हिमाचल प्रदेश की सियासत में तीसरे विकल्प का सपना कितना कारगर, पढ़ें पूरी खबर

तीसरे विकल्प के रूप में एक नई राजनीतिक पार्टी की घोषणा भी पूर्व सांसद राजन सुशांत ने कर दी है। नाम रखा है हमारी पार्टी हिमाचल पार्टी। उधर मंडी में पंडित सुखराम परिवार ने अपने राजनीतिक दुखों की अभिव्यक्ति की है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Thu, 29 Oct 2020 08:37 AM (IST) Updated:Thu, 29 Oct 2020 09:06 AM (IST)
हिमाचल प्रदेश की सियासत में तीसरे विकल्प का सपना कितना कारगर, पढ़ें पूरी खबर
तीसरे विकल्प के रूप में एक नई राजनीतिक पार्टी की घोषणा भी पूर्व सांसद राजन सुशांत ने कर दी है।

धर्मशाला, नवनीत शर्मा। हिमाचल प्रदेश फिर पटरी पर लौटने लगा है। मुख्यमंत्री कोरोना से उबर कर कार्यालय पहुंच गए हैं। शहरी विकास मंत्री भी स्वस्थ हो गए हैं। विधानसभा अध्यक्ष को भी अस्पताल से छुट्टी मिल गई है। अब तक दो नगर निगमों वाले हिमाचल प्रदेश में पांच नगर निगम होंगे। उम्मीद है कि स्कूल और कॉलेज भी जल्द ही खुलेंगे। जनमंच भी आठ नवंबर से शुरू हो जाएगा। जनमंच यानी भाजपा सरकार का ऐसा कार्यक्रम, जिसमें राजनीतिक और प्रशासनिक नेतृत्व किसी निश्चित दिन को तयशुदा स्थान पर जनता की समस्याएं सुनता है और मौके पर समाधान का प्रयास करता है।

इस बीच, तीसरे विकल्प के रूप में एक नई राजनीतिक पार्टी की घोषणा भी पूर्व सांसद राजन सुशांत ने कर दी है। नाम रखा है, हमारी पार्टी, हिमाचल पार्टी। उधर मंडी में पंडित सुखराम परिवार ने अपने राजनीतिक दुखों की अभिव्यक्ति की है, जिस पर ठाकुर कौल सिंह की बेटी ने जो पलटवार किए हैं, उनसे यह सवाल भी उठा है कि मंडी में कांग्रेस का अर्थ किसी पार्टी से है अथवा दो परिवारों से है। पर्यटन क्षेत्र ने अंगड़ाई ली है, इसकी पुष्टि दिल्ली, उतर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के निजी वाहनों की बढ़ती संख्या से होती है। पर्यटन क्षेत्र की गतिविधियां बढ़ने की पुष्टि मनाली से ऊपर, मैक्लोडगंज जैसे क्षेत्रों में भुजिया के पैकेट, खाली बोतलें और तमाम तरह का कचरा भी कर रहा है।

बहरहाल, सबसे पहले तीसरे विकल्प की बात करते हैं। दरअसल, पहाड़ ने अपना सियासी जलवायु ऐसा रखा है कि तीसरा विकल्प या तो सांस ही नहीं ले पाता और अगर ले भी ले तो अधिक देर तक जी नहीं पाता। यहां मित्र मिलन जैसे संगठन भी बने, यहां बहुजन समाज पार्टी भी आई, लेकिन हाथी हांफ गया। उससे भी पहले पंडित सुखराम की हिमाचल विकास कांग्रेस बनी, जिसने प्रदेश की पहली ऐसी गैर कांग्रेसी सरकार बनाई, जिसने पांच वर्ष प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में पूरे किए। लेकिन जैसे-जैसे सरकार जवान और पुख्ता होती गई, हिमाचल विकास कांग्रेस का दीपक बुझता चला गया। उसके बाद यहां तफरीह के लिए लोजपा जैसे दल भी आए। आम आदमी पार्टी ने भी कोशिश की यहां पर पैर जमाने की, लेकिन बात नहीं बन पाई।

इसका यह अर्थ नहीं है कि स्थान नहीं है। अगर दूरदृष्टि रखने वाले लोग, जिनके पास हिमाचल के लिए सोच हो, वे कोशिश कर सकते हैं। अब जब विधानसभा चुनाव में करीब दो साल रह गए हैं, राजन सुशांत नई पार्टी लाए हैं। राजन सुशांत की छवि जुझारू नेता की रही है। वर्ष 1990 में पौंग बांध विस्थापितों की दबी हुई हक को सुशांत ने ही आवाज दी थी, लेकिन वह कब अशांत हो जाएं, यह स्वयं शांता कुमार और प्रेम कुमार धूमल भी कम जान सके। पार्टी की घोषणा हो और बेटे एवं कुछ प्रियजनों के अलावा कोई न हो, कोई दृष्टि दस्तावेज न हो, कुछ मोअतबर चेहरे साथ न हों, तो क्या अर्थ निकालें? संभव है, बाद में कुछ ठोस सामने आए, लेकिन अभी वास्तव में राजन सुशांत का प्रसंग हैदर अली आतिश के शेर के साथ संपन्न होना चाहता है :

बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का

जो चीरा तो इक कतरा-ए-खूं न निकला।

इसे सीख कहें या अनुभूति, पंडित सुखराम भी अब कहते हैं कि तीसरी पार्टी के लिए कोई स्थान नहीं। उनकी बात इसलिए सुनी जानी चाहिए, क्योंकि वह कांग्रेस में रहे, हिमाचल विकास कांग्रेस के निर्माता रहे, भाजपा में रहे और अंतत: लौट के फिर घर यानी कांग्रेस में आए। अनुभव बोलता है, लेकिन जब यह डगमगाता है, तो उनके पुत्र अनिल शर्मा और पोते आश्रय शर्मा की टीस बाहर आ जाती है। कुछ दिन पहले कांग्रेस के बड़े नेता सुखराम के पुत्र, भाजपा विधायक एवं पूर्व मंत्री अनिल शर्मा ने कहा कि उनकी सुनी नहीं जा रही है। कुछ दिन बाद बेटे और कांग्रेस नेता आश्रय शर्मा ने कहा कि उनके पिता अनिल शर्मा का टिकट पक्का है। इस पर ठाकुर कौल सिंह की बेटी चंपा ठाकुर ने कहा कि आश्रय शर्मा टिकट बांटने वाले कौन होते हैं, टिकट पर तो मेरा हक है। दरअसल कौल सिंह उन बड़े नेताओं में शुमार हैं जिन्होंने कांग्रेस में दुरुस्ती के लिए बहुचíचत चिट्ठी पर हस्ताक्षर भी किए थे।

[राज्य संपादक, हिमाचल प्रदेश]

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