christmas day- आइये आपको ले चलते हैं चर्च की दुनिया में, रोमांचक है इतिहास

आज क्रिसमस डे है। हरियाणा में ऐसी भी चर्च है, जो पाकिस्‍तान से जंग की गवाह रही हैं। अपना वजूद खतरे में डालकर इन्‍होंने शहर को बचाया। कुछ चर्च तो दुनियाभर में मशहूर हैं।

By Ravi DhawanEdited By: Publish:Tue, 25 Dec 2018 01:32 PM (IST) Updated:Wed, 26 Dec 2018 12:58 PM (IST)
christmas day- आइये आपको ले चलते हैं चर्च की दुनिया में, रोमांचक है इतिहास
christmas day- आइये आपको ले चलते हैं चर्च की दुनिया में, रोमांचक है इतिहास

पानीपत, जेएनएन। आज क्रिसमस डे मनाया जा रहा है। हर धर्म के लोग चर्च में पूजा करने पहुंच रहे हैं। क्‍या आपको मालूम है, हरियाणा में एक से बढ़कर एक ऐसे चर्च हैं, जिनका इतिहास जहां रोमांचकारी है, वहीं कई चर्च पर गर्व भी होता है। पाकिस्‍तान से हुई जंग में एक चर्च ने तो पूरे शहर को बचा लिया था। पढि़ए, इन खास चर्च के बारे में।

करनाल रेलवे रोड स्थित गिरजाघर द चर्च ऐतिहासिक पहचान लिए है। क्रिसमस हो या कोई अन्य त्योहार, यहां हर कोई प्रार्थना करने पहुंचता हैं। ब्रिटिश शासन काल में बना चर्च करीब 114 साल पुराना है। चर्च डायोसिस ऑफ दिल्ली के अंतर्गत आता है। करनाल का यही पुराना और ऐतिहासिक चर्च है, जहां क्रिसमस पर भी दूर-दराज से लोग आते हैं। इसकी मजबूत इमारत प्राकृतिक सौंदर्य का अहसास कराती है। गिरि‍जाघर में करीब 300 लोग एक साथ बैठक कर प्रार्थना कर सकते हैं। दो एकड़ भूमि में बने चर्च में कंपाउंड में एक फादर के लिए कोठी बनी हुई है। यह भी काफी पुरानी है। यहां के खुला आंगन की हरियाली हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती है।

तीन ऐतिहासिक चर्च
चर्च के फादर शशीमुएल के अनुसार चर्च ऑफ नॉर्थ इंडिया सीएनआई के अंतर्गत आने वाले हरियाणा के तीन ऐतिहासिक चर्च में करनाल का यह चर्च भी शामिल है। उन्होंने बताया कि करनाल के अलावा अंबाला व जगाधरी का चर्च भी काफी ऐतिहासिक है। इन तीनों चर्चों का प्रारूप लगभग एक सा है। कुछ इस कारण भी करनाल का यह चर्च खास है। उन्होंने बताया कि चर्च उस स्थान पर बनाया जाता है, जहां लोगों की आवाजाही आसान है। अंग्रेजों ने भी इसी सोच के साथ शहर के बीच बीच चर्च बनाया होगा। उस जमाने में ट्रांसपोर्ट भी बहुत कम था।

कुछ इसलिए भी खास है चर्च
करनाल का प्रार्थना हाल काफी खुला और हवादार है। सप्ताह में तीन दिन प्रार्थना सभा होती है। चर्च के फादर डायोसिस ऑफ दिल्ली के अधीन है। क्रिसमस से कुछ दिन पहले से ही विभिन्न स्कूलों के बच्चे चर्च में पहुंचना शुरू हो जाते हैं। क्रिसमस का त्योहार हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। शहर के विभिन्न हिस्सों से काफी संख्या में लोग पहुंचते हैं और मोमबत्ती जलाकर सबकी खुशहाली की प्रार्थना करते हैं।

कहां है चर्च : चर्च करनाल में रेलवे रोड पर स्थित है। चर्च के साथ ही राजकीय महिला महाविद्यालय है। रेलवे स्टेशन से इसकी दूरी महज डेढ़ किलोमीटर है। जबकि बस स्टैंड से आधे किलोमीटर की दूरी पर है। हालांकि नेशनल हाईवे से इसकी दूरी करीब सात किलोमीटर है। इसके पिछली तरफ करनाल का सदर बाजार एरिया है।
करनाल में कैसे पहुंचें : रेलवे स्टेशन व बस स्टैंड से आटो, ई-रिक्शा से चर्च में पहुंचा जा सकता है।
प्रार्थना का समय : हर रविवार को सुबह 10 से 12 बजे तक, मंगलवार को शाम 5 बजे व शुक्रवार को सुबह 9 से 12 बजे तक उपवास के साथ प्रार्थना होती है। वहीं 25 दिसंबर को हर बार क्रिसमस सर्विस सुबह 10 से 12 बजे तक होती है।

