पसीने की तीन कहानियां..परिवार यूं दिलाता है सफलता

विजय गाहल्याण, पानीपत: अखाड़े में उनके सामने विरोधी पहलवान टिक नहीं पा रहे थे लेकिन आर्थिक तंगी के क

By JagranEdited By: Publish:Wed, 27 Dec 2017 02:05 AM (IST) Updated:Wed, 27 Dec 2017 02:05 AM (IST)
पसीने की तीन कहानियां..परिवार यूं दिलाता है सफलता
पसीने की तीन कहानियां..परिवार यूं दिलाता है सफलता

विजय गाहल्याण, पानीपत: अखाड़े में उनके सामने विरोधी पहलवान टिक नहीं पा रहे थे लेकिन आर्थिक तंगी के कारण खुराक बंद हो गई थी। इससे स्वास्थ्य गिरने लगा और कुश्ती छोड़ने की नौबत आ गई थी। बेटों की यह दशा देख मजूदर व किसान पिताओं ने ठान लिया कि वे कुछ भी करके बेटों को पहलवान जरूरी बनाएंगे। उनका सपना सच भी हुआ। उनके बेटों जींद के दनौदा के विजय ने 55 किलोग्राम, जींद के बूढ़ा खेड़ा के सुशांत ने 87 किलोग्राम और सोनीपत के गढ़वाल के सुनील ने 72 किलोग्राम में यहां राज्य स्तरीय जूनियर कुश्ती चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीत लिया। इन पहलवानों ने ये पदक अपने पिता को समर्पित कर दिए। दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में खुद और पिताओं के संघर्ष के बारे में बताया।

बेटे को पहलवान बनाने के लिए पत्नी, बेटे के साथ करता हूं मजदूरी : रामचंद्र

दनौदा गांव के रामचंद्र ने बताया कि छोटे बेटे विजय को कुश्ती का जुनून था। बेटे को खुराक खिलाने की हैसियत नहीं थी। बेटे के सपने को भी नहीं टूटने देना चाहता था। इसलिए उसने पत्नी रोशनी, बड़े बेटे के साथ खेतों में मजदूरी की। विजय को हिसार के सिसाय गांव के अखाड़े में कोच लीला के पास छोड़ दिया। विजय ने स्कूल व‌र्ल्ड कुश्ती चैंपियनशिप में स्वर्ण, स्कूल नेशनल में स्वर्ण, नेशनल कैडेट प्रतियोगिता में कांस्य और राज्य प्रतियोगिता में तीन स्वर्ण पदक जीते। विजय ने बताया कि फ्री स्टाइल कुश्ती में उसे चोट लग गई थी। इसी वजह से उसने ग्रीको कुश्ती अपना ली। वह प्रतिदिन आठ घंटे अभ्यास करता है। पिता व भाई की मेहनत को वह बेकार नहीं जाने देगा। उसका लक्ष्य जूनियर एशिया चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतना है।

स्वर्गीय पिता के सपने को साकार करने कर रहा हूं प्रयास: सुशांत

बूढ़ा खेड़ा गांव के सुशांत ने बताया कि पिता उमेद सिंह किसान थे और उनकी इच्छा थी कि तीनों बेटे पहलवान बने। परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी मजबूत नहीं है कि तीनों भाई कुश्ती कर सकें। बड़े भाई विक्की व अमन खेत में मेहनत करते हैं और उन्होंने ही उसे नरेला के राकेश दलाल के अखाड़े में छोड़ दिया। भाई दिन-रात खेत में पसीना बहाते हैं और वह मैट पर अभ्यास करता है। भाइयों, कोच नरेश व पसीना के विक्रम कोच की बदौलत ही वह नेशनल कुश्ती चैंपियनशिप में स्वर्ण, रजत और राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में तीन स्वर्ण पदक जीत पाया है। स्वर्गीय पिता के सपने को भी साकार करने के लिए अग्रसर है।

चोट से उबर कर जीता स्वर्ण पदक, पिता करते हैं खेती

गढ़वाल के सुनील कुमार ने बताया कि सात साल पहले किसान पिता कुलबीर ने उसे रोहतक के रामकरण के अखाड़े में छोड़ दिया। घर की माली हालत ठीक नहीं थी। उसे आल इंडिया यूनिवर्सिटी में कांस्य, नेशनल प्रतियोगिता में तीन कांस्य व राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में तीन स्वर्ण पदक जीते। वह पहले फ्री स्टाइल कुश्ती करता था लेकिन उसके घुटने में चोट लग गई। इसी वजह से ग्रीको कुश्ती की और सफलता मिली। वह मैट पर अभ्यास करता है जबकि पिता व बड़ा भाई अजय खेती से कमाते हैं।

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