1962 India China War: सीना छलनी हो गया फिर भी बढ़ते रहे कदम, देश के लिए शहीद हो गए थे छोटू सिंह

1962 India China War राजस्थान की सीमा से सटे डबवाली के गांव लोहगढ़ के रहने वाले शहीद छोटू सिंह 1962 में भारत-चीन युद्ध में शहीद हो गए थे।

By Kamlesh BhattEdited By: Publish:Fri, 19 Jun 2020 10:10 AM (IST) Updated:Fri, 19 Jun 2020 10:10 AM (IST)
1962 India China War: सीना छलनी हो गया फिर भी बढ़ते रहे कदम, देश के लिए शहीद हो गए थे छोटू सिंह
1962 India China War: सीना छलनी हो गया फिर भी बढ़ते रहे कदम, देश के लिए शहीद हो गए थे छोटू सिंह

डबवाली [डीडी गोयल]। 1962 India China War: चीन के इरादे हमेशा नापाक ही रहे हैं। बातचीत से मसला हल करने का राग अलापने वाले ड्रैगन ने हमेशा धोखे से वार किया है और भारतीय जवानों ने धोखेबाज चीन को करारा जवाब दिया है। 1962 में भी चीन भारतीय सीमा में दाखिल हुआ था। चोटियों पर बनी भारतीय चौकियों को ध्वस्त करते हुए कब्जा जमा लिया था। भारी बर्फबारी के बीच चोटी पर बैठा दुश्मन भारतीय शेरों पर गोली, बारुद दाग रहा था, लेकिन सीना छलनी होने के बावजूद सैनिक पीछे नहीं हटे। ऐसे ही सैनिकों में से एक थे सिरसा जिले के डबवाली के गांव लोहगढ़ निवासी छोटू सिंह, जिन्होंने इस युद्ध में शहादत दी थी। उनकी वीरांगना भूरा देवी को प्रशासन अब भी सम्मानित करता है।

जब चीन ने दिया था धोखा

बात 11 नवंबर 1962 की है। उस दौरान छोटू सिंह सिख रेजिमेंट में शामिल थे। उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर दुश्मन के हमले का मुंहतोड़ जवाब दिया, लेकिन चीनी सैनिकों ने घेराबंदी करने के बाद धोखे से जवान को शहीद कर दिया। 9 दिन बाद 20 नवंबर 1962 को चीन ने युद्ध विराम की घोषणा दी। बताते हैं कि भारत-चीन युद्ध में शहीद हुए छोटू सिंह का शव घर नहीं पहुंचा था। उनकी वर्दी तथा बिस्तर लेकर सेना के जवान पहुंचे। परिजनों ने वर्दी और बिस्तर पकड़ा, पंजाबी में पूछा-छोटू कित्थे आ। सैनिकों ने जवाब दिया-वे शहीद हो गए हैं।

सदा-सदा के लिए अमर हो गए छोटू

छोटू सिंह एक जमींदार के पास सीरी के तौर पर कार्यरत थे। 1956 में किसी बात को लेकर जमींदार से झगड़ा हो गया। वह रात को बिना बताए घर से चले गए। तीन माह बाद सेना के कुछ जवान एक लेटर लेकर घर पहुंचे। उनके पिता बिशन सिंह को जब पता चला कि बेटा सेना में भर्ती हो गया है तो वे बहुत खुश हुए, लेकिन छह साल बाद ही छोटू अपने पिता का सीना गर्व से चौड़ा कर इस दुनिया से विदा हो गए।

मुझे गर्व है मैं एक शहीद की पत्नी हूं

शहीद छोटू की पत्नी 75 वर्षीय भूरा देवी कहती हैं कि वर्ष 1962 में चीन के साथ युद्ध में वे शहीद हो गए थे। मैं एक शहीद की पत्नी हूं, यह कहते हुए मुझे खुद पर गर्व महसूस होता है।

कोई हमारा मार्गदर्शन करता तो फौज में भर्ती होते

शहीद की बेटियों निंद्र कौर व गुरविंद्र कौर का कहना है कि हमारे पिता ने देश के लिए कुर्बानी दी थी। कोई हमारा मार्गदर्शन करता तो हम भी फौज में भर्ती होकर देश के लिए मर मिटना पसंद करती। हमारे बड़े भाई निर्मल ने जरूर प्रयास किया था।

बड़ी मुश्किल से पूरी पेंशन लगी

शहीद छोटू सिंह के बेटे निर्मल सिंह का कहना है कि पिता की शहीदी के बाद मेरी मां अपने मायके टोलनगर (संगरिया) चली गई थी। बड़ी मुश्किल से पूरी पेंशन लगी। पिछले पांच साल से हमें 31 हजार 900 रुपये प्रति माह मिल रहे हैंं। इससे पहले 8-9 हजार रुपये मुश्किल से मिलते थे। संगरिया, टिब्बी तहसील में मेरी मां भूरा देवी इकलौती वीर नारी हैं। सैनिक बोर्ड के सर्वे में यह बात सामने आई थी। इसी के आधार पर हर वर्ष डीसी मेरी मां को सम्मानित करते हैं।

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