भक्ति व सत्संग ही जीव के साथी
धरा धेनु और संतों की पुकार सुनकर भवगान समय समय पर अवतरित होकर अपनी लीलाओं से जीवात्मा का कल्याण करते हैं। इसलिए मन वचन और कर्म से भगवान के चरणों के प्रति निष्ठा रखते हुए जीवात्मा को भक्ति के मार्ग पर
संवाद सहयोगी, जसूर : धरा, धेनु और संतों की पुकार सुनकर भगवान समय समय पर अवतरित होकर लीलाओं से जीवात्मा का कल्याण करते हैं। इसलिए मन, वचन और कर्म से भगवान के चरणों के प्रति निष्ठा रखते हुए जीवात्मा को भक्ति के मार्ग पर निरंतर बढ़ाना चाहिए, क्योंकि भक्ति जीवात्मा का वह अमूल्य गहना है जिसे कोई न छीन सकता है न ही चुरा सकता है। यह प्रवचन जसूर स्थित बक्शी निवास पर नवदिवसीय संगीतमयी श्रीराम कथा के दूसरे दिन कथाव्यास सर्वेश्वर शरण महाराज ने किए। उन्होंने कहा कि अंतिम समय में जीव एक सुई तक तो साथ नहीं ले जा सकता है तो फिर यह अनर्गल भागदौड़ में जीव क्यों उलझा है यदि अंत समय में कुछ साथ जाना संभव है तो वह केवल भक्ति, सत्संग और सत्कर्म ही जीव के साथी होते हैं। इसलिए जीव को सदा मन, वाणी और कर्म से सत्कर्म के मार्ग पर निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि जीव को मैं और मेरा के मिथ्य को छोड़कर सदा प्रभु के चितन में लीन रहना चाहिए। इस अवसर पर बीना बक्शी, भारत भूषण बक्शी, आकाश बक्शी, मंजू बक्शी, सुभाष पठानिया, सरदार सिंह पठानिया मौजूद रहे।