धर्मशाला सब्जी मंडी में दो भाईयों के साथ नन्‍हीं सेंकी बना रही लिफाफे, गरीबी ने किताबों की जगह हाथ में थमाई रद्दी

हाथों में किताब की जगह अखबार की रद्दी है। उम्र भी कुछ ज्यादा नहीं यही कोई सात आठ साल की है। बारिश हो धूप हो या सर्दी क्षेत्र में कुछ बच्चे ऐसे हैं जो दो वक्त की रोटी कमाने के लिए निकलते हैं।

By Richa RanaEdited By: Publish:Fri, 08 Oct 2021 09:02 AM (IST) Updated:Fri, 08 Oct 2021 09:02 AM (IST)
धर्मशाला सब्जी मंडी में दो भाईयों के साथ नन्‍हीं सेंकी बना रही लिफाफे, गरीबी ने किताबों की जगह हाथ में थमाई रद्दी
आठ वर्ष की सेंकी ने बताया कि वह हर रोज सुबह तड़के यहां पर लिफाफे बेचने आती है।

धर्मशाला, नीरज व्यास। हाथों में किताब की जगह अखबार की रद्दी है। उम्र भी कुछ ज्यादा नहीं यही कोई सात आठ साल की है। बारिश हो धूप हो या सर्दी सुबह जब लोग सैर के लिए निकलते हैं, क्षेत्र में कुछ बच्चे ऐसे हैं जो दो वक्त की रोटी कमाने केलिए निकलते हैं। काम सम्मानजनक करते हैं। लेकिन पीड़ा है तो सिर्फ इतनी कि नन्हीं सी जान के हाथ में भविष्य की तस्वीर उकेरने के लिए एक कापी किताब होनी चाहिए। जबकि यह सब उसके हाथ में नहीं है। उसके हाथ में है तो अखबार की रद्दी।

अखबार की रद्दी से मेहनत कर दिनभर लिफाफे बनाए है और सुबह तड़के ही जब सब्जी मंडी खुलती है तो उस समय सेंकी अपने भाइयों के साथ सब्जी मंडी के गेट के बाहर अपना अखबार की रद्दी का थैला लेकर पहुंच जाती है और हर आने वाले सब्जी दुकानदार को लिफाफे खरीदने की पेशकश करती है। यह हर दिन का सिलसिला हो गया है। यहां बात हो रही है, धर्मशाला सब्जी मंडी में अखबार की रद्दी के लिफाफे बेचने आने वाली छोटी सी बेटी की जो अपने भाइ दानियल के साथ हर रोज यहां पर लिफाफे बेचने के लिए पहुंचती है। आज उसका एक भाई नहीं आया है। इस लिए अपने पिता मोहम्मद नासीर के साथ ही पहुंची है और पिता से जब बात की तो पता चला कि वह कबाड़ का काम करते हैं और मुजफ्परपुर के रहने वाले हैं और यहां झुग्गियों में रहते हैं।

नवरात्रों में कन्या पूजन

नवरात्रों में कन्या पूजन का विशेष प्रावधान है। लेकिन यहां सब्जी मंडी के बाहर सुबह तड़के कुछ कन्याएं ठंड से ठिठुरते हुए माता पिता का हाथ बंटा रही हैं। खुद ही यहां पहुंच कर लिफाफे बेच रही हैं।

सुबह तड़के पहुंच जाते हैं लिफाफे बेचने

आठ वर्ष की सेंकी ने बताया कि वह हर रोज सुबह तड़के यहां पर लिफाफे बेचने आती है और दिन में अपने घर में लिफाफे बनाती हैं। पचास रुपये लिफाफे का बंडल वह बीस रुपये में देती हैं, हर दिन गुजारे लायक कमाई हो जाती है। जबकि कमाए गए पैसों से अपना गुजारा करने के साथ-साथ उन्हें रद्दी भी खरीदनी होती है।

यह बोले दानियल, बच्चों में रहती है लिफाफे बेचने की होड़

नौ वर्षीय दानियल ने कहा कि वह अपने भाई व बहन के साथ यहां लिफाफे बेचने के लिए आता है। अन्य बच्चे भी यहां आते हैं आज कुछ बच्चे यहां पर कम आए हैं। सबमें यह होड़ रहती है कि उनके लिफाफे दुकानदार पहले खरीद लें। लेकिन कई बार मायूसी भी होती है और कई बार सारे भी बिक जाते हैं।

यह बोले बच्चों के पिता

दोनों बच्चों के पिता मोहम्मद नासीर ने बताया कि वह खुद रद्दी के लिफाफे बेचने के लिए यहां सब्जी मंडी में नहीं आते हैं। उन्होंने बताया कि उनका बड़ा बेटा भी इनके साथ आता है। आज उसकी तबीयत कुछ ठीक नहीं थी इस लिए वह आए हैं। उन्होंने कहा कि वह कबाड़ का काम करते हैं और बच्चे लिफाफे बनाकर उनका हाथ बंटा रहे हैं। जब पढ़ाई के बारे में पूछा तो उन्होंने जवाब दिया, बच्चे स्कूल नहीं जाते उन्हें घर पर ही ट्यूशन देने कोई आता है। यह कहर उन्हें इस बात को यहीं विराम दे दिया। जबकि उनका बात से साफ लग रहा था कि बच्चे पढ़ाई से नहीं जुड़ सके हैं। मुज्जफरपुर के रहने वाले मोहम्मद नासीर काफी दिनों से यहां पर रह रहे हैं और ऐसे ही अपना गुजारा चला रहे हैं।

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