..यहां कण-कण में बसी है अहिसा के पुजारी महात्मा गांधी की यादें

अहिसा के मार्ग पर चलकर आजादी की लड़ाई लड़ने वाले महात्मा गांधी के जीवन के बारे में यदि विस्तार से जानना है कि रादौर स्थित कस्तूरबा गांधी आश्रम सबसे उमदा स्थान है। यहां महात्मा गांधी की यादों को जीवंत करती 100 तस्वीरों का संग्राहलय स्थापित है। इसके माध्यम से हमें महात्मा गांधी के जीवन व उनके संघर्षों की यादें ताजा करने का मौका मिलता है।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 29 Jan 2022 05:55 PM (IST) Updated:Sat, 29 Jan 2022 05:55 PM (IST)
..यहां कण-कण में बसी है अहिसा के पुजारी महात्मा गांधी की यादें
..यहां कण-कण में बसी है अहिसा के पुजारी महात्मा गांधी की यादें

जागरण संवाददाता, यमुनानगर :

अहिसा के मार्ग पर चलकर आजादी की लड़ाई लड़ने वाले महात्मा गांधी के जीवन के बारे में यदि विस्तार से जानना है कि रादौर स्थित कस्तूरबा गांधी आश्रम सबसे उमदा स्थान है। यहां महात्मा गांधी की यादों को जीवंत करती 100 तस्वीरों का संग्राहलय स्थापित है। इसके माध्यम से हमें महात्मा गांधी के जीवन व उनके संघर्षों की यादें ताजा करने का मौका मिलता है। संग्रहालय में लगी तस्वीरें उनके जीवन के हर पहलु को दर्शा रही है। जिसके माध्यम से कस्तूरबा गांधी आश्रम महात्मा गांधी के अहिसा के संदेश को जन-जन तक पहुंचाने का कार्य कर रहा है। विशेष अवसरों पर यहां अन्य प्रदेशों से लोग भी आते हैं। इस संग्रहालय को देखकर हैरान हो जाते है। राष्ट्रीय पर्व स्वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस के मौके पर यहां तिरंगा फहराया जाता है। स्थानीय विधायक बतौर मुख्यातिथि शिरकत करते है। 96 वर्षीय तारा बहल करती आश्रम का संचालन

कस्तूरबा गांधी राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्ट की संचालिका तारा बहल की उम्र करीब 96 वर्ष हो चुकी है। जब वह करीब 16 वर्ष की थी तो उनकी नागपुर में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से कुछ मिनट के लिए मुलाकात हुई थी। तारा बहल का कहना है कि पांच मिनट की इस मुलाकात ने उनके जीवन पर ऐसा प्रभाव छोड़ा की उनकी जिदगी की बदल गई। यह दिन उनके जीवन का सबसे अहम दिन रहा। उन्होंने 1946 से रादौर के कस्तूरबा गांधी राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्ट का संचालन शुरू किया। यहां रहकर वह आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं व महिलाओं को सिलाई कढ़ाई का प्रशिक्षण दिला रही हैं। इसके साथ ही अहिसा व राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अन्य विचारों का भी प्रचार-प्रसार करने में जुटी हुई हैं। इस ट्रस्ट के माध्यम से पहले चरखा कताई और अब सिलाई कढ़ाई का प्रशिक्षण देकर युवतियों व महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की परंपरा को कायम रखे हुए हैं। आश्रम बनने के समय रादौर हरियाणा नहीं, बल्कि पंजाब प्रांत में था। अब भी यह आश्रम हरियाणा-पंजाब का ट्रस्ट का मुख्य कार्यालय है। इस आश्रम की पहली संचालिका जवाहर लाल नेहरू की चाची रामेश्वरी नेहरू थी। तारा बहल ने रेडियो पर सुनी थी मौत की खबर

तारा बहल ने बताया कि उनके बड़े भाई डा. बैजनाथ ने उनको राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से नागपुर में मिलवाया था। उस समय वह 16 वर्ष की थी। उन्होंने गांधी से आशीर्वाद लिया। तारा बहल बताती हैं कि वह क्षण उनके लिए काफी महत्वपूर्ण थे। उन्होंने बताया कि गांधी जी सादा जीवन जीते थे और सादा जीवन ही व्यतीत करते थे। यह सब उन्हें उनके भाई डा. बैजनाथ ने ही बताया था। वह यह भी बताते थे कि गांधी जी की पत्नी कस्तूरबा गांधी उन्हें बहुत सपोर्ट करती थीं और जब कभी वह हिम्मत हारने लगते थे तो कस्तूरबा गांधी ही उनका हौंसला बढ़ाती थी। उन्होंने महात्मा गांधी की मौत की खबर को रेडियो पर सुना था। तब उन्हें बेहद दु:ख हुआ था।

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