अंतरराष्ट्रीय साहित्य उत्सव में देश-विदेश के साहित्यकारों ने खुलकर अभिव्यक्ति को स्वर दिया

Shimla Literature Festival शिमला में आयोजित तीन दिवसीय साहित्य उत्सव में देश-विदेश के साहित्यकारों ने खुलकर अभिव्यक्ति को स्वर दिया। आजादी के अमृत महोत्सव पर संस्कृति मंत्रालय और साहित्य अकादमी के संयुक्त आयोजन पर नवनीत शर्मा की रिपोर्ट...

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Mon, 20 Jun 2022 01:12 PM (IST) Updated:Mon, 20 Jun 2022 01:12 PM (IST)
अंतरराष्ट्रीय साहित्य उत्सव में देश-विदेश के साहित्यकारों ने खुलकर अभिव्यक्ति को स्वर दिया
अंतरराष्ट्रीय साहित्य उत्सव 'उन्मेष', अभिव्यक्ति का उत्सव का।

धर्मशाला, नवनीत शर्मा। अतिथियों के स्वागत में किसी इतराते हुए और संवेदनशील गृहस्वामी की भूमिका में था शिमला। देशभर के साहित्यकार गेयटी थियेटर में जुटे तो रिज मैदान से ठीक ऊपर 108 फीट ऊंची हनुमान जी की प्रतिमा के पाश्र्व से सबने बादलों को घिरते देखा। प्री मानसून भी जून का पारा कम करने के लिए सक्रिय हो गया था। गेयटी थियेटर के विभिन्न भागों में साहित्य, कला और संगीत से जुड़े व्यक्तित्व गर्माहट ला रहे थे तो बाहर मौसम उन्हें समुचित ठंडक दे रहा था। अवसर था, आजादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत संस्कृति मंत्रालय द्वारा साहित्य अकादमी के सहयोग से आयोजित अपनी तरह के पहले अंतरराष्ट्रीय साहित्य उत्सव 'उन्मेष', अभिव्यक्ति का उत्सव का।

60 से अधिक भाषाओं के 425 लेखकों, कलाकारों के इस महामेले में 15 देशों के लोगों की सहभागिता रही। विशेष बात यह कि बोलियों से जुड़े लोगों को भी मंच मिला और एलजीबीटीक्यू (लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर) से जुड़े लेखक भी शामिल हुए। निजी लिटरेचर फेस्टिवल अंग्रेजी के प्रति समर्पण दिखाते हुए प्राय: विवादों की मेजबानी करते हैं, किंतु यह पहला ऐसा अवसर था जहां चंद्रशेखर कंबार की अध्यक्षता में साहित्य अकादमी ने अभिव्यक्ति की हर विधा को अभिव्यक्ति दी, अंग्रेजी भाषा और साहित्य को भी। 16 जून से 18 जून तक कई सत्र, कई चेहरे, कई भाषाओं के शब्दकर्मी और कई आयाम इस महोत्सव ने देखे। अभिव्यक्ति के इस उत्सव की विशेषता यह रही कि यह बड़ा प्रयोग साहित्य और कला की लगभग हर विधा को एक साथ मंच दे गया।

अभिव्यक्ति के मंच का प्रभाव ही रहा कि संस्कृति राज्य मंत्री अर्जुन मेघवाल ने दैनिक जीवन के साथ जितना संबंध बताया, उतना ही साहित्य के साथ बताया। हालांकि इससे पूर्व जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामभद्राचार्य यह कहकर साहित्य को परिभाषित कर चुके थे कि मनुष्यों में व्याप्त पशुता को समाप्त करने की शक्ति केवल साहित्य में है। साहित्य के मायने अपने ही अंदाज में सोनल मानसिंह ने समझाए 'साहित्य में शब्द का महत्व है और शब्दों को मूर्त रूप देने का कार्य नृत्य करता है।' कला के सब आयामों पर बात, यह इस कार्यक्रम की पहली प्राप्ति थी।

पीड़ा को मिला स्वर: 16 जून को साहित्य और स्त्री सशक्तीकरण पर चर्चा हुई तो एलजीबीटीक्यू लेखकों के समक्ष चुनौतियों पर परिचर्चा के साथ काव्य पाठ भी हुआ। ट्रांसजेंडर लेखक इस बात पर तो संतुष्ट थे कि उन्हें इस कार्यक्रम में न्योता जाना मुख्य धारा में लाना है, किंतु वर्षों की पीड़ा को स्वर भी यहीं मिला। मालरोड पर चर्चा के दौरान भी उन्होंने कहा कि ट्रांसजेडरों को उपहास करने के ढंग से और इसी प्रयोजन से दिखाया जाता है।

सिनेमा और साहित्य: सिनेमा और साहित्य पर परिचर्चा में गीतकार गुलजार ने कहा कि अब सिनेमा को अपना साहित्य बनाना चाहिए। उनका यह आग्रह भी था कि अगर नाटक को साहित्य माना जा सकता है तो फिल्मी पटकथा को भी यह स्थान मिलना चाहिए। यतींद्र मिश्र ने ठोस बात कही कि साहित्य और सिनेमा की तुलना नहीं हो सकती। साहित्य 700 वर्ष पुराना है, जबकि फिल्म 70 वर्ष पुरानी। फिल्मकार विशाल भारद्वाज का मानना था कि फिल्म ऐसी विधा है, जो हर फाइन आर्ट का मिश्रण है।

पारिस्थितिकीय विमर्श, भारतीय कालजयी कृतियां और विश्व साहित्य के अलावा पूर्वोत्तर के साहित्य पर भी विमर्श हुआ। मातृभाषा और आदिवासी साहित्य पर भी खुली चर्चा हुई।

