महाभारत कालीन एक ओंकार खेड़ा मंदिर के महंत की मौत, हत्‍या की आशंका

करनाल के महाभारत कालीन एक ओंकार खेड़ा मंदिर में गद्दी के महंत की मौत हो गई। संदिग्‍ध हालत में उनका शव मिला है। अन्‍य महंतों ने हत्‍या की आशंका जाहिर की है।

By Anurag ShuklaEdited By: Publish:Fri, 13 Mar 2020 04:52 PM (IST) Updated:Sat, 14 Mar 2020 10:01 AM (IST)
महाभारत कालीन एक ओंकार खेड़ा मंदिर के महंत की मौत, हत्‍या की आशंका
महाभारत कालीन एक ओंकार खेड़ा मंदिर के महंत की मौत, हत्‍या की आशंका

पानीपत/करनाल, जेएनएन। गांव बीड़ बड़ालवा में शुक्रवार को संदिग्ध हालात में ओंकारेश्वर महादेव मंदिर के महंत ओंकार पुरी का शव मिला है। कमरे में मिले शव में आग लगी हुई थी। ग्रामीणों ने आग बुझाई। पुलिस ने पोस्टमार्टम के लिए करनाल भेज दिया। 

मंदिर में 50 वर्षीय महंत ओंकार पुरी व अन्य एक बाबा गोकुल पुरी रहते थे। शुक्रवार को बाबा गोकुल पुरी मंदिर की गाड़ी लेकर सुबह करीब सात बजे नरवाना में किसी मंदिर में भंडारे में चले गए। उसके बाद मंदिर व आश्रम में पशुओं की देखरेख करने व रसोई का काम करने वाले व्यक्ति मौजूद थे। इन्हीं में से एक करीब साढ़े 10 बजे चाय लेकर महंत को देने उनके कमरे में गया। उसे सीढिय़ों का दरवाजा बंद मिला। काफी आवाज लगाने के बाद भी दरवाजा नहीं खुला तो वह नीचे आ गया। उसके बाद पशुओं की देखरेख करने वाले दूसरे लोगों ने कमरे से धुंआ निकलता दिखा। सूचना के बाद पुलिस मौके पर पहुंची और सीढ़ी लगाकर देखा तो कमरे में आग लगी थी। लोगों की सहायता से पुलिस कर्मियों ने आग पर काबू पाया। अंदर जाकर देखा तो महंत का अधजला शव मिला।

वहीं, सूचना मिलते ही थाना प्रबंधक सज्जन सिंह, नायब तहसीलदार अनिल कुमार, डीएसपी रणधीर सिंह व फोरेंसिक टीम मौके पर पहुंची और जायजा लिया। वहीं बाबा लदाना के महंत भोजपुरी भी पहुंचे और उन्होंने मंदिर की जमीन व गद्दी को लेकर हत्या किए जाने की आशंका जताई। वहीं डीएसपी रणधीर ङ्क्षसह ने कहा कि मामले की तमाम पहलुओं से जांच की जाएगी। 

2012 में ओंकार पुरी को मिली थी ऐतिहासिक मंदिर एक ओंकारेश्वर की गद्दी

बता दें कि महंत ओंकारपुरी को यह गद्दी वर्ष 2012 में तत्कालीन महंत देवीपुरी ने सौंपी थी। यह मंदिर प्राचीन एवं ऐतिहासिक है, जिसे ओंकार खेड़ा के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर एक बहुत बड़े टीले पर स्थित है जोकि आस-पास के गांवों से दिखाई पड़ता है, जिसमें उत्तर हड़प्पा से लेकर गुप्त काल तक के अवशेष मिलते हैं। 

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