कमीशन का खेल, अभिभावकों की परीक्षा, प्रशासन फेल

जागरण संवाददाता यमुनानगर निजी विद्यालयों की मनमर्जी चरम पर है। प्रत्येक साल दोबारा प्रवेश के नाम पर जहां अभिभावकों की जेब पर डाका डाला जाता है वहीं किताब के प्रकाशक बदलकर अभिभावकों को परेशान करने का काम भी बखूबी किया जा रहा है।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 04 Apr 2019 02:04 AM (IST) Updated:Thu, 04 Apr 2019 06:33 AM (IST)
कमीशन का खेल, अभिभावकों की परीक्षा, प्रशासन फेल
कमीशन का खेल, अभिभावकों की परीक्षा, प्रशासन फेल

जागरण संवाददाता, यमुनानगर : निजी विद्यालयों की मनमर्जी चरम पर है। प्रत्येक साल दोबारा प्रवेश के नाम पर जहां अभिभावकों की जेब पर डाका डाला जाता है, वहीं किताब के प्रकाशक बदलकर अभिभावकों को परेशान करने का काम भी बखूबी किया जा रहा है। कुछ जानकारों का मानना है कि विभिन्न शिक्षण संस्थानों के संचालक कमीशन के चक्कर में ये सब करते हैं। या यूं कहें कि इस कमीशन के खेल में अभिभावकों को परीक्षा देनी पड़ रही है और प्रशासन इसे रोकने में पूरी तरह फेल है।

जगाधरी खेड़ा मार्केट, झंडा चौक पर स्थित किताबों की दुकानों से नाम चिह्न स्कूलों की किताबे मिल रहीं हैं। इनको खरीदने के लिए अभिभावकों को काफी देर इंतजार करना पड़ता है। तब जाकर किताबें मिलती हैं। अभिभावक रमेश, नितिन, मोहन लाल, तरुण सैनी का कहना है कि एक ही पैटर्न सीबीएसई पर चलने वाले स्कूलों में एक ही कक्षा के लिए विभिन्न स्कूलों में विभिन्न प्रकाशकों की किताबें पढ़ाई जा रही है। विभिन्न त्योहारों और विभिन्न कार्र्यो के लिए स्कूल की मनमानी फीस और किताबों की बोझ से न सिर्फ अभिभावक के हालत खस्ता और खराब है बल्कि बच्चे भी ऐसी परेशान हैं। सिलेबस वही है, लेकिन पुस्तकें नई खरीदनी पड़ेगी। बड़े भाई ने यदि नौवीं पास की है तो बड़ा भाई उसकी किताबें नहीं ले सकता। जबकि सिलेबस वही है। नई पुस्तकें लेने के लिए दबाव बनाया जाता है।

50 फीसद तक तय है कमीशन

जानकारों का ये भी कहना है कि नए प्रकाशकों की किताबों में सीबीएसइ से संबंध कुछ नहीं होता। उनमें सामान्य ज्ञान, मोरल साइंस, करंट अफेयर्स, कंप्यूटर जैसी किताब शामिल हैं। इनकी कीमत बहुत ही ज्यादा और कमीशन भी 50 फीसदी से अधिक होती है। डीलर्स से स्कूल प्रबंधन को 40-50 फीसदी तक कमीशन उसकी जेब में सीधा भेजवा दिया जाता है। पाठयक्रम वही, किताबें नई

शिक्षा विभाग की मानें तो सीबीएसइ और आइसीएसइ हर साल पाठ्यक्रम नहीं बदलता है। फिर भी स्कूलों की मनमानी का आलम यह रहता है कि स्कूल संचालक एक ही कक्षा की किताबें हर साल बदलते रहते हैं। स्कूल संचालक थमा देते हैं लिस्ट

प्राइवेट स्कूल किस कदर मनमानी कर रहे हैं इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वे न सिर्फ बच्चों के अभिभावकों को प्राइवेट पब्लिशर्स के किताबों की लिस्ट थमा रहे हैं, बल्कि किसी विशेष बुक शॉप से उन्हें इसकी खरीदारी करने के लिए मजबूर भी कर रहे हैं। तीन-चार गुना तक महंगी किताबें

प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबें एनसीईआईटी की तुलना में तीन से चार गुना तक ज्यादा महंगी होती है। एनसीइआरटी में विषयवार किताबों की कीमत के साथ ही संख्या भी कम है। प्राइमरी से हायर सेक्शन तक की कक्षाओं के लिए सात-आठ किताबें होती हैं, जबकि प्राइवेट पब्लिशर्स की 16.17 किताबें स्कूलों में पढ़ाई जाती हैं। इस कारण अभिभावकों को किताबों की चार गुना से अधिक कीमत चुकानी पड़ रही है। ये भी चल रहा काम

कई स्कूलों ने पब्लिशर्स व विक्रेता को किताब के साथ ही स्टेशनरी का भी ठेका दिया जाता है। स्टेशनरी का कमीशन किताब से अलग होता है।इस तरह स्कूल में लगने वाले स्टॉल में कॉपी, पेंसिल, रबर, कवर, नेम स्टीकर समेत अन्य सामग्री भी किताबों के साथ ही उपलब्ध कराई जा रहीं हैं। कई प्राइवेट स्कूलों के अपने बुक स्टॉल हैं, जहां बच्चों के अभिभावकों को किताबों के साथ स्टेशनरी उपलब्ध कराया जाता है, जबकि, कुछ स्कूलों ने कुछ बुक स्टॉल्स के साथ करार कर रखा है। ये स्कूल अपने बच्चों को विशेष बुक स्टॉल से ही किताब खरीदने के लिए सलेक्ट किया जाता है। इसके अलावा कुछ स्कूल पब्लिशर्स से खुद किताबों को मंगाकर कैंपस में सेल करते भी दिखाई दे रहे हैं।

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