एमडीयू-केयू के विद्यार्थी साइकिल यात्रा से गांवों में जला रहे शिक्षा-रोजगार की अलख
भारत की आत्मा गांव में बसती है। प्रगति का पथ गांवों के होकर गुजरता है। इस कथन को साकार करने की दिशा में महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय (एमडीयू) और कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के विद्यार्थी जनजागरण अभियान चला रहे हैं।
केएस मोबिन, रोहतक
भारत की आत्मा गांव में बसती है। प्रगति का पथ गांवों के होकर गुजरता है। इस कथन को साकार करने की दिशा में महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय (एमडीयू) और कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के विद्यार्थी जनजागरण अभियान चला रहे हैं। विभिन्न मुद्दों के प्रति संवेदनशील समाज निर्माण के उद्देश्य से छात्र-छात्राओं ने साइकिल यात्रा की शुरुआत की है। नुक्कड़-नाटक, कविता-गीत के माध्यम से शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य के मुद्दे पर ग्रामीणों को जागरूक किया जा रहा है। 10 अक्टूबर से 15 नवंबर तक चलने वाली यात्रा में सोनीपत, रोहतक व झज्जर जिले के 100 गांवों तक पहुंचने का लक्ष्य रखा गया है।
एमडीयू के सोशियोलॉजी विभाग के छात्र नवनीत ने बताया कि अभी तक 38 गांवों में पहुंचे हैं। यात्रा में शामिल ज्यादातर छात्र-छात्राएं स्वयं ग्रामीण परिवेश से संबद्ध हैं। खरीफ फसल की कटाई के चलते अपने-अपने गांव लौटे हैं। कुछ दिनों के लिए यात्रा को स्थगित किया गया है। इसके बाद यात्रा को पुन प्रारंभ किया जाएगा। रोहतक के नेकीराम शर्मा कालेज के बीए राजनीति विज्ञान के छात्र अमनप्रीत बताते है कि गांवों में शहर के मुकाबले नाम मात्र का विकास देखने को मिला है। गांवों में मूलभूत सुविधाओं की कमी है। ग्रामीण युवाओं में शिक्षा और रोजगार के प्रति जागरूकता का गहरा अभाव है। इसके साथ ही सरकारी अनदेखी भी आर्थिक-सामाजिक पिछड़ेपन की वजह बनी हुई है।
गांव में सुबह बांटते हैं पर्चे, शाम को करते हैं सभा
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के एमए सोशियोलॉजी विभाग के छात्र अंकित ने बताया कि वर्ष 2018 में भी साइकिल यात्रा निकाली गई थी। ग्रामीण बताते हैं कि साइकिल यात्रा में मिली सीख से शिक्षा के प्रति उनका नजरिया बदला। इन छोटे सकारात्मक बदलाव से उनका भी विश्वास बढ़ा है। सोनीपत के कोहला गांव निवासी छात्रा मनीषा बताती हैं कि गांव में सुबह के समय पर्चे बांटे जाते हैं। शाम को जागरूकता कार्यक्रम किए जाते हैं। अगली सुबह अन्य गांव के लिए निकल पड़ते हैं।
ग्रामीणों की मदद से रहने-खाने का होता है प्रबंध
एमडीयू के छात्र व छारा गांव निवासी अजय का कहना है कि सभी विद्यार्थी मध्यमवर्गीय परिवार से आते हैं। उनके पास खर्च के लिए बेहद सीमित संसाधन हैं। जिस गांव में कार्यक्रम करते हैं वहां ग्रामीणों की मदद से रहने व खाने का प्रबंध किया जाता है।