इस खास तकनीक से होगा बिजली का उत्पादन, एक फीसद भी नहीं होगी बर्बादी

आइआइटी मंडी के शोधकर्ताओं ने ऊष्मा को अधिक सक्षमता से बिजली में बदलने के लिए थर्मोइलेक्ट्रिकल मैटेरियल्स विकसित किए हैं।

By Babita kashyapEdited By: Publish:Wed, 21 Aug 2019 12:03 PM (IST) Updated:Wed, 21 Aug 2019 12:03 PM (IST)
इस खास तकनीक से होगा बिजली का उत्पादन, एक फीसद भी नहीं होगी बर्बादी
इस खास तकनीक से होगा बिजली का उत्पादन, एक फीसद भी नहीं होगी बर्बादी

मंडी, जेएनएन। ऊर्जा की बढ़ती मांग को देखते हुए दुनियाभर में ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों की तलाश की जा रही है। सौर ऊर्जा से बिजली का उत्पादन किया जा रहा है, लेकिन बढ़ती जरूरतों को देखते हुए यह प्रयास पर्याप्त नहीं हैं। ऊर्जा उत्पादन के लिए ऐसी विधियों पर जोर है जिनसे पर्यावरण को नुकसान न पहुंचे। अब इस दिशा में आइआइटी मंडी के शोधकर्ताओं को बड़ी सफलता हाथ लगी है। उन्होंने ऊष्मा को अधिक सक्षमता से बिजली में बदलने के लिए थर्मोइलेक्ट्रिकल मैटेरियल्स विकसित किए हैं। दावा किया जा रहा है कि अब इसकी मदद से एक फीसद ऊर्जा भी बर्बाद नहीं होगी।

अरसे से सौर ऊर्जा का बिजली उत्पादन के रूप में इस्तेमाल करने पर जोर दिया जा रहा है। हालांकि, ऊर्जा के अन्य स्त्रोतों में भी उतनी ही संभावना है, जबकि उनके बारे में जानकारी कम है। ऊष्मा से बिजली तैयार करना एक आकर्षक संभावना है क्योंकि उद्योग, बिजली संयंत्र, घरेलू उपकरण और ऑटोमोबाइल के परिचालन आदि विभिन्न स्त्रोतों से ऊष्मा पैदा होती है, लेकिन इसमें से अधिकांश बर्बाद चली जाती है।

आइआइटी मंडी के स्कूल ऑफ बेसिक साइंसेस के एसोसिएट प्रोफेसर (भौतिक विज्ञान) डॉ. अजय सोनी के नेतृत्व में शोधर्काओं की एक टीम ऐसे मेटैरियल्स विकसित किए हैं, जो अधिक सक्षमता के साथ ऊष्मा को बिजली में बदल सकते हैं। इसके लिए टीम ने थर्मोइलेक्ट्रिकल मैटेरियल्स पर व्यापक शोध किया है। पर्यावरण से सक्रिय ऊजाई संचय करने और इसे बिजली में बदलने की तकनीक विकसित करने में दिलचस्पी बढ़ी है। भविष्य की इस तकनीक में सूर्य, ताप और मैकेनिकल एनर्जी (यांत्रित ऊर्जा) को ऊर्जा का स्थायी स्रोत माना जाता है। 

 

इस तरह से बनेगी बिजली

बकौल डॉ. अजय सोनी, थर्मोइलेक्ट्रिकल मैटीरियल्स सीबेक इफेक्ट के सिद्धांत पर काम करते हैं। इनमें दो मैटेरियल्स के जंक्शन पर ताप में अंतर होने से बिजली पैदा होती है। एक सामान्य थर्मोइलेक्ट्रिकल मैटेरियल में ट्राइफेक्टा गुणों का होना अनिवार्य है, जो उच्च तापविद्युत शक्ति और बिजली का सुचालक होने, निम्न ताप विद्युत सुचालकता के साथ तापमान का ग्रेडियंट कायम रखने की क्षमता है, पर इन गुणों का आसानी से मेल नहीं होता और इसके लिए कुछ सेमीकंडक्टिंग मैटेरियल्स को और ट्विक (परिवर्तन) कर अच्छी तापवद्यिुत क्षमता हासिल होगी। 

विदेश में भी चल रहा काम

पश्चिमी दुनिया में फोक्सवैगन, वॉल्वो, फोर्ड और बीएमडब्ल्यू जैसी ऑटोमोबाइल कंपनियां तापविद्युत का व्यर्थ ताप वापस पाने की प्रक्रिया विकसित कर रही हैं। इससे ईंधन खपत में तीन से पांच फीसद तक सुधार की संभावना है। थर्मोइलेक्ट्रिकल एनर्जी हार्वेस्टिंग के अन्य संभावित उपयोगों में ज्यादा बिजली खपत करने वाले उपकरण और इलेक्ट्रॉनिक्स, हवाई जहाज और अंतरिक्ष यान से उत्पन्न ताप का उपयोग भी शामिल हैं।

 

ज्यादातर ऊर्जा होती है बर्बाद 

दुनिया की लगभग 65 फीसद ऊर्जा ऊष्मा के रूप में बर्बाद होती है और यह ताप पर्यावरण में पहुंच कर ग्लोबल वार्मिंग की एक बड़ी वजह बन गई है। इस तरह व्यर्थ ऊष्मा को बचा लेने और उसे बिजली में बदल देने से देश को ऊर्जा आत्मनिभर्रता और पर्यावरण संरक्षण का दोहरा लाभ होगा।  

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