टाप बाक्स: बहुत कुछ खोकर पाया छप्पर से गगनचुंबी सफर

फोटो नंबर: 9, 10 व 11 म्हारा हरियाणा: 48 वर्ष -------------------- सबहेड-क्या खोया क्या पा

By Edited By: Publish:Thu, 30 Oct 2014 04:58 PM (IST) Updated:Thu, 30 Oct 2014 04:58 PM (IST)
टाप बाक्स: बहुत कुछ खोकर पाया छप्पर से गगनचुंबी सफर

फोटो नंबर: 9, 10 व 11

म्हारा हरियाणा: 48 वर्ष

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सबहेड-क्या खोया क्या पाया की समीक्षा करें तो अमूल्य विरासत खोकर हुआ है पाने का पलड़ा भारी

-औद्योगिकीकरण व विकास के कारण खत्म हुआ पिछड़ेपन का युग -दुपहिया वाहन बनाने में देश भर में टाप-3 में है जिला रेवाड़ी

महेश कुमार वैद्य, रेवाड़ी : छप्पर से गगनचुंबी इमारतों का सफर.. अरावली पर्वत श्रंखला के गहरे जंगल की जगह कंक्रीट के जंगल का सफर। हरियाणा के जन्म से अब तक की विकास यात्रा की बात करें तो लब्बोलुआब यही है। 48 वर्ष के सफर में हरित प्रदेश का रेवाड़ी जिला भी बहुत कुछ बदला है, लेकिन विकास के सफर की एक बड़ी हकीकत यह भी है कि छप्पर से गगनचुंबी इमारतों का सफर बहुत कुछ खोकर हासिल किया गया है।

हरियाणा दिवस की पूर्व संध्या पर यदि क्या खोया क्या पाया की समीक्षा करें तो अमूल्य विरासत खोकर 'पाने' का पलड़ा भारी हुआ है। औद्योगिकीकरण व विकास के कारण निश्चित रूप से काफी हद तक पिछड़ेपन का युग खत्म हो चुका है। परंतु यह भी हकीकत है कि विकास की चमक से अभी भी हजारों घर रोशन नहीं हुए हैं। पांच-छह वर्ष पूर्व तक प्रदेश में सर्वाधिक स्लम आबादी रेवाड़ी में ही थी। हालांकि स्लम मुक्ति के लिए पिछले एक दशक में हुए प्रयासों के कारण अगले कुछ महीनों में संभावित रिपोर्ट रेवाड़ी शहर को स्लम मुक्त बता सकती है, लेकिन फिलहाल भी हजारों लोग तंग गलियों के ऐसे तंग घरों में रह रहे हैं, जिनमें विकास तो दूर सूरज की रोशनी तक नहीं पहुंच पाई है।

दुपहिया वाहन उत्पादन में आगे

हम दुपहिया वाहन बनाने के मामले में हरियाणा में ही नहीं बल्कि देश के टाप-2 जिलों में हैं। गुड़गांव व रेवाड़ी इस मामले में सबसे अव्वल हैं।

पुरुष साक्षरता में अव्वल

हम 92.9 फीसद के साथ पुरुष साक्षरता में पूरे प्रदेश में अव्वल हैं। कुल साक्षरता में हमारा स्थान 82.2 है, जबकि हरियाणा का औसत 76.64 फीसद है।

घूंघट की कैद में हैं महिलाएं

साक्षरता दर ने हमारा सम्मान बढ़ाया है, परंतु ये सिक्के का एक पहलू है। दूसरा पहलू ये है कि यहां आज भी ग्रामीण क्षेत्र की अधिकांश महिलाएं घूंघट में कैद रहती हैं। हरियाणा गठन के लगभग पांच दशक बाद भी उन्हें घूंघट प्रथा से मुक्ति नहीं मिली है।

शर्मसार करती लिंगानुपात की तस्वीर

लिंगानुपात की तस्वीर शर्मसार कर रही है। वर्ष 2011 की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार रेवाड़ी जिले में 0 से 6 आयुवर्ग की लिंगानुपात की स्थिति पूरे देश में निम्नतम तीसरे स्थान पर है। रिपोर्ट के अनुसार प्रति 1000 लड़कों पर इस आयु वर्ग में लड़कियों की संख्या महज 784 थी। देश में सबसे बदतर स्थिति वाले तीन जिलों में रेवाड़ी के अलावा दो जिले भी रेवाड़ी के पड़ोसी हैं। इनमें महेंद्रगढ़ में 778 व झज्जर में सबसे अधिक शर्मसार करने वाला 774 का लिंगानुपात आंकड़ा दर्ज किया गया था।

