नेताजी ने डलहौजी में बनाई थी आजादी की गुप्त योजनाएं, आज भी सुरक्षित है उनका हर सामान

Subhash chandra bose Jayanti आजाद हिंद फौज के संस्थापक व स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस का डलहौजी से गहरा नाता रहा है।

By Rajesh SharmaEdited By: Publish:Thu, 23 Jan 2020 11:04 AM (IST) Updated:Thu, 23 Jan 2020 03:22 PM (IST)
नेताजी ने डलहौजी में बनाई थी आजादी की गुप्त योजनाएं, आज भी सुरक्षित है उनका हर सामान
नेताजी ने डलहौजी में बनाई थी आजादी की गुप्त योजनाएं, आज भी सुरक्षित है उनका हर सामान

डलहौजी, विशाल सेखड़ी। आजाद हिंद फौज के संस्थापक व स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस का डलहौजी से गहरा नाता रहा है। क्षयरोग होने पर स्वास्थ्य लाभ के लिए वह करीब पांच माह यहां रहे थे और देश की आजादी के लिए कई गुप्त योजनाएं बनाई थीं। नेताजी जिस होटल व कोठी में ठहरे थे, वह आज भी मौजूद हैं। उनके उपयोग किए बेड, कुर्सी, टेबल व अन्य सामान भी सुरक्षित रखा गया है।

हालांकि नेताजी जिस कमरे में ठहरे थे, वहां आज लोगों का जाना वर्जित है। कोई भी व्यक्ति इन जगह के फोटो नहीं ले सकता। बुजुर्गों से यहां के लोगों ने काफी कुछ सुन रखा है कि नेताजी किन परिस्थितियों में यहां पहुंचे थे और उनका कैसे स्वागत हुआ था।

इंग्‍लैंड में सहपाठी रही जेन धर्मवीर की कोठी में ठहरे थे

प्रसिद्ध कवि व साहित्यकार बलदेव मोहन खोसला ने बताया कि 1937 में अंग्रेजों की कैद में नेताजी को क्षय रोग (टीबी) के लक्षण पाए गए थे। इस पर अंग्रेजों ने उन्हें रिहा कर दिया। मई 1937 में वह यहां आए थे। नेताजी यहां होटल मेहर के कमरा नंबर दस में ठहरे थे। इसी दौरान इंग्लैंड में उनकी सहपाठी रही कांग्रेस नेता डॉ. धर्मवीर की पत्नी जेन धर्मवीर को जब नेताजी के डलहौजी में होने का पता चला तो वह भी होटल पहुंच गईं। उन्होंने नेताजी को पंजपूला रोड पर स्थित उनकी कोठी कायनांस में रहने का अनुरोध किया। चूंकि डॉ. धर्मवीर नेताजी के मित्र थे, इसलिए उन्होंने आग्रह स्वीकार कर लिया। कायनांस कोठी ले जाने से पहले तत्कालीन डलहौजी कांग्रेस प्रधान गुलाम रसूल की अगुआई में लोगों ने नेताजी का स्वागत किया था।

डलहौजी स्थित प्राकृतिक चश्मा जिसका पानी पीकर नेताजी को स्वास्थ्य लाभ हुआ था। अब इसका नाम सुभाष बावड़ी रखा गया है। 

नेताजी के सम्मान में रखा बावड़ी व चौक का नाम

जिस चश्मे का पानी पीकर नेताजी को लाभ मिला था, वहां अब एक बावड़ी है जिसे सुभाष बावड़ी नाम से जाना जाता है। इसकी देखरेख नगर परिषद करती है। इसके अलावा डलहौजी में नेताजी के नाम पर एक चौक भी है जहां उनकी आदमकद प्रतिमा लगी है।

डलहौजी की शुद्ध आबोहवा से मिला था स्‍वास्‍थ्‍य लाभ

बलदेव खोसला बताते हैं कि नेताजी यहां करेलनू मार्ग पर सैर करते थे और प्राकृतिक चश्मे का पानी पीते थे। चश्मे के समीप घंटों बैठकर देश को आजाद करवाने की योजनाएं बनाते थे। यह भी कहा जाता है कि नेताजी की गुप्त डाक वहां पर एक्सचेंज होती थी। डलहौजी की शुद्ध आबोहवा में रहने व प्राकृतिक चश्मे का पानी पीने से उन्हें स्वास्थ्य लाभ मिला और अक्टूबर में एक दिन नेताजी बिना किसी से मिले डलहौजी से चले गए। बताया जाता है कि वह यहां से एक लॉरी में पठानकोट गए थे। उक्त लॉरी में पठानकोट से अखबार व रसाले (मैगजीन) इत्यादि की सप्लाई डलहौजी आती थी। जानकारी के अनुसार लॉरी के पीछे एक कुर्सी रखी गई थी जिस पर बैठकर नेताजी पठानकोट तक गए थे। उसके बाद नेताजी फिर से स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े।

डलहौजी का सुभाष चौक जहां नेताजी सुभाष चंद्र बोस की बड़ी प्रतिमा भी लगी है।

लोगों ने किया था भव्य स्वागत

डलहौजी निवासी व्यवसायी राकेश रहलन का कहना है कि उनके पिता तीर्थ दास रहलन बताते थे कि मई 1937 में कांग्रेस प्रधान गुलाम रसूल की अगुआई में नेताजी का यहां भव्य स्वागत हुआ था। नेताजी को डलहौजी के लोगों ने अपनी पलकों पर बिठा लिया था।

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