जिंदगी की जंग हारे नेशनल अवार्डी तरुण कौशल, समाज सेवा का था जुनून

नेशनल अवार्डी तरुण कौशल जिंदगी की जंग हार गए। सड़क हादसे में अधिक रक्तस्राव और सिर में गम्भीर चोट लगने के कारण उनका निधन हो गया। तरुण कौशल का दिल आखिर तक धड़क रहा था लेकिन दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था।

By Rajesh KumarEdited By: Publish:Tue, 11 Jan 2022 05:10 PM (IST) Updated:Tue, 11 Jan 2022 05:10 PM (IST)
जिंदगी की जंग हारे नेशनल अवार्डी तरुण कौशल, समाज सेवा का था जुनून
सड़क हादसे में नेशनल अवार्डी तरुण कौशल का निधन।

अंबाला, जागरण संवाददाता। अंबाला के नेशनल अवार्डी तरुण कौशल आखिरकार अपने जीवन की जंग हार गए। सिरसगढ़ गांव के पास धर्मकांटे से बैक हो रहे ट्रक ने तरुण के सिर को कुचल दिया था। हालांकि उन्होंने हेलमेट पहना हुआ था। लेकिन ट्रक का पहिया उनके सिर के ऊपर से निकल जाने के कारण हेलमेट उनके सिर में घुस गया था जिसे डाक्टरों ने काटकर निकाला था। मंगलवार को दोपहर करीब डेढ़ बजे तरुण ने मुलाना मेडिकल कालेज में आखिरी सांस ली। वो पिछले करीब 24 घन्टे से कृत्रिम श्वसन प्रणाली पर थे। अधिक रक्तस्राव और सिर में गम्भीर चोट लगने के कारण उनका निधन हो गया। तरुण कौशल का दिल आखिर तक धड़क रहा था, लेकिन दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था। तरुण कौशल अपने पीछे अपने बूढ़े मां- बाप, पत्नी और दो छोटे बेटों को छोड़ गए।

कालेज समय से ही था समाज सेवा का जूनून

तरुण कौशल को समाजसेवा का जूनून कॉलेज समय से ही था। छावनी के एसडी कालेज में पढ़ते हुए तरुण को इन्हीं सामाजिक सेवाओं के चलते एनएसएस मेरिट अवार्ड मिला। इसके बाद भारत सरकार ने सामाजिक कार्यों के लिए ही उन्हें 12 जनवरी 2009 को राष्ट्रीय युवा अवार्ड से नवाजा था। कोलजे समय से शुरू किए गए सामाजिक कार्यों का सफर उनके निधन के साथ ही थमा। तरुण को राज्य गौरव और राज्य युवा अवार्ड भी मिल चुका था। तरुण बराड़ा के राजकीय संस्कृति मॉडल स्कूल में हिंदी के लेक्चरर थे।

सैकड़ों घरों को बसाया और महिलाओं को बनाया आत्मनिर्भर

जिला युवा संगठन का गठन कर तरुण कौशल ने अब तक सैकड़ों घरों को बसाने का काम किया

था। जिला युवा विकास संगठन के माध्यम से वह अभी तक करीब 200 बच्चों को गोद लेकर उनकी शिक्षा का खर्च उठा रहे थे। इतना ही नहीं उषा सिलाई सेंटर के से उन्होंने जिले की सैकड़ों महिलाओं को रोजगार उपलब्ध करवाने का काम किया। 

50 से अधिक बार खुद किया रक्तदान, 106 बार लगाए शिविर

तरुण ने जिला युवा विकास संगठन के बैनर तले 106 बार रक्तदान शिविर लगाए। न्यूनतम एक शिविर में 60 और अधिकतम 120 यूनिट रक्त एकत्रित हुआ। उनका एक मात्र यही लक्ष्य था कि रक्त की कमी से किसी की जान न जाए।

बेटियों के नाम लोहड़ी पर्व:-

तरुण कौशल ने 2016 में जिले में पहली बार बेटियों के नाम लोहड़ी पर्व की शुरुआत की थी। लोहड़ी पर्व पर न केवल अच्छा काम करने वाली राज्यभर की बेटियों को सम्मानित करते थे बल्कि जिन घरों में बेटियां एक साल की अवधि में पैदा हुई उनके परिजनों को सम्मानित भी करते थे। इस बार भी कोरोना गाइडलाइन की पालना करते हुए दो या इससे अधिक बेटियों के माता पिता को सम्मानित करने की योजना उन्होंने बनाई थी लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था।

हरियोली में मातम, उनके नाम से मशहूर है गांव

तरुण कौशल बराड़ा के गांव हरियोली के रहने वाले थे। पूरा गांव उनके नाम से मशहूर है। गांव के प्रवेश द्वार पर लगे गौरव पट्ट पर आज भी उनकी उपलब्धियां वर्णित हैं। जैसे ही तरुण के निधन की खबर गांव हरियोली में पहुंची पूरे गांव में मातम पसर गया।

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