आयुर्वेद का चमत्कार, 72 वर्षीय बुजुर्ग को 20 दिन में चढ़ता था ब्‍लड, यूं छू मंतर हो गई बीमारी

72 वर्षीय बुजुर्ग महिला को हर 20 दिन में ब्‍लड चढ़ता था। उसे हीमाेलिटिक एनिमिया की बीमारी थी। पीजीआई ने ब्‍लड चढ़वाने का परामर्श दिया था। अब श्रीकृष्णा आयुष विश्वविद्यालय में आयुर्वेदिक उपचार के बाद महिला बिल्‍कुल ठीक हो गई।

By Anurag ShuklaEdited By: Publish:Wed, 20 Jan 2021 04:45 PM (IST) Updated:Wed, 20 Jan 2021 07:30 PM (IST)
आयुर्वेद का चमत्कार, 72 वर्षीय बुजुर्ग को 20 दिन में चढ़ता था ब्‍लड, यूं छू मंतर हो गई बीमारी
श्रीकृष्णा आयुष विश्वविद्यालय में महिला का उपचार हुआ।

पानीपत/कुरुक्षेत्र, [विनीश गौड़]। पीजीआइ के चिकित्सकों ने जिस बुजुर्ग को हर 20 दिन में रक्त चढ़वाने का परामर्श दिया था। आयुर्वेदिक दवाओं के उपचार से वह न केवल ठीक हो गईं बल्कि दोबारा रक्त चढ़वाने की जरूरत ही नहीं पड़ी। आयुर्वेदिक उपचार से पहले उनका हीमोग्लोबिन जो 5.5 ग्राम था वह उपचार के बाद 11.4 ग्राम पहुंच गया है। यानी एक सामान्य व्यक्ति के एचबी जितना। बुजुर्ग के परिवार के सदस्य इसे आयुर्वेद का चमत्कार मान रहे हैं।

वहीं उपचार करने वाले श्रीकृष्णा आयुष विश्वविद्यालय के कुलपति डा. बलदेव धीमान इसे आयुर्वेद चिकित्सा का छोटा सा नमूना बताते हैं। उनका दावा है कि आयुर्वेद उपचार में गंभीर से गंभीर बीमारी को शरीर से बाहर निकाल देने वाली शक्ति है। बस उपचार सही दिशा में किया गया हो।

हीमोलिटिक एनिमिया बताई गई थी बीमारी  

लाडवा निवासी 72 वर्षीय कांता शर्मा को 15 जुलाई में बुखार हुआ था। बुखार होने के बाद उनका चार ग्राम एचबी रह गया था और उन्हें 27 जुलाई को रक्त चढ़ाना पड़ा था। शहर के एक निजी अस्पताल में उनका उपचार चला था। वीसी डा. बलदेव धीमान बताते हैं कि निजी अस्पताल ने उन्हें हीमोलिटिक एनिमिया बीमारी का होना बताया गया। इसके बाद वे पीजीआइ में उपचार कराने अगस्त माह में गए। वहां पर उन्हें 20 दिन में रक्त चढ़वाने का परामर्श दिया गया।

एचबी एक स्वस्थ व्यक्ति जितना : डा. बलदेव

वीसी डा. बलदेव धीमान ने बताया कि हीमोलिटिक एनीमिया मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है। पहला आनुवंशिक और दूसरा बाद में होने वाला। इससे पूरे शरीर को ऑक्सीजन पहुंचाने में लाल रक्त कोशिकाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये कोशिकाएं फेफड़े से ऑक्सीजन लेकर हृदय और शरीर के विभिन्न हिस्सों तक पहुंचाती हैं।

उन्‍होंने कहा कि जब लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन की तुलना में इनकी क्षति अधिक होने लगती है तो यह हेमोलिटिक एनीमिया का रूप ले लेती है। इसी समस्या को लेकर मरीज को उनके परिजन अक्टूबर माह में उनके पास पहुंचे थे। उन्होंने स्थिति को देखा और रक्त संबंधित दोष निवारण दवाओं के साथ उनका उपचार शुरू किया। अक्टूबर माह में ही उन्हें इसका असर दिखने लगा। अब उनका एचबी 11.4 ग्राम है। अब मरीज एकदम सामान्य है। उनका एचबी एक स्वस्थ व्यक्ति जितना है।

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