सेब की रंगत उड़ा रही ग्लोबल वार्मिंग, सिमटता जा रहा उत्पादन, नेशनल साइंस फाउंडेशन के शोध ने चौंकाया
Apple Production हिमाचल प्रदेश में सेब की रंगत ग्लोबल वार्मिंग उड़ा रही है। सालाना करीब चार हजार करोड़ रुपये के सेब कारोबार पर ग्लोबल वार्मिंग का असर हो रहा है।
शिमला, रमेश सिंगटा। हिमाचल प्रदेश में सेब की रंगत ग्लोबल वार्मिंग उड़ा रही है। सालाना करीब चार हजार करोड़ रुपये के सेब कारोबार पर ग्लोबल वार्मिंग का असर हो रहा है। मौसम की मार और कीटनाशक दवाओं के अंधाधुंध प्रयोग का भी बुरा असर पड़ रहा है। पहाड़ में समृद्धि के रंग भरने वाला सेब संकट में दिखाई पड़ रहा है।
अमेरिका के नेशनल साइंस फाउंडेशन के ताजा शोध से बागवान चिंतित हो गए हैं। इसमें आगाह किया गया है कि जलवायु परिवर्तन सेब की आर्थिकी को प्रभावित करेगा। हालात से बाहर आने के लिए सल्फर डाइऑक्साइड छिड़काव जैसे उपाय स्थायी लाभ नहीं दे पाएंगे। यह शोध क्लाइमेट चेंज पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
हिमाचल प्रदेश के बागवानी क्षेत्र के विशेषज्ञ भी मानते हैं कि कीटनाशकों का प्रयोग जिस तरीके से बढ़ रहा है, उसके गंभीर नतीजे सामने आएंगे। जलवायु बदलाव के कारण ऊंचाई वाले क्षेत्रों में चिलिंग आवर्स पूरे नहीं हो पाएंगे।
हिमाचल में सेब उत्पादन
क्या हैं चिलिंग आवर्स
दिसंबर से लेकर मार्च तक के चार महीनें में 1200 चिलिंग आवर्स यानी 1200 सर्द घंटे पूरे हों तो सेब के पौधों में प्राण आ जाते हैं। इन 1200 घंटों पर ही बागवानों की उम्मीदें टिकी होती हैं। जिस तरह शरीर के लिए प्राण जरूरी हैं, वैसे ही सेब की सेहत के लिए चिलिंग आवर्स आवश्यक हैं। सेब के पौधे में फल लगने के लिए सात डिग्री सेल्सियस से कम तापमान बेहद जरूरी है। यदि चार महीने में 1200 चिलिंग आवर्स पूरे हो जाएं तो सेब के पौधों में फल की सेटिंग बहुत अच्छी होती है और उत्पादन बंपर होता है। यदि चिलिंग आवर्स पूरे न हों तो पौधों में कहीं फूल अधिक आ जाते हैं और कहीं कम। इससे फल उत्पादन भी प्रभावित होता है।
अर्ली वैरायटी के लिए चिलिंग आवर्स की कम जरूरत
हिमाचल प्रदेश में अब सेब की अर्ली वैरायटी का दौर आ गया है। इनके लिए चिलिंग आवर्स की ज्यादा जरूरत नहीं होती है। यह वैरायटी कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में चार हजार फुट की ऊंचाई में भी हो रही है। इस वैरायटी का सेब मैदानी इलाकों जैसे बिलासपुर आदि में भी उगाया जा रहा है। हालांकि ऐसे सेब को स्टोर नहीं किया जा सकता है बेशक बाजार में दाम अच्छे मिल रहे हों।
क्या कहते हैं बागवान कीटनाशकों के प्रयोग से एक बीमारी खत्म होती है तो दूसरी शुरू। इसके नुकसान अब सामने आ रहे हैं। वैज्ञानिकों को नए शोध करने की जरूरत है। -बीपी वाल्टू, बागवान। ग्लोबल वार्मिंग के कारण मौसम का मिजाज बिगड़ जाता है। मार्च-अप्रैल में सेब की फ्लावङ्क्षरग प्रभावित हुई है। फल की सेटिंग नहीं हुई। इस कारण अधिक पैदावार नहीं हो पाई है। -गोविंद चितरांटा, बागवान।
जलवायु परिवर्तन का सेब पर असर हो रहा है। लाहुल स्पीति में भी अब सेब उगने लगा है। कीटनाशक दवाओं के नाम पर जहर शत्रु कीट के साथ मित्र कीट को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं। स्पे्र शेड्यूल वैज्ञानिक की सलाह पर सूझबूझ के साथ तय करें। स्वस्थ पौधों पर अंधाधुंध प्रयोग न करें। सौ साल में धरती के तापमान में एक डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हुई है। रॉयल सेब लो-लाइन से खिसक कर ऊपरी तरफ चला गया है। -डॉ. एसपी शर्मा, बागवानी विशेषज्ञ।