कभी शव वाहन चलाने वाले सरबजीत सिंह बॉबी अब बन गए हैं गरीबों के मसीहा

बॉबी को लोग वेला भले ही कहें, लेकिन उनके नेक काम को देख यह कहा जा सकता है कि उन्हें छोड़ दुनिया का हर शख्स वेला है, जो सिर्फ खुद के लिए जी रहा है।

By Sachin MishraEdited By: Publish:Sun, 07 Oct 2018 12:22 PM (IST) Updated:Sun, 07 Oct 2018 02:00 PM (IST)
कभी शव वाहन चलाने वाले सरबजीत सिंह बॉबी अब बन गए हैं गरीबों के मसीहा
कभी शव वाहन चलाने वाले सरबजीत सिंह बॉबी अब बन गए हैं गरीबों के मसीहा

शिमला, अजय बन्याल। लोग उन्हें 'वेला बॉबी' के नाम से जानते हैं। लेकिन यह बंदा बड़े काम है। पंजाबी में वेला का मतलब निठल्ला। यानी जो कुछ न करता हो। सरबजीत सिंह बॉबी खुद को वेला पुकारे जाने पर बुरा नहीं मानते। बल्कि अब तो यह उनका नाम ही पड़ गया है। परिवार के लोग भी उन्हें वेला ही पुकारते हैं। वेला इसलिए क्योंकि वे शव वाहन चलाते हैं। कैंसर अस्पताल में मुफ्त कैंटीन-लंगर चलाते हैं। मुफ्त में रक्त और एंबुलेंस का इंतजाम करते हैं..।

शिमला के लोअर बाजार में जूते-चप्पलों की छोटी सी दुकान चलाने के अलावा सरबजीत साल 2002 से शव वाहन चलाने का काम भी करते हैं। बताते हैं, मैंने करीब 3500 लोगों को उनकी अंतिम मंजिल तक पहुंचाया। इनमें से अधिकांश वे बदनसीब गरीब थे, जो शिमला कैंसर अस्पताल में जिंदगी की जंग हार गए..। बहरहाल, सरबजीत बीते चार साल से उसी अस्पताल में मुफ्त कैंटीन और सामने मुफ्त लंगर चलाने का काम भी कर रहे हैं। 23 रोटी बैंक भी चलाते हैं। हंसते हुए कहते हैं, उन 3500 लोगों की रूह मेरे साथ है, मुझे हिम्मत और प्रेरणा देती है..।

बॉबी को लोग वेला भले ही कहें, लेकिन उनके इस नेक काम को देख कर यह कहा जा सकता है कि उन्हें छोड़ दुनिया का हर वह शख्स 'वेला' है, जो सिर्फ खुद के लिए जी रहा है। यह अस्पताल हिमाचल प्रदेश का एकमात्र कैंसर अस्पताल है। राज्यभर से बड़ी संख्या में ऐसे मरीज यहां पहुंचते हैं, जो बेहद गरीब और असहाय होते हैं। ऐसे सभी मरीजों और उनके तीमारदारों के लिए सुबह-दोहपर-शाम चाय-नाश्ते से लेकर सूप और दोनों वक्त के खाने का पूरा इंतजाम अस्पताल परिसर के कोने में बनी कैंटीन और ठीक सामने ही लंगर की शक्ल में किया जाता है।

किसी को रक्त की जरूरत पड़ जाए या एम्बुलेंस की या फिर शव वाहन की, बॉबी इस काम के लिए भी 24 घंटे उपलब्ध रहते हैं। वे कहते हैं, 'गरीब का मुंह गुरु की गोलक' यानी जरूरतमंद के मुंह में भोजन का निवाला पहुंचना ही भगवान की गुल्लक में दान के बराबर है..। गुरु नानक देव जी ने यही सीख दी है। सरबजीत सिंह की इस सोच और इसे साकार कर रही उनकी संस्था अलमाइटी ब्लेसिंग्स (ईश्र्वर का आशीर्वाद) के चर्चे हिमाचल ही नहीं हर ओर हो रहे हैं। सोशल मीडिया पर भी लोग उनकी तारीफ कर रहे हैं।

शिमला के 13 हजार स्कूली बच्चे देते हैं रोटियां 

सरबजीत का यह लंगर और 23 रोटी बैंक बच्चों की मदद से चल रहे हैं। जी हां, उनकी अपील पर शिमला के दर्जनभर स्कूलों के करीब 13 हजार बच्चे हर दिन अपने टिफिन में थोड़ा सा अतिरिक्त खाना लाने लगे हैं, जिसे एकत्र कर सरबजीत लंगर और रोटी बैंक में पहुंचाते हैं। यह सारा ताजा खाना उसी दिन सुबह से रात के बीच इस्तेमाल हो जाता है। डीएवी स्कूल न्यू शिमला में पढ़ने वाली प्रियल निहाल्टा ने कहा कि मैं टिफिन में तीन अतिरिक्त रोटियां लाती हूं। लोगों की मदद कर मुझे अच्छा लगता है। एक अभिभावक सुजाता शर्मा बताती हैं, मैं पिछले तीन साल से रोटियां दे रही हूं। महसूस होता है कि चलो जिंदगी में कुछ तो अच्छा कर रहे हैं।

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