सौ साल पहले बना था ये चर्च, आज भी खास
चर्च आफ नॉर्थ इंडिया कुरुक्षेत्र का निर्माण ब्रिटिश काल में करीब 100 वर्ष पहले हुआ था। इस चर्च का ढांचा अब भी पुराना है, जिसमें गर्मियों के समय में पंखे तक की जरूरत नहीं पड़ती। यहां इतना शांत वातावरण है कि भीतर जाने के बाद एकाग्रचित हो जाता है। चर्च की इमारत का स्ट्रक्चर पूरी तरह से ब्रिटिश काल का है।  चर्च के नजदीक एक सुंदर पार्क बनाया गया है, जहां पर हर रविवार को प्रार्थना सभा आयोजित की जाती है। हालांकि श्रद्धालुओं की भीड़ के चलते यह चर्च अब छोटा पड़ गया है।  ऐसे मौके पर चर्च के बाहर प्रार्थना सभा आयोजित की जाती है। जहां पर जिले भर से श्रद्धालु आते हैं। चर्च ऑफ नॉर्थ इंडिया कुरुक्षेत्र के फादर महेंद्र ने बताया कि चर्च आफ नॉर्थ इंडिया कुरुक्षेत्र ऐतिहासिक चर्च है। क्रिसमस, पूरी दुनिया में हर्षोल्लास से मनाया जाता है। इस दिन चर्च में विशेष प्रार्थना सभा आयोजित की जाती है। केक काटकर श्रद्धालु भगवान यीशु का जन्मदिन मनाते हैं। इसके बाद उपहार बच्चों में वितरित किए जाते हैं।

यहां हिंदू भी मिलकर करते हैं तैयारी
रेलवे रोड की रामबीर सिंह कॉलोनी में बनी सेंट पॉल चर्च में पिछले 35 सालों से पेरिस काउंसिल ऐसी कमेटी बनाई हुई है। चर्च की देखभाल के लिए हर बार पदाधिकारियों की नियुक्ति सर्वसम्मति से होती है। चर्च में खास दिन 25 दिसंबर क्रिसमस का होता है। इसके लिए पहले ही तैयारियां शुरू कर दी जाती हैं। चर्च की देखभाल में स्थानीय लोगों का भी पूरा सहयोग रहता है। क्रिसमस वाले दिन चर्च र्में हिंदू धर्म के लोग भी वहां पर लगी झांकियों को देखते के लिए भारी संख्या में जाते हैं। चर्च में रोजाना सुबह 8.30 से लेकर 10 बजे तक प्रभु ईशु की प्रार्थना की जाती है। लेकिन क्रिसमस वाले दिन प्रभु ईशु का जन्मदिवस मनाने के लिए सभी लोग चर्च परिसर में 24 दिसंबर की रात्रि 10 बजे से अगले दिन सुबह 1 बजे तक प्रार्थना की जाती है। कॉलोनी में आज से 35 साल पहले एक फादर अनिमानंद आए थे, जो कि अभी इस दुनिया में नहीं रहे। उन्होंने यहां आने के बाद लोगों से संपर्क कर 20 क्रिसचन परिवारों को जोड़ लिया था। उसके बाद उन्होंने लोगों की मांग के अनुसार कॉलोनी में खाली पड़ी जमीन पर प्रार्थना स्थल बनवा दिया।

पाकिस्तानी हमले में कवच बन गया था अंबाला का सेंट पॉल चर्च
21 सितंबर 1965 को पाकिस्तानी बम वर्षक विमानों ने छावनी स्थित एयरफोर्स स्टेशन को निशाने पर लिया था, लेकिन बम सेंट पॉल चर्च पर गिरा दिए गए थे। ऐसे में सैन्य महत्व का हवाई अड्डा तो बच गया लेकिन चर्च का एक हिस्सा ढह गया। बेशक अब चर्च का क्षतिग्रस्त ढांचा ही बचा है, लेकिन यह अपने भव्य अतीत की कहानी बयां करने के लिए काफी है। अपने जमाने में उत्तर भारत की सबसे खूबसूरत एवं बड़े माने जाने वाले गौथिक शैली के इस चर्च में एक साथ 1500 लोग प्रार्थना कर सकते थे। हालांकि, साल 1965 में क्षतिग्रस्त होने के बाद से पादरी के घर को ही चर्च के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है। इस घर के आधे हिस्से में ही अब चर्च की प्रार्थनाएं होती हैं। यहां आज भी वह बाइबिल व प्रार्थना के वक्त बैठने के लिए बनाया टेबल मौजूद है। चर्च का जो लकड़ी का मॉडल शुरुआत में बनाया गया था वह भी चर्च में ही है। चर्च में आज भी वह घंटा मौजूद है जो प्रार्थना व किसी आपात स्थिति में अनुयायियों को एकत्र करने में भूमिका निभाता था। देखा जाए तो चर्च का महत्व कभी कम नहीं हुआ, बल्कि अब यह विरासत है।

1857 में बनी थी चर्च
वर्ष 1843 में अंबाला में जब कैंटोनमेंट बसा तो डायसिस ऑफ लाहौर के बिशप ने 1843 में चर्च ऑफ इंग्लैंड  के नाम से 24 एकड़ जमीन खरीदी थी। उस वक्त अंग्रेजों द्वारा अंबाला में कैंटोनमेंट को बसाया जा रहा था। इसी दौरान 14 जनवरी 1852 में चर्च का निर्माण शुरू किया गया था। जो कि 4 जनवरी 1857 को बनकर तैयार हुआ था। सेंट पॉल चर्च का निर्माण आर्किटेक्ट कैप्टन एटिंक्शन की देखरेख में किया गया था। जिसका उद्घाटन तत्कालीन कलकत्ता के बिशप डेनियल एवं मद्रास के बिशप डेलेटरी ने किया था। यह गैरीसन यानी फौजियों का चर्च था जिसे विशेषकर फौजी अफसरों की प्रार्थना के मद्देनजर ही बनाया गया था। देश के बंटवारे से पहले यह चर्च डायसिस ऑफ लाहौर की देखरेख में था, लेकिन बाद में डायसिस ऑफ अमृतसर के अधीन आ गया। अब चर्च के प्रांगण में ही एयरफोर्स स्कूल भी चल रहा है और मौजूदा चर्च के पास सात एकड़ जमीन है। जिसके बिशप अब शौकत भट्टी व पादरी वीरेंद्र हैं।

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