है। लेकिन इस जन्म में इसने पूर्ण श्रद्धा से मुझे यह सूखा आंवला भेंट किया है। इसके घर में कुछ नहीं होते हुए भी इसने यह मुझे सौंप दिया। इस समय इसके पास यही सबसे बड़ी पूंजी है। क्या इतना भेंट करना पर्याप्त नहीं है। शंकराचार्य की इस बात से देवी लक्ष्मी प्रसन्न हुई और उसी समय उन्होंने गरीब महिला की कुटिया में स्वर्ण के आंवलों की वर्षा कर दी।

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