शिशु व मातृ मृत्युदर में कमी

शिशु व मातृ मृत्युदर में सुधार ने जिले का गौरव बढ़ाया है, परंतु बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं को पटरी पर लाना एक बड़ी चुनौती है। रेवाड़ी जिले के सामने शिक्षा के मामले में भी पांच दशक पहले का रुतबा हासिल करने की चुनौती है। तब रेवाड़ी व रोहतक जिले ही ऐसे थे, जहां पर कालेज थे।

गुड़गांव से बड़ा था रेवाड़ी

हमारा रेवाड़ी पांच-छह दशक पहले आज के गुड़गांव से बड़ा शहर था। यदि वर्ष 1951 की जनगणना पर निगाह डालें तो गुड़गांव शहर की आबादी 18613 थी, जबकि रेवाड़ी की आबादी 34082 थी।

मुंह बाये खड़ी हैं कई चुनौतियां

विकास के इस सफर में जो खो गया है, उसे हासिल करना जरूरी है। इसके लिए कई चुनौतियां नई सरकार के सामने है। ये देखना है कि गरीब व अमीर के बीच चौड़ी हुई खाई का अंतर पाटने, संसाधनों पर गरीब का हक कायम करने तथा शिक्षा व स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं को आम लोगों के लिए सुलभ बनाने के लिए मनोहर लाल खट्टर सरकार क्या कर पाती है। उम्मीदों व अपेक्षाओं का भारी बोझ नए सीएम पर है। रेवाड़ी जिले से तीनों विधायक सत्ता पक्ष से हैं। कोसली से बिक्रम सिंह ठेकेदार मंत्री बन चुके हैं। रेवाड़ी से विधायक रणधीर कापड़ीवास व बावल से विधायक डा. बनवारी लाल का सत्ता पक्ष से जुड़ा होना तथा तीनों ही विधायकों का चुनावों के दौरान स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर करने का वादा भी कुछ उम्मीद जगा रहा है। देखना ये है कि लोगों की उम्मीदों व अपेक्षाओं पर नई सरकार व उसके प्रतिनिधि कितना खरा उतर पाते हैं।

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तब और अब

-तब अधिकांश गांवों तक संपर्क मार्ग नहीं थे। अब शत प्रतिशत गांव सड़कों से जुड़े हुए हैं।

-तब गांवों में बिजली नहीं थी। अब हर गांव तक बिजली पहुंच चुकी है।

-तब साइकिल खास सवारी थी। अब कार भी खास नहीं रही।

-तब उद्योग के नाम पर लगभग शून्य था। अब बावल में आइएमटी व धारूहेड़ा व रेवाड़ी में औद्योगिक सेक्टर हैं।

-तब अरावली क्षेत्र में ही सघन जंगल नहीं था, बल्कि गांवों के आसपास तक जंगल में जंगली जानवर मौजूद थे। अब कंक्रीट का जंगल खड़ा हो चुका है। औद्योगिक क्षेत्रों में चिड़ियां तक गायब हो रही है।

-तब घर-घर चिड़ियों की चीं-चीं थी, अब जल, जंगल और जमीन प्रदूषित हो रही है।

-तक छप्पर आम थे। अब पक्के मकान आम है।

-तब बैलगाड़ी दुर्लभ थी। अब ट्रैक्टर सुलभ है।

-तब साइकिल शान की सवारी थी, अब कार भी आम सवारी बन गई।

-आज रेवाड़ी में 6 हजार से अधिक ट्रैक्टर हैं तब एक भी नहीं था।

-आज लगभग 28 हजार इलेक्ट्रिक व डीजल आधारित कुएं हैं। तब लाव-चिरस के सहारे बारानी खेती थी। आज उन्नत खेती है।

-तब स्कूलों की चौखट दूर थी। अब छोटी-छोटी ढाणियों तक भी नामी निजी स्कूलों की बसें पहुंच रही है। शिक्षा का स्तर बढ़ा है।

-तब कन्याओं का गर्भ में गला नहीं घोंटा जाता था। आज बेटियों की गर्भ में हत्या हो रही है।

-जब घर में प्रसव होता था। अब जिला संस्थागत प्रसव के मामले में आगे आ चुका है।

-तब से अब तक संसाधन बढ़े हैं, लेकिन संसाधनों पर गरीब का हक छिन गया है।

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