भलाई में इतनी ताकत कि शत्रु भी बन जाता है मित्र

भलाई का अर्थ होता है दूसरों की सहायता या अच्छा करना। भलाई में इतनी ताकत होती है कि यह

By JagranEdited By: Publish:Thu, 12 Nov 2020 05:00 AM (IST) Updated:Thu, 12 Nov 2020 05:00 AM (IST)
भलाई में इतनी ताकत कि शत्रु भी बन जाता है मित्र
भलाई में इतनी ताकत कि शत्रु भी बन जाता है मित्र

भलाई का अर्थ होता है दूसरों की सहायता या अच्छा करना। भलाई में इतनी ताकत होती है कि यह इंसान को फरिश्ता बना देती है। साथ ही शत्रु भी मित्र बन जाता है। भलाई के समान कोई धर्म नहीं होता है। जो व्यक्ति निस्वार्थ किसी की मदद करता है वह उत्तम पुरुष तथा संत की श्रेणी में आता है। जीवन के साथ संस्कारों का घनिष्ठ संबंध है व भारतीय जीवन में संस्कारों का बड़ा महत्व है। संस्कार शब्द की दयुतपति कृ धातु में सम उपसर्ग लगाकर की गई है। इसका अर्थ है शुद्धि, परिष्कार व सुधार। मन, रुचि, आचार व विचार को परिष्कृत व उन्नत करने का कार्य। वास्तव में संस्कृति शब्द संस्कार से बना है। इसका अर्थ है परिमार्जित, परिकृत, सुधारा हुआ। इन अर्थों में मानव में जो दोष हैं उनका शोधन करने के लिए ही संस्कारों का प्रावधान किया हुआ है। मानव जीवन में संस्कारों का अत्यधिक महत्व है। संस्कारों का सर्वाधिक महत्व मानवीय चित की शुद्धि के लिए है। संस्कारों से ही मनुष्य का चरित्र निर्माण होता है। संस्कारों से ही मानव चरित्र में सदगुणों का संचार होता है और दोष दूर होते हैं। संस्कार मानव जीवन को जन्म से लेकर मृत्यु तक सार्थक बनाते हैं और सत्य शोधन की अभिनव व्यवस्था का नाम संस्कार है। श्रेष्ठ संस्कारवान मानव का निर्माण ही संस्कारों का मुख्य उद्देश्य है। संस्कारों से ही मनुष्य में शिष्टाचार व सभ्य आचरण की प्रवृत्ति का विकास होता। इस अर्थ में सर्वसाधारण के मानसिक एवं भावनात्मक विकास के लिए सर्वांग सुंदर विधान संस्कारों का होता है। संस्कार शब्द का अर्थ अंग्रेजी के कल्चर शब्द से मिलता जुलता है लेकिन हम शंकर द्वारा किए गए अर्थ को पकड़कर ही आगे बढे़ं तो मानव चित के संस्कार द्वारा दूर करने योग्य दोषों का अर्थ होगा। मनुष्य जीवन के मूल से चपटी हुई पशु सहज स्वाभाविक वासनाएं, जिनमें रोग, द्वेष, मोह और भय मुख्य हैं तथा अनेक पीढि़यों की अविद्या, भय, रोग और द्वेष प्रेरित प्रवृत्तियों के कारण रक्त में मिदी हुई लोगों में साधारणतया पाई जाने वाली आदतें भी हैं। भारतीय संस्कृति में ब्यास संस्कृति के सोलह संस्कारों का वर्णन हुआ है। हमारे धर्मशास्त्रों में भी मुख्य रूप से सोलह संस्कारों की व्याख्या हुई है। यह मेरा व्यक्तिगत विचार है कि हम चाहें कितनी भी ऊंचाई पर पहुंच जाएं, भारतीय संस्कृति व संस्कारों को कभी नहीं भूलना चाहिए। मेरा एक विद्याविद होने के नाते सभी अध्यापकों व इस क्षेत्र से जुड़े लोगों से भी आग्रह है कि हमें बच्चों को संस्कारों व भारतीय संस्कृति के विषय में समय-समय पर जागरूक करते रहना चाहिए।

-शशि सूद, प्रिसिपल, होलीफेथ सीनियर सेकेंडरी स्कूल पठियार

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