तिब्बत के हालात समझने के लिए तिब्बती संघर्ष समझना जरूरी: पेंपा सेरिंग

तिब्बती के चीन के अधिपत्य के बाद वहां के वर्तमान हालातों के बारे में जानने से पूर्व स्वायतता के लिए तिब्बती संघर्ष को समझना बेहद जरूरी है। तिब्बती प्रधानमंत्री पेंपा सेरिंग ने वीरवार को सीयू हिमाचल प्रदेश शिक्षक समिति की ओर से आयोजित स्वामी सत्यानंद स्टोक्स सम्मान समारोह में कही।

By munish ghariyaEdited By: Publish:Thu, 24 Nov 2022 09:00 PM (IST) Updated:Thu, 24 Nov 2022 09:00 PM (IST)
तिब्बत के हालात समझने के लिए तिब्बती संघर्ष समझना जरूरी: पेंपा सेरिंग
पेंपा सेरिंग ने कहा कि तिब्बत के हालात समझने के लिए तिब्बती संघर्ष समझना जरूरी

धर्मशाला, जागरण संवाददाता। तिब्बती के चीन के अधिपत्य के बाद वहां के वर्तमान हालातों के बारे में जानने से पूर्व स्वायतता के लिए तिब्बती संघर्ष को समझना बेहद जरूरी है। यह बात तिब्बती प्रधानमंत्री पेंपा सेरिंग ने वीरवार को सीयू हिमाचल प्रदेश शिक्षक समिति की ओर से आयोजित स्वामी सत्यानंद स्टोक्स सम्मान समारोह में बतौर मुख्यातिथि कही। उन्होंने कहा कि चीन ने तिब्बत में काफी बोर्डिंग स्कूल खोल दिए हैं, जो कि तिब्बत की शिक्षा व संस्कृति के लिए खतरा है। भारतीय सीमाएं तिब्बत के साथ लगती हैं, ऐसे में यह भारत की सुरक्षा को भी खतरा बन सकता है। तिब्बत की मौजूदा स्थिति क्या है, चीन में और विदेश में तिब्बत पर क्या हो रहा है, इसके बारे में जानना आवश्यक है। धर्मगुरु दलाईलामा अहिंसा और करुणा पर जोर देते हैं। निर्वासित तिब्बत भारत के विभिन्न राज्यों सहित विश्व के विभिन्न देशों में रह रहे हैं। हर तिब्बती भारत को आर्यवर्त, बुद्ध की भूमि के रूप में देखता है। केंद्रीय विश्वविद्यालय हिमाचल प्रदेश देश का पहला शिक्षण संस्थान है जहां तिब्बत के इतिहास और राजनीति की पढ़ाई होती है। भारत विशेषकर उत्तर भारत में तिब्बत का मसला अहम है।

धर्म चित्त को साधारण से असाधारण अवस्था में ले जाती है

वहीं तिब्बती पूर्व प्रधानमंत्री एवं सांची यूनिवर्सिटी आफ बुद्धिस्ट स्टडीज के कुलाधिपति प्रोफेसर सामदोंग रिंपोछे ने कहा कि धर्म, दर्शन और संस्कृति के उद्गम स्थल एक होते हुए अस्तित्व अलग हो सकता है। धर्म चित्त को साधारण से असाधारण अवस्था में ले जाती है। राजनैतिक और आर्थिक कारण से जो होता है और जिसको हम कन्वर्शन कहते हैं। वो कपड़े बदलकर नई कपड़े पहनने जैसा होता है। इसमें धर्म की कोई चिन्ह ही नहीं होता है। इससे पूर्व सीयू कुलपति प्रो. एसपी बंसल ने कहा कि केंद्रीय विश्वविद्यालय और इंटरनेशनल बुद्धिस्ट कंफेडरेशन मिलकर "प्रोमोशन आफ बुद्धिस्ट स्टडीज एंड कल्चर अक्रास बुद्धिस्ट सर्किट" पर फरवरी माह में एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन करेंगे। इसके पीछे का उद्देश्य मुख्य रूप से भारत में बुद्ध संस्कृति और बुद्धिस्ट सर्किट के मध्य प्रोमोट करना है। इस सम्मेलन में धर्मगुरु दलाईलामा, हिमाचल के मुख्यमंत्री, राज्यपाल और भारत सरकार से संस्कृति मंत्री के उपस्थित होने की उम्मीद है। इस मौके पर सीयू के पूर्व कुलपति प्रो. कुलदीप चंद अग्निहोत्री सहित अन्य मौजूद रहे।

कौन है स्वामी सत्यानंद स्टोक्स

स्वामी सत्यानंद स्टोक्स सैमुअल एवान स्टोक्स का जन्म अमरीका में हुआ। वर्ष 1904 में 22 वर्ष की आयु में वे भारत आए तथा हिंदू धर्म से प्रभावित होकर उन्होंने हिंदू धर्म अपना लिया। इसके बाद उन्होंने अपना नाम सैमुअल एवान स्टोक्स से सत्यानंद स्टोक्स रख लिया। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने वाले वह पहले अमरीकी थे। भारत में पहली बार वर्ष 1916 में स्वामी सत्यानंद स्टोक्स ने शिमला हिमाचल प्रदेश में सेब की खेती प्रारंभ की थी, बाद में हिमाचल में सेब का उत्पादन 15 हजार पेटियों तक पहुंच गया था।

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