हालूहेड़ा नरेश से प्रगाढ़ हो रहा है पूर्व मुखिया जी का याराना

चुनावी आहट सुनाई पड़ने के साथ ही रिश्ते प्रगाढ़ होने और टूटने का दौर शुरू होने वाला है। कुछ मामलों में तो तस्वीर से धूल छंटने भी लगी है। अब अपने हालूहेड़ा नरेश का मामला ही लीजिए। सुना है आजकल नौ नंबर कोठी से इनको कुछ ज्यादा ही प्यार है। भले आदमी हैं।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 01 Sep 2018 05:46 PM (IST) Updated:Sat, 01 Sep 2018 05:46 PM (IST)
हालूहेड़ा नरेश से प्रगाढ़ हो रहा है पूर्व मुखिया जी का याराना
हालूहेड़ा नरेश से प्रगाढ़ हो रहा है पूर्व मुखिया जी का याराना

चुनावी आहट सुनाई पड़ने के साथ ही रिश्ते प्रगाढ़ होने और टूटने का दौर शुरू होने वाला है। कुछ मामलों में तो तस्वीर से धूल छंटने भी लगी है। अब अपने हालूहेड़ा नरेश का मामला ही लीजिए। सुना है आजकल नौ नंबर कोठी से इनको कुछ ज्यादा ही प्यार है। भले आदमी हैं। ताकत भी है, लेकिन कुश्ती तो दांव की होती है। अगर किसी ताकतवर दल का सहारा मिल जाए तो एक और एक ग्यारह बनाने में इन्हें मुश्किल आने वाली नहीं है, लेकिन इनका असमंजस लंबे समय तक यही रहा है कि आखिर ताकतवर है कौन? अब निराशा के बादल कुछ-कुछ छंटने लगे हैं। पूर्व मुखिया जी से इनका याराना बढ़ने लगा है। पूर्व मुखिया जी कोई ऐसा फार्मूला निकालने के लिए गंभीरता से प्रयास कर रहे हैं, जिसमें हालूहेड़ा नरेश भी एडजेस्ट हो जाएं और इस नरेश को ठिकाने लगाने के लिए सगे भाई का साथ छोड़कर अपने सेवक के प्रचार में उतरने वाले पुराने दोस्त के भाई भी नाराज न हो। काम जरा टेढ़ा है पूर्व मुखिया जी, लेकिन मन साफ हो तो रास्ता निकल ही आता है। फायदा दोनों तरफ है। देखते हैं, कब शुभ सूचना लेकर ओम जय जगदीश हरे प्रकट होते हैं। जोगिया की तो हालूहेड़ा नरेश के लिए एक ही सलाह है-फैसला देरी से भले ही लेना, लेकिन वही लेना जो चंडीगढ़ पहुंचाने की गारंटी देता हो, वर्ना आगे तो बस..डार्क जोन।

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तैयार है पहलवान, वार्डबंदी में फंसा मैदान

अक्सर पहले दंगल तैयार होता है। फिर पहलवान मैदान में उतरते हैं, लेकिन यहां मामला जरा उलट है। यहां पर पहलवान तो मार्च से लंगोट कसकर तैयार बैठे हैं, लेकिन उन्हें कुश्ती लड़ने के लिए मैदान नहीं मिल रहा है। जिस मैदान पर कुश्ती लड़ी जानी है, उस मैदान पर वार्डबंदी रूपी रोड़े पड़े हुए हैं। पहले उनकी सफाई होगी फिर कुश्ती की जुगत लगेगी।

मजेदार बात यह है कि कुछ लोग मैदान की सफाई इसलिए जल्दी नहीं होने देना चाहते, क्योंकि इससे उनकी चौधर छिनने का डर है। वैसे लोकतंत्र में सत्ता निर्वाचित प्रतिनिधियों से छीनकर अधिकारियों को सौंपना कोई शुभ संकेत तो है नहीं, लेकिन जोगिया की नेक सलाह भला किसे पसंद आएगी?

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है तो मजेदार चर्चित फार्मूला

इस फार्मूले को लेकर फिलहाल नफा-नुकसान बताने का हमारा कोई इरादा नहीं है। हम तो सिर्फ इतना बता रहे हैं कि ये फार्मूला है तो काफी चर्चित। कहते हैं कानोड के प्रोफेसर के परिवार का कोई सदस्य बीरबल की नगरी से छोटी पंचायत में पहुंचने के लिए प्रयास कर सकता है, जबकि प्रोफेसर खुद कर्ण नगरी पहुंचकर बड़ी पंचायत का गेम जीतने की लड़ाई लड़ सकते हैं। किसी ने जब प्रोफेसर के किसी चहेते के सामने पंडित जी के लिए हितकारी इस कड़वे फार्मूले का जिक्र किया तो समर्थक ने कहा, कानोड का मैदान छोड़कर भागना मंजूर नहीं है। प्रोफेसर की कहानी में आज सिर्फ इतना ही, क्योंकि खिचड़ी पूरी तरह पकी नहीं है। हम तो फिलहाल इतना ही बता सकते हैं कि दाढ़ी वाला ¨सह इस बार पहले से अधिक ताकवतर बन रहा है।

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लंबे कद वाले का सपना

सपना देखना बुरी बात नहीं है। जब सपना ही नहीं देखेंगे तो सपने पूरे कैसे होंगे। पंचायती राज की बड़ी सीढ़ी के एक पायदान पर खड़े लंबे कद वाले शांत भी उनमें से एक हैं जिन्होंने चंडीगढ़ पहुंचने का सपना देख लिया है। रेवत नगरी के मैदान में उतरने से जुड़ी शांत के सपने की खबर तेजी से हर तरफ फैल चुकी है। शुरूआत में शांत को शांति से ही देखा जा रहा था, लेकिन जैसे ही दौरों में भीड़ जुटने लगी तो कुछ लोग अशांत हो रहे हैं। अरे भाई, क्यों अशांत हो रहे हो। भीड़ का हर चेहरा वही नहीं होता जैसा आप सोच रहे हो। फिलहाल तो ये रेवत नगरी के चुनावी मैदान में दमदार एंट्री की कवायद है। चंडीगढ़ का गणित हल करने की बात भविष्य की है, लेकिन जिस रास्ते से चंडीगढ़ पहुंचना संभव होता है, शांत उसी रास्ते पर आगे बढ़ रहा है।

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फिर कुश्ती लड़ेंगे या..

बात बीरबल नगरी के उस नेताजी की है, जिनकी पहचान आज भी खेती-बाड़ी वाले अधिकारी की बनी हुई है। ओमजी भाई को उनके समर्थक खेती से जुड़ा टाइटल देना कभी नहीं भूलते, लेकिन सुना है ओमजी भाई के इस बार कुश्ती लड़ने पर संशय है। इस संशय की शुरूआत कुछ महीने पहले ही हुई है। लोगों का यह कहना है कि ओमजी भाई पर इस बार उनकी कृपा नहीं हो रही है, जिनकी कृपा से उन्हें छोटी पंचायत में पहुंचने का अवसर मिला था, लेकिन जोगिया के खबरची का कहना है कि अभी इन चर्चाओं पर पक्की मुहर लगाने का वक्त नहीं आया है, लेकिन चर्चा चली है तो कुछ कानाफूसी तो हुई ही है। भला बिना आग धुआं थोड़े ही उठता है।

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