दिव्‍यांगता नहीं व्‍यवस्‍था से हारा रजत, मुंह से लिखकर पास किया नीट पर नहीं मिला एमबीबीएस में दाखिला

दोनों बाजू न होने के बाद भी कभी पैर तो कभी मुंह से पेन पकड़ कर 88 फीसद अंक लेकर जमा दो करने वाला रजत व्यवस्था से हार गया।

By Rajesh SharmaEdited By: Publish:Wed, 09 Oct 2019 03:08 PM (IST) Updated:Wed, 09 Oct 2019 03:08 PM (IST)
दिव्‍यांगता नहीं व्‍यवस्‍था से हारा रजत, मुंह से लिखकर पास किया नीट पर नहीं मिला एमबीबीएस में दाखिला
दिव्‍यांगता नहीं व्‍यवस्‍था से हारा रजत, मुंह से लिखकर पास किया नीट पर नहीं मिला एमबीबीएस में दाखिला

सुंदरनगर, जेएनएन। दोनों बाजू न होने के बाद भी कभी पैर तो कभी मुंह से पेन पकड़ कर 88 फीसद अंक लेकर जमा दो करने वाला रजत व्यवस्था से हार गया। नीट पास करने के बावजूद रजत का डॉक्टर बनने का सपना अधूरा रह गया। एमबीबीएस की पढ़ाई करने की दहलीज तक पहुंचे मंडी जिला के रडू गांव निवासी जयराम और दिनेश कुमारी के बड़े बेटे रजत को मेडिकल कॉलेज प्रबंधन ने डॉक्टरी के लिए सक्षम न पाकर प्रवेश देने से इन्कार कर दिया है।

26 सितंबर 2008 को दादा का देहांत होने के 10वें दिन जब परिजन इस दौरान होने वाली धार्मिक औचारिकताओं को पूर्ण करने में लगे हुए थे तो घर के पास से गुजर रही विद्युत की हाइटेंशन तार से पांच अक्टूबर 2008 को रजत को करंट लगने से दोनों बाजुओं से हाथ धोना पड़ा था। उस वक्त वह तीसरी कक्षा में पढ़ता था। रजत को आइजीएमसी शिमला ले जाया गया। वहां करीब दो माह उपचार के दौरान ही पिता ने बेटे के हाथ सदा के लिए खो देने के कारण पैरों में पेन फंसा कर लिखने की कोशिश शुरू करवा दी थी। डेढ़ साल तक रजत ने पैर से लिखने की कोशिश की। इसके बाद माता-पिता के मार्गदर्शन में रजत ने मुंह में पेन डालकर लिखना शुरू किया। मेडिकल में जमा दो पास की। नीट पास करके एमबीबीएस में दाखिले की दावेदारी जताई, लेकिन अब डॉक्टरी के लिए अयोग्य घोषित होने से रजत की उम्मीदों को झटका लगा है।

इस संबंध में मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च के निदेशक को अवगत करवा दिया है। दिव्यांगता अधिक होने के कारण रजत एमबीबीएस की पढ़ाई पूर्ण नहीं कर सकता है। दोनों बाजू न होने के कारण रजत शारीरिक तौर पर सक्षम नहीं है। इस कारण वह एमबीबीएम की पढ़ाई के दौरान होने वाले प्रयोगों को नहीं कर सकता है। -डॉ. रजनीश पठानिया, प्रधानाचार्य मेडिकल कॉलेज नेरचौक।

जब नीट के लिए अप्लाई किया था तो उस समय दिव्यांगता को दर्शाया गया था। तब उसका आवेदन को रद नहीं किया गया। नीट की परीक्षा पास करने के बाद शिमला में काउंसिलिंग कमेटी द्वारा मेरा आवेदन रद नहीं किया था, लेकिन नेरचौक मेडिकल कॉलेज प्रबंधन द्वारा अब प्रवेश के लिए इन्कार कर दिया। -रजत।

रजत पढ़ाई में होशियार है। डॉक्टर बनने के योग्य है, लेकिन समझ नहीं आ रहा है कि मेडिकल कॉलेज प्रबंधन ने प्रवेश देने से क्यों इन्कार कर दिया। कॉलेज प्रशासन द्वारा प्रवेश से इन्कार करने के बाद बेटा पूरी तरह से टूट चुका है। -जयराम, रजत के पिता।

देशभर में था 2988वां रैंक

रजत ने दिव्यांगता कोटे से नीट में देश भर में 2988वां रैंक हासिल किया था। इसके बाद परिजनों और रजत खुश था कि उसका डॉक्टर बनने का सपना साकार होगा। उसने एमबीबीएस में दाखिले के लिए औचारिकताएं पूरी की। शिमला में काउंसिलिंग कमेटी ने रजत का चयन एमबीबीएस के लिए करने के बाद लाल बहादुर शास्त्री मेडिकल कॉलेज नेरचौक में प्रवेश लेने के लिए पत्र सौंपकर रिपोर्ट करने के लिए कहा था। मेडिकल कॉलेज में प्रवेश के लिए सभी औचारिकताएं पूरी कर दी थी, केवल फीस जमा करवाना शेष बचा था कि कॉलेज प्रबंधन ने पहले से दु:खी रजत सहित उनके परिजनों को झटका देकर एमबीबीएस की पढ़ाई करने के अयोग्य करार देकर प्रवेश फार्म को रद कर दिया।

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