17 जून के सत्र में भी आदिवासी लेखकों ने सबसे बड़ी समस्या प्रकाशन बताई। आदिवासी लेखक चंद्रकांत मुरा सिंह ने कहा कि उनकी भाषा को भी साहित्य अकादमी मान्यता दे। यह प्रश्न एक मांग है, किंतु यह भी समझना होगा कि यह कार्यक्रम आदिवासी साहित्य के मुख्यधारा में आने का प्रस्थानबिंदु है। गैर मान्यता प्राप्त भाषाओं में वाचिक परंपरा पर विस्तृत चर्चा में सामने आया कि भारत में एक नहीं, 16 गंगा बहती हैं और वाचिक महाकाव्य 760 भाषाओं में जीवित है।

सीमा से आगे: साहित्य और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन विषयक सत्र में विद्वानों के वक्तव्य साहित्यिक सीमाओं तक बंधे नहीं रहे। एसएल भैरप्पा ने कहा कि आदर्श की स्थापना करना भी साहित्य का काम है। ऐसा तुलसीदास ने किया जब मुगलों का राज था और तुलसीदास आदर्श पुरुष राम को साहित्यिक रूप से रच रहे थे। डा. सच्चिदानंद जोशी अधिक मुखर थे। उन्होंने कहा कि जवाहर लाल नेहरू ने राजेंद्र प्रसाद पर दबाव बनाकर वर्ष 1951 में राजद्रोह को संविधान में जुड़वाया था।

दीप्ति नवल को जलियांवाला बाग अब तक सालता है। दीप्ति ने कहा, 'जलियांवाला बाग दर्द का बोलता हुआ चित्र है जिसे सेल्फी प्वाइंट बनाना पीड़ादायक है। इस स्थान को वास्तविक रूप में सहेजना चाहिए।' प्रवासी भारतीयों को समर्पित सत्र में अमेरिका, नीदरलैंड्स, ब्रिटेन और दक्षिण अफ्रीका से आए साहित्यकारों ने कहा कि विदेश में भारतीय संस्कृति को जीवित रखने के लिए भारत सहयोग करे। यह मांग अपनी जगह ठीक हो सकती है, किंतु यह काम हर देश में मौजूद भारतीय कर ही रहे हैं। हर देश में एक छोटा भारत बस ही रहा है।

स्वतंत्रता और साहित्य: उत्सव का एक विषय मीडिया, साहित्य और स्वाधीनता आंदोलन भी था। बल्देव भाई शर्मा इसमें मुखर रहे। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता साहित्य का भाग रही है, जिसका स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। यह कहना भी ध्यान आकृष्ट कर गया कि वीर सावरकर न होते तो स्वाधीनता आंदोलन को रद्दी की टोकरी में फेंका जा चुका होता।

आस्था का गायन: 18 जून के सत्र में भारत में भक्ति साहित्य का गायन विषयक सत्र की अध्यक्षता केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने की। उनका कहना था कि भक्ति का अर्थ सद्गुणों का विकास है। दूसरे की पीड़ा को समझना ही भक्ति है। जब हर धर्म की पुस्तक यह बताती है कि हर व्यक्ति में ईश्वर है तो फिर झगड़े किस बात के। उन्होंने भक्ति में विश्वास के तत्व पर उचित जोर दिया। बाद में मीडिया से भी उन्होंने यही कहा कि भारत में अभिव्यक्ति की जितनी स्वतंत्रता है, उतनी कहीं नहीं।

महिला लेखन: अपनी पुस्तक टूम आफ सैंड के लिए बुकर पुरस्कार पा चुकी गीतांजलि श्री की प्रतीक्षा शिमला को भी थी। भारतीय भाषाओं में महिला लेखन नामक सत्र में गीतांजलि श्री और मृदुला गर्ग ने प्रश्न पुराने, किंतु महत्वपूर्ण को लेकर अपने विचार रखे। गीतांजलि श्री ने कहा कि जब हम महिला लेखन की बात करते हैं तो समझ में नहीं आता इसका अर्थ क्या है। उनके मुताबिक लेखक केवल लेखक है, उसे महिला और पुरुष के खांचे में बांधना उचित नहीं है। भारतीय भाषाओं में महिलाओं ने क्या लिखा, यह जानने के लिए हम अनुवाद पर निर्भर हैं, जो मलयालम नहीं जानता और जो हिंदी नहीं जानता, उनके लिए एक-दूसरे को पढऩे के लिए अंग्रेजी का रास्ता है। उन्होंने यह भी कहा कि कुछ दिन तक बुकर की चर्चा रहेगी, किंतु मैं स्पष्ट करना चाहती हूं कि मेरी किताब किसी बंजर पृष्ठभूमि से नहीं आई है और भी अच्छी किताबें थीं, पर टार्च मेरी किताब पर पड़ी। इसलिए टार्च को न देखें, जहां रोशनी पड़ी, वहां देखें। मृदुला गर्ग ने कहा कि मैत्रेयी पुष्पा स्त्री लेखन की बात करती हैं, करें किंतु मैं समूचे मानव की लेखक हूं।

इसके अलावा, कवि गोष्ठियों का क्रम भी चलता रहा। बहुभाषी काव्य पाठ भी हुए और अनुवाद पर भी संवाद हुआ। कुल मिलाकर अभिव्यक्ति का यह अनूठा क्रम बंद नहीं होगा, इसकी आशा संस्कृति राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल के उस कथन से जगती है जिसमें उन्होंने कहा कि यह उत्सव अब हर वर्ष होगा।

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