करो या मरो की नीति अपनाएंगे पौंग विस्थापित

देश पौंग बांध समिति की बैठक रविवार को प्रधान हंस राज चौधरी की अध्यक्षता में राजा का तालाब के में संपन्न हुई। बैठक में केंद्र राजस्थान व प्रदेश सरकार को लगातार पौंग बांध विस्थापितों के हितों से खिलवाड़ करने का आरोप लगाया गया। प्रधान हंस राज चौधरी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के 1996 के उनके हक में किये गए निर्ण

By JagranEdited By: Publish:Sun, 15 Sep 2019 08:45 PM (IST) Updated:Mon, 16 Sep 2019 07:01 AM (IST)
करो या मरो की नीति अपनाएंगे पौंग विस्थापित
करो या मरो की नीति अपनाएंगे पौंग विस्थापित

संवाद सहयोगी, जसूर : पौंग बांध विस्थापितों ने अनदेखी से खफा होकर करो या मरो की नीति अपनाने का फैसला लिया है। विस्थापितों ने केंद्र, राजस्थान व प्रदेश सरकार पर खिलवाड़ करने का आरोप लगाया है। यह फैसला रविवार को राजा का तालाब में हुई प्रदेश पौंग बांध समिति की बैठक में लिया है।

प्रधान हंसराज चौधरी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के 1996 में उनके हक में किए निर्णय के बाद भी राजस्थान सरकार 1188 राज रकवों को अपने नियंत्रण में लेकर  विस्थापितों को आवंटित नहीं कर पाई है। अभी तक कार्रवाई न होना दर्शाता है कि किसी भी सरकार को विस्थापितों के मामले से कोई लेना-देना नहीं है। वरिष्ठ उपाध्यक्ष रामपाल वर्मा ने आरोप लगाया कि राजस्थान सरकार सुप्रीम कोर्ट के उनके हक में किए निर्णय को  नहीं मान रही है। सभी विस्थापितों को करो या मरो की नीति पर चलना होगा। ऐसे में सभी आंदोलन के लिए तैयार रहें। आंदोलन ही सरकार को कुंभकर्णी नींद से जगाएगा। विस्थापितों को इसके लिए  पौंग डैम का पानी रोकना पड़ेगा। अब सभी को आर-पार की लड़ाई में समझौते के अनुसार जिला गंगानगर में ही आरक्षित भूमि या मुआवजा के लिए लड़ना पड़ेगा।

वर्मा ने कहा कि राजस्थान सरकार कहती है कि प्रथम चरण में जगह नहीं जबकि 1188 मुरब्बों पर अवैध कब्जे हैं। विस्थापितों के 1500 मुरब्बों को वहां की सरकार ने लाल गढि़यों को दे रखा है। लाल गढि़यों के मामले में कहा था कि जब यह पौंग बांध विस्थापितों को भू आवंटन पर उन्हें मुरब्बा छोड़ना पड़ेगा। परंतु कुछ नहीं हुआ। प्रदेश सचिव एचसी गुलेरी ने कहा कि सभी सरकारों का रवैया  विस्थापितों के प्रति अच्छा नहीं रहा हैं।

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यह है मामाला

सुप्रीम कोर्ट का 1996 का विस्थापितों के हक में किया गया फैसला जिला गंगानगर के 1188 अवैध कब्जों पर राजस्थान सरकार विस्थापितों का पुनर्वास लागू नहीं कर पाई। 40 से ज्यादा विस्थापित हकों की खातिर  लड़ते हुए जान गंवा चुके हैं। सालों से मामला प्रदेश सरकार के पास भी लंबित है, जिसे लेकर दोनों ही सरकारों के बीच बातचीत भी हुई है, लेकिन परिणाम अभी शून्य ही है।

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