98 वर्षीय स्‍वतंत्रता सेनानी शेर-ए-हिंद का निधन, 25 साल की उम्र में आजाद हिंद फौज में हुए थे भर्ती

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज में रहे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शेर सिंह का निधन हो गया।

By Rajesh SharmaEdited By: Publish:Tue, 11 Feb 2020 04:18 PM (IST) Updated:Tue, 11 Feb 2020 04:18 PM (IST)
98 वर्षीय स्‍वतंत्रता सेनानी शेर-ए-हिंद का निधन, 25 साल की उम्र में आजाद हिंद फौज में हुए थे भर्ती
98 वर्षीय स्‍वतंत्रता सेनानी शेर-ए-हिंद का निधन, 25 साल की उम्र में आजाद हिंद फौज में हुए थे भर्ती

सरकाघाट, जेएनएन। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज में रहे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शेर सिंह का निधन हो गया। वे 98 वर्ष के थे। मंगलवार को उनका निधन परसदा हवानी पंचायत के पैतृक गांव त्रिलोचन कोठी में हुआ है। सुबह स्थानीय प्रशासन को उनके देहावसान की सूचना मिली तो एसडीएम जफर इकबाल, डीएसपी चंद्रपाल सिंह और गण्यमान्य लोग उनके घर पहुंचे। प्रशासन ने पूरे राजकीय सम्मान के साथ उन्हें अंतिम विदाई दी। पुलिस की टुकड़ी ने उन्हें सलामी दी।

इस मौके पर कर्नल बाला राम, कैप्टन सुरेंद्र सिंह, कैप्टन वीर सिंह, कैप्टन प्रकाश सिंह, कैप्टन रघुवीर सिंह, समाजसेवी सोहन सिंह हाजरी, मंगतराम नेगी ने शोक संतप्त परिवार के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त कर शेर सिंह के निधन पर दुख जताया। वह दो वर्ष से बीमार थे। उनके इलाज का सारा खर्चा सरकार ही वहन करती थी।  वे अपने पीछे भरा पूरा परिवार छोड़ गए हैं। उनके तीन लड़के, पांच लड़कियां और दोहत-पोते हैं।

नेताजी ने दी थी शेर-ए-हिंद की उपाधि

शेर सिंह पुत्र नरपत राम 25 वर्ष की आयु में आजाद हिंद फौज में भर्ती हो गए थे। उसके बाद अंग्रेजों के विरुद्ध रंगून और बर्मा में आजादी की लड़ाई लड़ी थी। उन्होंने बड़ी बहादुरी से अंग्रेजी सेना से लोहा लिया था। उनकी बहादुरी को देख नेताजी ने उन्हें शेर-ए-हिंद की उपाधि से विभूषित किया था। वह अपनी सैन्य टुकड़ी से बिछुड़ गए और दो वर्ष तक बर्मा के जंगलों की खाक छानते रहे। बाद में किसी तरह जब अपने घर पहुंचे तो देश आजाद हो चुका था। वे खेतीबाड़ी और घर गृहस्थी बसाने में लग गए। जब भारत सरकार ने आजाद हिंद फौज के वीर सैनिकों को पेंशन दी तो वह सम्मानपूर्वक अपना और परिवार का पालन पोषण करने लगे। वह अंतिम समय तक भी हर साल 15 अगस्त और 26 जनवरी के उपमंडल स्तर के समारोह में भाग लेते थे। प्रशासन उन्हें सम्मानपूर्वक घर से लाता और वापस छोड़ता था।

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