पीजीआइ व पुलिस की जांच टकराई, नौ माह बाद कानून की याद आई

By Edited By: Publish:Tue, 08 Apr 2014 01:00 AM (IST) Updated:Tue, 08 Apr 2014 01:00 AM (IST)
पीजीआइ व पुलिस की जांच टकराई, नौ माह बाद कानून की याद आई

जागरण संवाददाता, रोहतक : सह प्राध्यापक द्वारा क्लर्क को जातिसूचक शब्द कहने व दु‌र्व्यवहार करने का मामला पीजीआइ प्रबंधन के लिए परेशानी का सबब बन गया है। पीजीआइ प्रबंधन की ओर से कराई गई जांच में सह प्राध्यापक पर लगाए सभी आरोपों को सही पाया गया है, जबकि पुलिस ने जांच में डॉक्टर पर लगे आरोपों को नकार दिया है। दो जांच टकराने के कारण पीजीआइ प्रबंधन उलझन में है। इसी कारण पिछले नौ माह से प्रबंधन के पास यह जांच अटकी पड़ी है। उधर, न्याय नहीं मिलने के कारण पीड़ित ने अब पुलिस अधीक्षक व अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग को पत्र लिखकर न्याय की गुहार लगाई है। इस शिकायत के बाद अब प्रबंधन को कानून के जानकारों की याद आई है और सलाह लेने में जुटे हैं।

प्रबंधन कमेटी की जांच में आरोप तय

शिकायत के बाद निदेशक ने दो सदस्यीय जांच कमेटी गठित की। कमेटी ने 27 अगस्त, 2013 को जांच रिपोर्ट सौंप दी। कमेटी ने जांच में साफ कहा कि लगाए गए आरोप सही पाए गए हैं। इसी दौरान मामला पीजीआइ थाना पहुंचा। पुलिस ने अपनी प्रारंभिक जांच में आरोपों को निराधार बताया। ऐसे में प्रबंधन खुद इस जांच में उलझ गया। हालांकि, इस बीच दोनों पक्षों में समझौते के प्रयास हुए, जो सिरे नहीं चढ़ पाए। पीड़ित की ओर से एक बार फिर शिकायत देने के बाद मामले ने फिर से तूल पकड़ लिया है।

आरोप बेबुनियाद, यह षड़यंत्र है : डॉ. हिमांशु

सह प्राध्यापक डॉ. हिमांशु रायकंवार ने दावा किया कि सभी आरोप बेबुनियाद हैं और यह एक षड़यंत्र है। कुछ लोग मेरी नौकरी छुड़वाने के लिए यह सब कर रहे हैं। सोमवीर क्लर्क दूसरे लोगों के बहकावे में है। मैंने कभी गाली नहीं दी। मैं किसी भी जांच के लिए तैयार हूं। मैं पुलिस और प्रबंधन दोनों के सामने अपना पक्ष रख चुका हूं। प्रबंधन की जांच पर सवाल उठाते हुए उन्होंने दावा किया कि पुलिस ने आरोपों को नकार दिया है।

ले रहे हैं कानूनी सलाह : डॉ. ढुल

पीजीआइ के निदेशक डॉ. चांद सिंह ढुल का कहना है कि क्योंकि मामला एससी-एसटी एक्ट से जुड़ा है, इसलिए जांच डीएसपी स्तर के अधिकारी ही जांच कर सकते हैं। विभागीय जांच कराई थी, जिसमें आरोप सही पाए गए। फिलहाल इस मसले पर कानूनी राय ली जा रही है। मामला कुछ संदिग्ध है, इसलिए उचित जांच के बाद ही कार्रवाई होगी।

यह है मामला

बॉयोटेक्नोलॉजी एवं मोलीक्यूलर मेडिसन विभाग में तैनात क्लर्क कम डाटा एंट्री ऑपरेटर सोमवीर ने 24 जून, 2013 को पीजीआइ के निदेशक को शिकायत देकर आरोप लगाया कि अस्सिटेंट प्रोफेसर डॉ. हिमांशु रायकंवार ने उसे जातिसूचक गालियां दी। पत्र में डॉक्टर अन्य भी कई गंभीर आरोप लगाए गए। इतना ही नहीं शिकायतकर्ता ने अपने पक्ष में गवाह होने का भी दावा किया। इनमें डॉ. दीपक, बियरर धर्मेद्र के नाम शामिल हैं। डॉ. दयाशंकर व अन्य ने भी दु‌र्व्यवहार की शिकायत की है।

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