Special Story : जान जरूरी है तो समझनी होंगी जहान की जरूरतें

दो दृश्य बनते हैं। पहले में शायद कोई विवाह समारोह है। दिन बस ढला ही है। पक्षी नदारद हैं। डीजे की घम्म ध्वनि हवाओं में गूंज रही है। ऐसे पंजाबी हरियाणवी और हिमाचली गीत गूंज रहे हैं जिनकी बीट नाचने के लिए विवश करने की क्षमता रखती हो।

By Richa RanaEdited By: Publish:Thu, 26 Nov 2020 02:57 PM (IST) Updated:Thu, 26 Nov 2020 02:57 PM (IST)
Special Story : जान जरूरी है तो समझनी होंगी जहान की जरूरतें
देश की एक्टिव केस दर से कहीं ऊपर हिमाचल प्रदेश पहुंच गया है, ऐसे में एहतियात जरूरी है।

नवनीत शर्मा, जेएनएन। दो दृश्य बनते हैं। पहले में शायद कोई विवाह समारोह है। दिन बस ढला ही है। पक्षी नदारद हैं। डीजे की 'घम्म' ध्वनि हवाओं में गूंज रही है। ऐसे पंजाबी, हरियाणवी और हिमाचली गीत गूंज रहे हैं जिनकी बीट नाचने के लिए विवश करने की क्षमता रखती हो। यह क्रम नवंबर की सर्द हवाओं के बीच रात 12 बजे तक लगभग रोज चला।

इसी क्रम में जेब से निकले रूमालों ने उस बीन का कर्तव्य निभाया जो मस्ती में आकर नाचने वाले के लिए अनिवार्य हो जाती है। संक्षेप में इसे 'नागिन डांस भी कहा जाता है। फर्ज कीजिए...डीजे कतिपय कारणों से चुप हो जाए तो कई आवाजें इन्हीं गीतों को समूहगान का आकार प्रदान कर रही हैं। यही दृश्य दिन का हो तो धाम यानी सामूहिक भोज के दौरान रही सही कसर पूरी होती रही।

दूसरा दृश्य यकीनन किसी राजनीतिक सभा का है। बिना मास्क पहने एक भीड़ हाथों में यथायोग्य पुष्प, पुष्पगुच्छ या हार लेकर चैतन्य अवस्था में खड़ी है। नेता जी आते हैं, सभा क्षेत्र, जनता और विरोधियों के लिए कुछ ओजपूर्ण शब्द कहे जाते हैं और अंत में कोरोना के खिलाफ जंग लडऩे की बात कह कर सभा समाप्त हो जाती है। शाम को कोरोना का बुलेटिन बताता है कि हिमाचल प्रदेश में इतनी मौतें हो गई हैं, इतने एक्टिव केस हैं, इतने स्वस्थ होकर घर लौट गए हैं आदि। कुछ और भीतर उतरें तो पाते हैं कि देश की एक्टिव केस दर से कहीं ऊपर हिमाचल प्रदेश पहुंच गया है।

दिल्ली को भी पछाड़ दिया हिमाचल प्रदेश ने। और इसकी पुष्टि के लिए आंकड़े आग्रही बन कर अड़ जाते हैं। कभी कोरोना के खिलाफ लडऩे के लिए सख्ती बरतने के लिए जाना जाता हिमाचल अब संक्रमण के संदर्भ में पहले स्थान पर आ गया है। प्रश्न यह है कि इस स्थिति में आए कैसे? उत्तर यह है कि न नेताओं ने परहेज का आदर्श प्रस्तुत किया और न जनता ने एहतियात बरती। तय तो यही हुआ था कि जान भी, जहान भी। कोरोना से भी बचना है और नए सामान्य या न्यू नार्मल में ही सही, जिंदगी से जुड़े कार्यव्यवहार भी जारी रहेंगे। लेकिन गलती यह हुई कि प्राथमिकताएं बदल गईं।

न्यू नार्मल को केवल नार्मल समझ लिया गया। दोषी सब हैं। इसलिए दोषी हैं क्योंकि वैक्सीन की आहट बेशक सुनाई दे रही है, लेकिन आई नहीं है। इसके बावजूद, गैर जरूरी चीजों को जरूरी समझा गया। जब कोई विवाह समारोह कम लोगों की मौजूदगी में हो सकता था, उसके लिए तामझाम क्यों बढ़ाए जाएं? जो कुछ भी किया जा सकता था, वही नहीं किया गया। न शारीरिक दूरी, न मास्क और न हाथों के लिए बनाए प्रोटोकाल का पालन हुआ। शादियों में गले मिलते हुए दिखे हैं लोग। सियासी लोगों में जो पक्ष ने किया, वही विपक्ष ने भी किया।

बहरहाल, जब संक्रमण के आंकड़ों से त्राहिमाम मचा तो सरकार ने कुछ फैसले लिए।

शिमला, कांगड़ा, मंडी और कुल्लू में रात का कर्फ्यू लगा, सारे बाजार रविवार को ही बंद रखने होंगे, और सरकारी कार्यालयों में कर्मचारियों की संख्या पचास प्रतिशत रखने का। जाहिर है, 'जनमंच और जनसभाएं भी कुछ दिन के लिए रोक दी गई हैं। अब इंटरनेट मीडिया पर यह कहा जा रहा है कि रात को कर्फ्यू का लाभ क्या होगा? तर्क दिया जा रहा है कि रात आठ बजे से सुबह छह बजे तक तो हिमाचल की सर्दी में कोई भी बाहर नहीं निकलता। लेकिन यह भी कोई नहीं कह रहा है कि दिन का कर्फ्यू लगाया जाए। तो किस समय लगाया जाए कर्फ्यू यह प्रश्न ऐसे अनेक प्रश्नों में से ही है जिनके उत्तर महामारी के विशेषज्ञ ही दे सकते हैं। लेकिन सभी जिलों में रात्रि कर्फ्यू  हो ही जाए तो हर्ज क्या है? दरअसल दिन के कफ्र्यू का अर्थ होगा, आर्थिक गतिविधि को फिर पीछे ले जाना, जीवन की गति को रोकना।

रात के कर्फ्यू से इतना तो संभव है कि अनावश्यक आवागमन पर रोक लगेगी। वर्ष समाप्त होने को है, पंजाब, दिल्ली और हरियाणा के कई वाहन हिमाचल के मोह में खिंच आते हैं, उन्हें यह आवागमन दिन में करना होगा। दिन के कर्फ्यू  के समर्थकों को समझना चाहिए कि लोगों को घरों में बंद करके प्रशासन करना बहुत आसान है, पर रोटी तो कमानी ही होगी। नियम सख्त हों, किसी कारणवश घर से निकलने वाले लोग परेशान न हों, मास्क और शारीरिक दूरी आदि का ध्यान रख कर जान भी सुरक्षित रहेगी और शेक्सपियर के शब्दों का पालन भी होगा कि 'शो जारी रहे। बाहर से आने वालों की जांच हो, कोई खाता बही बने तो कुछ हिसाब तो रहे।

ऐसा नहीं है कि आदर्श प्रस्तुत नहीं होते। हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष धर्मवीर राणा ने अपनी बेटी की शादी तहसीलदार पालमपुर के कार्यालय में करवाई। भीड़ न डीजे का शोर। यह उदाहरण ऐसी तूती है, जो नक्कारखाने को सुननी चाहिए। बहुत छोटे कदम हैं जो महामारी के लडऩे में काम आते हैं। कोरोना के बाद सामान्य की जगह नया सामान्य ही उपलब्ध है। यह शासन भी समझे और शासित भी।

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