जिससे गला सूखने लगे पर तत्व न मिले, ऐसी चर्चा का कोई लाभ नहीं...कहने वाले राज्यपाल अर्लेकर को राष्ट्रपति ने सराहा
राज्यपाल ने एक सूक्ति के माध्यम से अपनी बात रखी। उन्होंने संसद को देश और विधानसभा को प्रदेश का सबसे बड़ा लोकतंत्र का मंदिर बताते हुए कहा कि हमारी परंपरा जायते-जायते तत्वबोध की है यानी चर्चा करने से तत्व का बोध होता है।
शिमला, जागरण टीम। हिमाचल प्रदेश के पूर्ण राज्यत्व की स्वर्णिम जयंती के उपलक्ष्य में विधानसभा के इतिहास में एक और स्वर्णिम पन्ना जुड़ गया। राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द का संबोधन हिमाचल के विषय में कई पहलुओं को समेटे हुए था। विधानसभा अध्यक्ष के आसन के स्थान पर पांच हस्तियों के बैठने का प्रबंध था जिनमें राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर, मुख्यमंत्री ठाकुर जयराम, विधानसभा अध्यक्ष विपिन परमार, विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता मुकेश अग्निहोत्री थे। मुकेश अग्निहोत्री ने पूर्ण राज्यत्व के लिए पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के योगदान को रेखांकित किया और पंडित जवाहर लाल नेहरू के हिमाचल प्रेम को याद किया। मुख्यमंत्री ने हिमाचल प्रदेश के विकास के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के योगदान को रेखांकित किया।
अर्लेकर ने दिया बड़ा संदेश, वादे-वादे जायते तत्वबोध:
सबका भाषण अच्छा था लेकिन राज्यपाल ने सब से कम समय लेते हुए ऐसे बिंदु उभारे कि वह पक्ष और प्रतिपक्ष दोनों के लिए बड़ा संदेश है। राज्यपाल ने यह संदेश भी दिया कि वह विधानसभा की कार्यवाही को टीवी पर देखते रहते हैं और पाते हैं कि विधानसभा अध्यक्ष विपिन सिंह परमार सबको बोलने का अवसर देते हैं। हिमाचल प्रदेश विधानसभा में आए दिन बनने वाले बहिर्गमन के वातावरण और संसद में भी काम न होने देने की प्रवृत्ति पर राज्यपाल ने एक सूक्ति के माध्यम से अपनी बात रखी। उन्होंने संसद को देश और विधानसभा को प्रदेश का सबसे बड़ा लोकतंत्र का मंदिर बताते हुए कहा कि हमारी परंपरा जायते-जायते तत्वबोध: की है यानी चर्चा करने से तत्व का बोध होता है। लेकिन जब चर्चा का लक्ष्य भटक जाए तो वह जायते-जायते कंठ शोष: हो जाता है यानी चर्चा तो हो रही है लेकिन गला सूख रहा है, तत्व की प्राप्ति नहीं हो रही है। राज्यपाल के संबोधन की प्रशंसा राष्ट्रपति ने भी की और कहा कि उन्होंने सारगर्भित वक्तव्य से यह भी बताया है कि वह विधानसभा की कार्यवाही पर कितनी बारीक नजर रखते हैं। बकौल राष्ट्रपति, इसका एक कारण यह भी है कि वह गोवा विधानसभा के अध्यक्ष रह चुके हैं।