माघ चतुर्थी व्रत संकटों से दिलवाता है मुक्ति: पंडित सतपाल शास्त्री

Magh Chathurthi श्री गणेश विघ्नों का नाश करने वाले देव हैं। माघ मास की चतुर्थी अर्थात संकष्टी चतुर्थी का व्रत श्रद्धापूर्वक इसीलिए किया जाता है ताकि उनकी कृपा से मार्ग की समस्त विपत्तियों को दूर किया जा सके। इस साल संकष्टी चतुर्थी का व्रत 21 जनवरी को होगा।

By Richa RanaEdited By: Publish:Wed, 19 Jan 2022 12:17 PM (IST) Updated:Wed, 19 Jan 2022 12:17 PM (IST)
माघ चतुर्थी व्रत संकटों से दिलवाता है मुक्ति: पंडित सतपाल शास्त्री
इस साल संकष्टी चतुर्थी का व्रत 21 जनवरी को होगा।

नूरपुर, संवाद सहयोगी। श्री गणेश विघ्नों का नाश करने वाले देव हैं। माघ मास की चतुर्थी अर्थात संकष्टी चतुर्थी का व्रत श्रद्धापूर्वक इसीलिए किया जाता है ताकि उनकी कृपा से मार्ग की समस्त विपत्तियों को दूर किया जा सके। इस साल संकष्टी चतुर्थी का व्रत 21 जनवरी को होगा। नूरपुर सनातन धर्म सभा के महासचिव पंडित सतपाल शास्त्री ने बताया कि संकष्टी चतुर्थी माघ मास में कृष्ण पक्ष को आने वाली चतुर्थी को कहा जाता है। गणेश पुराण में इस व्रत की महिमा का वर्णन करते हुए कहा गया है कि यह व्रत अपने नाम के अनुरूप ही संकट का हरण करने वाला है।

इस चतुर्थी को 'माघीचतुर्थी' या 'तिलचौथ' भी कहते हैं। बारह माह के अनुक्रम में यह सबसे बड़ी चतुर्थी मानी गई है। इस दिन भगवान श्रीगणेश की आराधना सुख-सौभाग्य प्रदान करती है। इस चतुर्थी व्रत को करने से व्यक्ति के जीवन की विपदाएं दूर होती हैं। उन्होंने बताया कि चतुर्थी व्रत रखने से अटके हुए काम संपन्न होते हैं और मार्ग के समस्त कांटे हट जाते हैं। इस दिन गणेशजी की कथा सुनने अथवा पढ़ने का विशेष महत्व माना गया है। व्रत करने वालों को इस दिन यह कथा अवश्य पढ़नी चाहिए। तभी व्रत संपूर्णता पाता है। उन्होंने बताया कि प्रत्येक चंद्र मास में दो चतुर्थी होती हैं। पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं और अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी। संकष्टी चतुर्थी का व्रत यूं तो हर महीने में होता है लेकिन पूर्णिमांतपंचाग के अनुसार मुख्य संकष्टी चतुर्थी माघ माह की होती है और अमांतपंचाग के अनुसार पौष माह की। उत्तर भारत में पूर्णिमांत पंचांग माना जाता है जबकि दक्षिण भारतीय राज्यों में अमांत पंचाग।

इस तरह करें व्रत

पंडित सतपाल शास्त्री ने बताया कि इस व्रत को करने वाले को चतुर्थी के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। इस दिन व्रत करने वाले को लाल रंग के वस्त्र पहनने चाहिए क्योंकि यह रंग भगवान गणेश को अतिप्रिय है। भगवान गणेश का पूजन करते हुए मुख पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर रखना चाहिए। तत्पश्चात स्वच्छ आसन पर बैठकर भगवान गणेश का पूजन करना चाहिए। फल, फूल, रौली, मौली, अक्षत, पंचामृत आदि से भगवान गणेश को स्नान करा कर विधिवत पूजा-अर्चना करनी चाहिए।

