अमशीपोरा मुठभेड़ में सेना की 62 RR बटालियन चर्चा में, जानिए क्या है इस बटालियन की कहानी!

यह तीनों आतंकी अब राजौरी के लापता श्रमिक साबित हो गए हैं और मुठभेड़ में शामिल अधिकारी व जवान कानूनी कार्रवाई का सामना कर रहे हैं।

By Rahul SharmaEdited By: Publish:Sat, 19 Sep 2020 01:20 PM (IST) Updated:Sat, 19 Sep 2020 01:23 PM (IST)
अमशीपोरा मुठभेड़ में सेना की 62 RR बटालियन चर्चा में, जानिए क्या है इस बटालियन की कहानी!
अमशीपोरा मुठभेड़ में सेना की 62 RR बटालियन चर्चा में, जानिए क्या है इस बटालियन की कहानी!

श्रीनगर, नवीन नवाज। अमशीपोरा मुठभेड़ के साथ चर्चा में आई सेना की 62 राष्ट्रीय राइफल्स (आरआर) ने बीते साढ़े तीन साल में करीब 20 बड़े अभियान चलाए। इनमे से सिर्फ पांच ही मुठभेड़ में बदले और राजौरी के तीन लापता मजदूरों समेत चार आतंकी मारे गए हैं। वर्ष 2017 से अब तक 62 आरआर के एक मेजर समेत तीन सैन्यकर्मी शहीद व दो अन्य जख्मी हुए हैं।

सूत्रों के अनुसार, अमशीपोरा शोपियां में गत 18 जुलाई को हुई मु़ठभेड़ में राजौरी के तीन लापता मजदूरों को मार गिराने वाली 62 आरआर की आतंकरोधी अभियानों के संदर्भ में बीते चार सालों के दौरान कोई उल्लेखनीय उपलब्धि नहीं रही है। अलबत्ता, कथित रूप से फर्जी मुठभेड़ का दाग जरूर लग गया है। सूत्रों ने बताया कि अमशीपोरा में राजौरी के तीन लापता मजदूरों की मुठभेड़ में मौत से पहले 62 आरआर ने नौ फरवरी 2017 को कुलगाम के तांत्रेपोरा में एक अभियान चलाया था। इस अभियान में हुई मुठभेड़ में लश्कर-ए-तैयबा का एक आतंकी मारा गया था। इसके बाद 27 जुलाई 2017 को मात्रिबुग में 62 आरआर के जवानों की आतंकियों से मुठभेड़ हुई। इसमें आतंकी बच निकले और 62 आरआर के दो जवान जख्मी हुए थे।

मात्रिबुग मुठभेड़ के लगभग एक सप्ताह के भीतर तीन अगस्त 2017 को जीरपोरा शोपियां में 62 आरआर के जवानों ने आतंकियों के छिपे होने की सूचना पर तलाशी अभियान चलाया था। तलाशी के दौरान आतंंकियों ने हमला कर दिया। हमले में एक मेजर व दो जवान शहीद हो गए। आतंकी बच निकले थे।

जीरपोरा मुठभेड़ के बाद 62 आरआर ने 19 व 28 अगस्त 2017 को और उसके बाद आठ सितंबर और 25 अक्टूबर 2017 को शोपियां के विभिन्न इलाकों में अलग-अलग तलाशी अभियान चलाए। नवंबर 2017 की 6, 12, 20, 21 और 25 तारीख को भी शोपियां जिले के विभिन्न इलाकों में घेराबंदी करते हुए 62 आआर के जवानों ने तलाशी ली।

वर्ष 2017 में 62 आरआर का अंतिम अभियान 17 दिसंबर को रहा। यह अभियान करीब छह गांवों में चलाया गया था। अलबत्ता, तीन अगस्त 2017 के बाद किसी भी जगह 62 आरआर को अपने अभियान में न आतंकियों का कोई ठिकाना मिला और न कभी आतंकियों के साथ मुठभेड़ हुई।

वर्ष 2019 में कोई बड़ा अभियान नहीं: वर्ष 2018 में 62 आरआर ने पांच अगस्त को कुलगाम के दमहाल इलाके में एक तलाशी अभियान चलाया। इस अभियान के दौरान बीते एक साल में पहली बार 62 आरआर के जवानों की आतंकियों से मुठभेड़ हुई, लेकिन आतंकी फरार होने में कामयाब रहे। वर्ष 2019 में 62 आरआर ने कोई बड़ा अभियान नहीं चलाया और अपने शिविरों के आसपास के इलाकों में ही इसके जवान नियमित गश्त तक सीमित रहे।

इस वर्ष भी बड़ी सफलता नहीं: मौजूदा साल 2020 में 62 आरआर के जवानों ने बुनगाम कुलगाम में एक आतंकी ठिकाने पर दबिश दी। आतंकी जवानों क पहुंचने से पहले ही वहां से भाग निकले थे। मुठभेड़ नहीं हुई। अलबत्ता, आतंकी ठिकाने से एसाल्ट राइफल की दो मैगजीन जरूर बरामद हुई। इसके बाद 28 मई को शोपियां के मानलू में, 31 मई को रामनगरी में और 16 जुलाई को केल्लर में 62 आरआर के जवानों ने तलाशी अभियान चलाए। इन अभियानों में एक भी गोली नहीं चली और न आतंकियों का कोई ठिकाना मिला। आतंकियों का कोई ओवरग्राउंड वर्कर भी नहीं मिला।

इसके बाद 18 जुलाई का अमशीपोरा में 62 आरआर के जवानों ने तीन आतंकियों को मार गिराने का दावा किया। यह तीनों आतंकी अब राजौरी के लापता श्रमिक साबित हो गए हैं और मुठभेड़ में शामिल अधिकारी व जवान कानूनी कार्रवाई का सामना कर रहे हैं।  

chat bot
आपका साथी