चिंतपूर्णी के कई गांव मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे

समाज के किसी उपेक्षित व पिछड़े वर्ग या क्षेत्र विशेष के उत्थान के लिए सरकारी स्तर पर प्रयास करने की लोकतांत्रिक व संविधान में व्यवस्था है। गाहे-बगाहे नेतागण अपने भाषणों में ऐसा स्तुति गान भी निरंतर करते रहते हैं। बावजूद चितपूर्णी क्षेत्र के चार गांव इसलिए विकास से वंचित रह गए हैं क्योंकि वहां के मतदाताओं का किसी जनप्रतिनिधि की जीत व हार पर फर्क नहीं पड़ने वाला है। ऐसे में जनप्रतिनिधियों ने भी अपना समय व श्रम ऐसे इलाकों में बेकार करना उचित नहीं

By JagranEdited By: Publish:Fri, 22 Mar 2019 04:14 PM (IST) Updated:Fri, 22 Mar 2019 04:14 PM (IST)
चिंतपूर्णी के कई गांव मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे
चिंतपूर्णी के कई गांव मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे

संवाद सहयोगी, चितपूर्णी : क्षेत्र के बहिम्बा, कुनेत रतियां और अरडियाला गांव आजादी के बाद भी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। अरडियाला गांव की जनसंख्या सिर्फ छह रह गई है, जो 1981 में साठ से ज्यादा थी। इसी तरह कुनेत रतियां में अब कोई परिवार नहीं रहता, जबकि कुछ वर्ष पहले गांव में आठ परिवारों का अस्तित्व था। ऐसी ही स्थिति बहिम्बा में भी बनती नजर आ रही है। इन गांवों के पलायन करने से पहले स्थानीय लोगों ने भी सब्र का लंबे समय तक घूंट पिया। आज नहीं तो कल सड़क का निर्माण या कोई स्वास्थ्य केंद्र गांव में बनेगा, ऐसे ही सपनों की उधेड़बुन में कई साल बीत गए। गांव के कई व्यक्ति जब बीमार हुए तो उन्हें अस्पताल में पहुंचाने के लिए पालकी का सहारा लेना पड़ा। कुनेत रतियां गांव में जगदीश राम की जान बच जाती, अगर यहां सड़क सुविधा होती। ऐसी ही व्यथा इन तीन गांवों के अन्य सदस्यों की भी रही। बावजूद स्थिति में सुधार नहीं हुआ तो उन्होंने गांव को छोड़ने में ही बेहतरी समझी।

स्थानीय लोगों विकास, श्रेष्ठा, अशोक, विकास, किशनी देवी और रामस्वरूप आदि का कहना है कि उनके साथ सरकार व जनप्रतिनिधियों ने दोयम दर्जा वाला व्यवहार किया है। वहीं, जवाल पंचायत की प्रधान सुमन देवी का कहना था कि पंचायत ने अपनी तरफ से बहिम्बा के लिए रास्ते का निर्माण करवाया था। दोनों गांवों के लिए सड़कें बनाने के लिए पंचायत द्वारा प्रस्ताव भी पारित किए गए हैं।

बहिम्बा स्कूल पर भी लटक गए ताले

सरकारी संस्थान के नाम पर बहिम्बा गांव में एक राजकीय प्रारंभिक विद्यालय था, लेकिन छात्रों की घटती संख्या के बाद सरकार ने छह वर्ष पूर्व इस स्कूल को भी बंद कर दिया। इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि सरकारी भवन होने के बावजूद बेकार पड़ा है और इसका ग्रामीणों को भी कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है। ऐसा ही हाल इस गांव में बनी सार्वजनिक सराय का भी है, जो पूरी तरह से झाड़ियों से ढक गई है।

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