जन्मदिन विशेष: जब चुंबक होने के शक के कारण तोड़ दी गई थी ध्यानचंद की स्टिक

ध्यानचंद ने भारत को लगातार तीन ओलंपिक खेलों 1928, 1932 और 1936 में भारत को गोल्ड मेडल जितवाया।

By Lakshya SharmaEdited By: Publish:Wed, 29 Aug 2018 03:45 PM (IST) Updated:Wed, 29 Aug 2018 05:28 PM (IST)
जन्मदिन विशेष: जब चुंबक  होने के शक के कारण तोड़ दी गई थी ध्यानचंद की स्टिक
जन्मदिन विशेष: जब चुंबक होने के शक के कारण तोड़ दी गई थी ध्यानचंद की स्टिक

 नई दिल्ली, जेएनएन। 29 अगस्त यानी हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का जन्मदिन, इस दिन को भारत में खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। मेजर ध्यानचंद को ना केवल भारत का बल्कि दुनिया का सर्वश्रेष्ट हॉकी खिलाड़ी माना जाता है। जहां क्रिकेट में डॉन ब्रैडमैन की जगह है वहीं हॉकी में ध्यानचंद की है। सिर्फ ध्यानचंद नहीं उनका पूरा परिवार हॉकी से जुड़ा हुआ है। उनके भाई और बेटे भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।

आपको बता दें कि ध्यानचंद ने 16 साल की उम्र में सेना में शामिल हो गए थे, उसके बाद 56 साल की उम्र में वह सेना से रिटायर हुए। सेना से रिटायर होने से पहले वह मेजर रैंक तक पहुंचे। हॉकी के इस जादूगर ने 1928 के एम्स्टर्डम ओलंपिक में 14 गोल किए। उस ओलंपिक में वह सबसे ज्यादा गोल करने वाले खिलाड़ी थे। इससे महत्वपूर्ण बात कि उन्होंने अपने पुरे करियर में 400 से ज्यादा गोल दागे हैं।

1928 के बाद ध्यानचंद का शानदार प्रदर्शन 1932 के ओलंपिक में भी देखने को मिला, उस ओलंपिक के फाइनल में अमेरिका के खिलाफ इस महान खिलाड़ी ने 8 गोल दागे थे और भारत 24-1 से जीतने में सफल रहा था। ध्यानचंद ने तो 8 गोल किए ही, उनके छोटे भाई रूप सिंह ने भी 10 गोल दाग अमेरिका के डिफेंस को ध्वस्त कर दिया।

ध्यानचंद के इस जबरदस्त प्रदर्शन के बाद नीदरलैंड्स के अधिकारियों ने ध्यानचंद का स्टिक तक तोड़ दिया, दरअसल उन्हें शक था कि ध्यानचंद की हॉकी में चुंबक लगी हुई है हालांकि उन्हें इसमें कुछ नहीं मिला और ध्यानचंद इसके बाद भी गोल पर गोल बरसाते रहे।

ध्यानचंद ने भारत को लगातार तीन ओलंपिक खेलों 1928, 1932 और 1936 में भारत को गोल्ड मेडल जितवाया। साल 1956 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया। 

जब हिटलर ने दिया ध्यानचंद को जर्मनी से खेलने का ऑफर

साल 1932 में यानी भारत की आजादी से पहले, बर्लिन ओलपिंक में दुनिया ने ध्यानचंद का ऐसा रूप देखा, जिसके बाद सबने मान लिया कि ये खिलाड़ी कोई आम खिलाड़ी नहीं है। ओलंपिक के फाइनल में भारत का मुकाबला जर्मनी से था। खिताबी मुकाबला देखने के लिए जर्मनी के तानाशाह हिटलर भी उस दिन स्टेडियम में मौजूद थे।

उस मुकाबलें को जर्मनी किसी भी तरह जीतना चाहती थी इसलिए वह मुकाबले के बीच धक्का मुक्की भी करने लगे। ध्यानचंद तो जर्मनी के गोलकीपर से टकराने के बाद गंभीर रूप से घायल हो गए और उनके दांत तक टूट गए। इसके बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और वह ना केवल मैदान पर लौटे बल्कि भारत को 8-1 से भी जीत दिलाई।

हिटलर के सामने ध्यानचंद ने जर्मनी को रौंद दिया था। इसके बाद हिटलर ने इस महान खिलाड़ी को जर्मनी की नागरिकता के साथ जर्मन सेना में कर्नल बनाने तक प्रस्ताव दे दिया हालांकि ध्यानचंद ने इस प्रस्ताव को बड़ी विनम्रता से ठुकरा दिया।

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