उन्हें तिल से बनी वस्तुओं, तिल-गुड़ के लड्डुओं और मोदक का भोग लगाना चाहिए। इसके साथ ही गन्ना मूली शकरकंदी का भी भोग लगाएं। सायं काल में व्रत करने वाले को संकष्टी गणेश चतुर्थी की कथा पढ़ना चाहिए और अपने साथियों के बीच सुनाना भी चाहिए। फिर परिवार सहित आरती करना चाहिए। इस दिन स्त्रियां करवा चौथ के व्रत की तरह ही निर्जल व्रत करती हैं और रात को चंद्र देव को तिल गुड़ का अर्घ्य देकर फलाहार करती हैं और दूसरे दिन भोजन ग्रहण करती हैं। 'ॐ गणेशाय नम:" अथवा 'ॐगं गणपतये नम:" की एक माला, यानी 108 बार गणेश मंत्र का जाप अवश्य करना चाहिए। इस माह में गरीबों को अपनी सामर्थ्य के अनुरूप दान देना चाहिए। दान करने का उद्देश्य यही है कि आप अपने सौभाग्य को जितना दूसरों के साथ साझा करते हैं वह उतना ही बढ़ता है।

शिव ने दिया गणेश को वरदान

पंडित सतपाल शास्त्री ने बताया कि पौराणिक कथा के अनुसार एक बार देवता आई विपदा के निवारण के लिए मदद मांगने भगवान शिव के पास आए। कार्तिकेय और गणेश भी वहीं बैठे थे। समस्या सुनकर शिवजी ने कार्तिकेय व गणेश से पूछा- तुममें से कौन देवताओं के कष्टों का निवारण कर सकता है।' दोनों ने ही स्वयं को इस कार्य के लिए सक्षम बताया। शिव ने कहा-'तुम दोनों में से जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके आएगा, वही देवताओं की मदद करने जाएगा।' यह सुनते ही कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए तुरंत ही निकल गए।

परंतु गणेशजी सोच में पड़ गए कि वह मंद गति से दौड़ने वाले अपने वाहन चूहे के ऊपर चढ़कर सारी पृथ्वी की परिक्रमा करेंगे तो इस कार्य में उन्हें बहुत समय लग जाएगा। उन्होंने उपाय लगाया। वे अपने स्थान से उठे और अपने माता-पिता की सात बार परिक्रमा करके वापस बैठ गए। जब परिक्रमा से लौटे कार्तिकेय स्वयं को विजेता बताने लगे। तब शिवजी ने श्रीगणेश से पृथ्वी की परिक्रमा ना करने का कारण पूछा। तब गणेश ने कहा-' माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक हैं।' यह सुनकर भगवान शिव ने गणेशजी को देवताओं के संकट दूर करने की आज्ञा दी। भगवान शिव ने गणेशजी को आशीर्वाद दिया कि चतुर्थी के दिन जो तुम्हारा पूजन करेगा और रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देगा, उसके तीनों ताप दूर होंगे।

पांडवों के कष्ट ऐसे मिटे

पंडित सतपाल शास्त्री ने बताया कि नारद पुराण में संकष्टी व्रत की कथा का विस्तार से वर्णन है। बताया जाता है कि जब पांडव वनवास काट रहे थे तब उन्होंने महर्षि वेद व्यास से अपने संकटों के निवारण का आध्यात्मिक समाधान मांगा था। महर्षि ने पांडवों को संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने को कहा था। ऐसी मान्यता है कि द्रौपदी ने यह व्रत किया था और इसी के प्रताप से पांडवों को समस्त बाधाओं से मुक्ति मिली थी। हर माह में गणेश चतुर्थी आती है लेकिन स्कंद पुराण के अनुसार माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी विशेष महत्व की है।

गणेशजी का जन्मोत्सव भी

उन्होंने बताया कि शिव रहस्य ग्रंथ के अनुसार आदिदेव भगवान गणेश का जन्म माघ कृष्ण चतुर्थी को ही हुआ था। पूर्वांचल में इस दिन गणेश जी का जन्मोत्सव मनाया जाता है। माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन चंद्रमा के दर्शन से गणेश दर्शन का पुण्य प्राप्त होता है। संकष्टी व्रत करने वाले भक्तों पर श्रीगणेश की कृपा सदा बनी रहती है ।

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