यंग आफिसर लिविंग के नाम से पड़ा योल का नाम
जिला कांगड़ा की धौलाधार पर्वत श्रृंखला की तलहटी में स्थित आज के योल का नाम यंग आफिसर लिविंग से पड़ा।1849 में अग्रेंजी शासन काल के दौरान अंग्रेजी सेना के यंग आफिसर के लिए रेस्ट कैंप के तौर पर स्थापना की गई थी।
योल, सुरेश कौशल। जिला कांगड़ा की धौलाधार पर्वत श्रृंखला की तलहटी में स्थित आज के योल का नाम यंग आफिसर लिविंग से पड़ा।1849 में अग्रेंजी शासन काल के दौरान अंग्रेजी सेना के यंग आफिसर के लिए रेस्ट कैंप के तौर पर स्थापना की गई थी। इसी दौरान प्रथम विश्व में अंग्रेजों ने जर्मन कैदियों को भी युद्ध बंदी बना कर रखा था।
अतीत का नाम मुजैटा गांव
अगर अतीत में झांका जाए तो योल को मुजैटा गांव से जाना जाता था ।यह इसलिए भी मशहूर था क्योंकि पूरे क्षेत्र में मुन्ज नामक घास हुआ करती थी, जिससे कुर्सियां वगैरा वनाई जाती है। जानकारी के मुताबिक यहां के लोगों का सदी पूर्व मुख्य व्यवसाय भी रहा है।
1921-22 के दौरान हुई थी सैनिकों के रेस्ट कैंप की स्थापना
वर्ष 1921-22 के दौरान द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यहां युद्ध के सैनिकों के लिए रेस्ट कैंप की स्थापना की गई ।1923 के मध्य ही विश्व द्वितीय युद्ध के इटालियन कैदियों को रखा गया । जिसमें ज्यादातर नौजवान सैन्य अधिकारी भी थे। हेरिटेज जेल में इटालियन कैदियों रखा को रखा गया था वह आज भी पुरानी इमारत हेरीटेज दीवार से नाम से सुरक्षित है।
जेल के अंदर उड़ती चिड़िया का निशान
जब इन युद्ध बंदियों को रिहा किया गया तो वह जेल के अंदर एक पत्थर पर उड़ती चिड़िया का निशान उकेर गए, जिसका अर्थ था जेल से रिहाई ।
1941 में छावनी पूर्ण अस्तित्व में आई तो बना कैंट बोर्ड
1941के दौरान जब छावनी पूर्ण अस्तित्व में आ गई तो सिविलयन के विकास कार्यों को अजाम देने के लिए कैंट बोर्ड की स्थापना की गई ।।जिसमे मौजूदा समय में सात वार्ड़ों में 2011 की जनगणना के मुताबिक 12हजार के करीब आबादी है । योल की समुद्र तल से ऊंचाई। 639 मीटर है । वर्तमान में नवी कोर का मुख्यालय है ।वर्तमान में योल में केंद्रीय विद्यालय आर्मी पब्लिक स्कूल, कैंट बोर्ड हाई स्कूल के साथ योल बाजार, नरवाना बाजार सैनिकों के लिए सुविधा प्लाजा जैसी मार्किट की सुविधा है। समीप में जिला मुख्यालय धर्मशाला उत्तर भारत का सुप्रसिद्ध शक्तिपीठ श्री चामुंडा नंदिकेश्वर धाम मंदिर है।